राजनादगांव (अमर छत्तीसगढ) 28 फरवरी। परमब्रम्हृ परमेश्वर की असीम कृपा होने से ही व भक्तों के शुभ मनोरथ होने पर श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का अवसर प्राप्त होता है। कथा मनुष्यों के कल्याण के लिये है। सभी कथायें व्यक्ति को गतार्थ स यथार्थ, श्रान्त से शांन्त की ओर एवं संसारी को कसारी की ओर ले जाती है।
व्यक्ति के जीवन में किसी प्रकार के रस का स्वाद नही रहता, किसी प्रकल्प में विफल होने पर ग्रंथीयों का सार प्रयोजन से भटक जाता है। तब गतार्थ बोझ लगता है। वहीं कथा यथार्थ की ओर ले जाती है। श्रान्त वह है जो थक गया हो, संसार की एक समस्या खत्म होने पर दुसरी को हल करते हुये जीवन व्यतीत करता है। संसारीक प्रपंचों से पीडित हो जाता है। उसे कथा शांत बनाती है।

वहीं संसारी से भी अपने जीवन को साधने वाले को कुछ हासिल नही होता ऐसे संसारी को कथा रूपी रस कंसारी अर्थात कंस जिसे अपना शत्रु समझता है ऐसे कृष्ण का बनाती है।
उक्त उदगार आज यहां वृन्दावन धाम श्री अग्रसेन भवन में अग्रवाल सभा, अग्रवाल महिला मंडल एवं अग्रवाल नवयुवक मंडल के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के प्रथम दिवस व्यासपीठ पर विराजित अंचल के सुप्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित अर्पित भाई शर्मा ने व्यक्त किये।
कथा प्रसंग को आगे बढाते हुये अर्पित भाई ने कहा कि कथा का क अक्षर रस को व्याख्यायित करने के लिये है जो संसार सिंधु से उबार कर रस रूपी संसार में ले जाता है, प्रभु कहते है कि जिनका चित्त मुझ में लगा है ऐसे भक्त को मृत्यु लोक मे मैं देरी किये बिना तार देता हुॅ।

श्रीमद भागवत कथा भगवान का शब्द स्वरूप है यह रस सिंधु परमात्मा में स्थिर कर देती है। परम ब्रम्हृ परमात्मा को बुलाना हो तो राधा-माधव, सीता-राम, गौरी-शंकर का ध्यान करना होता है। मातृ शक्ति के बिना परमात्मा का मिलन संभव नही है। चराचर जगत में मॉ ही परम ब्रम्हृ परमात्मा का स्वरूप है अतः समस्त प्राणीयों को मॉ की पूजा सेवा सदैव करनी चाहिये।
कथा माता चरित्र हमें गलतियों से अवगत कराती है। राधा-माधव, सीता-राम, दिखने में दो तत्व है किन्तु वास्तव में ये एक ही है। ग्रन्थ रूपी माता सदगुण रूपी अंलकार से अंलकृत कर करूणा रूपी श्रंगार करती है। हमारे प्रारब्ध कर्मो से कई दाग लग जाते है। जिसका आस्वादन कथा के माध्यम से होता है।
पंडित अर्पित भाई ने कहा कि व्यक्ति को संसार से उबार कर रस सिंधु से अंलकृत करा दे वह कथा है। कथा प्रश्नों का उत्तर है। श्रीमद भगवत कथा परिक्षित के प्रश्नों का उत्तर है। वहीं भगवत गीता अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर है। जिस प्रकार पान खाने से मुह में लालिमा कत्थें से आती है। उसी प्रकार जीवन में लालिमा कृष्ण रूपी रस का स्वादन करने से आती है।
गोपी गीत में गोपियां कृष्ण से कहती है कि आप से तो आप की कथा अमृत के समान है। क्योकि जब आपकी इच्छा होगी तब आप प्रकट होगें जब इच्छा होगी अंर्तध्यान हो जायेगें। किन्तु कथा जब मन में सुनने की प्रबल इच्छा होगी तब सुनी जा सकती है।
श्रीमद भागवत कथा कहती है कि तीनों पापों को हरने वाले श्री कृष्ण को हम प्रणाम करते है जो सत्य स्वरूप है, तीनों कालों में एक रस रूप है। झुठ हमेशा बदलता है सत्य स्थिर रहता है, परमात्मा सत्य स्वरूप है चित चेतना युक्त संवेदन है सदरूपी चेतन परमब्रम्हृ परमात्मा संवेदनशील है इसीलिये सच्चिदानंद है।
पैसा खुशियां दे सकता है नियत समय तक ही खुशीयां प्राप्त होगी, संसार से मिलने वाला सुख टेम्परेरी है वहीं कथा रूपी अमृत का पान जीवन को मोक्ष प्रदान करने वाला है परमेश्वर तीनों तापों से मुक्ति प्रदान करते है। कथा समस्त लोक कल्याण के लिये सदगुण रूपी छवि निर्मित करती है।