रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 6 मई। कोरोना महामारी के दौरान संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए जेलों में भीड़ कम करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ जेल प्रशासन ने सैकड़ों कैदियों को अच्छे आचरण के आधार पर पैरोल और अंतरिम जमानत पर छोड़ा था। लेकिन अब महामारी का दौर बीत जाने के बावजूद कई बंदी वापस नहीं लौटे हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए डीजी जेल से शपथ-पत्र के जरिए विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

डीजी जेल की ओर से हाईकोर्ट में दी गई रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ की पांच केंद्रीय जेलों- रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, अंबिकापुर और जगदलपुर से कुल 83 बंदी पैरोल पर गए थे, जो समय सीमा समाप्त होने के बाद वापस नहीं लौटे। इनमें से 10 को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जबकि 3 की मृत्यु हो चुकी है। अब भी लगभग 70 बंदी फरार हैं।
बिलासपुर सेंट्रल जेल से पैरोल पर छोड़े गए 22 बंदी और रायपुर जेल से 7 बंदी अब तक जेल नहीं लौटे हैं। उनके परिवारजनों को बार-बार सूचित किए जाने के बावजूद उनकी वापसी नहीं हो सकी है। इसके बाद जेल प्रबंधन ने संबंधित पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज कराई और फरार बंदियों की जानकारी साझा की है।
रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी सामने आया है कि एक बंदी दिसंबर 2002 से ही लापता है, यानी वह बीते दो दशकों से फरार है। जेल प्रशासन और पुलिस की संयुक्त कोशिशों के बावजूद अब तक उसका कोई सुराग नहीं मिला। जेल प्रशासन के अनुसार, फरार बंदियों में अधिकांश हत्या और गंभीर आपराधिक मामलों में सजा काट रहे थे। यही वजह है कि उनकी वापसी न केवल जेल प्रशासन, बल्कि कानून-व्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।
राज्य में केंद्रीय जेलों के अतिरिक्त 12 जिला और 16 उप जेलें भी हैं। इन जेलों से कई बंदियों को कोरोना काल में अंतरिम जमानत पर छोड़ा गया था, लेकिन जेल विभाग के पास इनकी सटीक संख्या और स्थिति की जानकारी उपलब्ध नहीं है। जानकारों का कहना है कि ऐसे अधिकांश बंदियों ने कोर्ट से स्थायी जमानत ले ली है, जिससे उनकी स्थिति अब “फरार” की श्रेणी में नहीं आती, लेकिन रिकॉर्ड की पारदर्शिता अभी भी सवालों के घेरे में है।