बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़) 10 मई। सीजीएमसीएल में रीएजेंट्स सहित अन्य उपकरणों की खरीदी में अफसर किस हद तक जाकर राज्य सरकार के खजाने को मोक्षित कार्पोरेशन के साथ मिलकर लूटा है, EOW की जांच रिपोर्ट से सब साफ हो रहा है। जांच रिपोर्ट में परत-दर-परत चौंकाने वाले खुलासे के साथ ही अफसरों की मिलीभगत को भी बताया है।
मोक्षित ने डायसिस इंडिया से एमआरपी में सामानों की खरीदी की और उसे दोगुने से भी ज्यादा दाम में राज्य शासन को बेच दिया। सवाल यह भी उठ रहा है कि सीजीएमसीएल के अफसरों ने डायसिस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से तय एमआरपी में मेडिकल उपकरण खरीदने के बजाय उसी उपकरणों को दोगुने दाम पर मोक्षित कार्पोरेशन से क्यों खरीदा। जाहिर सी बात है कि मोक्षित के शशांक चोपड़ा ने अधिकारियों और कर्मचारियों को इसके बदले मोटी रकम दी और फैसला अपने पक्ष में करा लिया।
EOW की जांच रिपोर्ट में लिखा है कि मोक्षित कार्पोरेशन ने फूल्लीआटोमेटेड बायोकेमेस्ट्री एनालाइजर, एचबीएसी एनालाइजर, यूरिन एनालाइजर के रीएजेंट्स,कंज्यूमेबल्स,किट्स डायसिस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से खरीद कर सीजीएमएससीएल को सप्लाई किया है।
डायसिस कंपनी द्वारा इन रीएजेंट्स, कंज्यूमेबल्स, किट्स के लिए भारत में एमआरपी पहले से ही तय कर रखा है। एमआरपी के अनुसार निर्माता कंपनी का रीएजेंट्स, कंज्यूमेबल्स, किट्स की एमआरपी 50 करोड़ 46 लाख 47 हजार 720 रूपये है।इसी रीएजेंट्स, कंज्यूमेवल्स, किट्स को मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा 1 अरब 03 करोड़ 10 लाख 60 हजार 734 रूपये में विक्रय कर आपूर्ति किये जाने के प्रमाण प्राप्त हुये है। स्पष्ट है कि शासन को 52 करोड़ 64 लाख 13 हजार 14 रूपये की आर्थिक क्षति पहुंचाई गई है।
जांच में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि एचबीए । सी एनालाइजर के रीएजेंट्स की कीमत एमआरपी मूल्य के आधार पर 19 करोड़ 88 लाख 5 हजार 945 रूपये है। उक्त सामग्री को मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा 22 करोड़ 31 लाख 88 हजार 923 रूपये में सीजीएमएससीएल को विक्रय कर आपूर्ति किये जाने के प्रमाण मिले हें। राज्य शासन को 3 करोड़ 3 लाख 2978 रूपये आर्थिक क्षति हुई है। EMIS पोर्टल का उपयोग स्वास्थ्य संस्थानों में इंस्टॉलेशन की प्रामाणिक जानकारी दर्ज करने हेतु किया जाता है।
मोक्षित कॉर्पोरेशन द्वारा उपकरणों का इंस्टॉलेशन भौतिक रूप से किए बिना ही पोर्टल पर झूठे इंस्टॉलेशन प्रमाण पत्र अपलोड किए गए। EMIS पोर्टल पर इंस्टॉलेशन कम रिसीप्ट फॉर्म (Installation-cum-Receipt Form) सहित फोटो और अन्य दस्तावेज अपलोड किए गए, जिनकी हार्डकॉपी CGMSC के कार्यालय में भी जमा की गई थी। इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर CGMSC द्वारा मोक्षित को 44.01 करोड़ रूपये की भुगतान राशि जारी कर दी गई।
जांच के दौरान यह पाया गया कि विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में कुल लगभग 180 मेडिकल उपकरणों का इंस्टॉलेशन किया ही नहीं गया तथा 250 से अधिक मशीनें लॉक पाई गई, जिन्हें किसी प्रशिक्षित तकनीशियन द्वारा चालू नहीं किया गया था। इन मशीनों के उपयोग में न आने के कारण संस्थानों को आपूर्ति किए गए रीएजेंट्स और कंज्यूमेबल्स की एक्सपायरी तिथि समाप्त हो गई, जिससे प्रयोगशालाओं में इनका कोई उपयोग नहीं हो सका।
शशांक चोपड़ा पिता शांतिलाल चोपड़ा, उम्र 33 वर्ष, निवासी- चोपड़ा कम्पाउण्ड, 35 आजाद वार्ड, गंजपारा दुर्ग, जिला दुर्ग (छ.ग.) मोक्षित कार्पोरेशन एवं मोक्षित इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड डेवलपर्स के पार्टनर तथा मोक्षित मेडिकेयर प्राईवेट लिमिटेड का डायरेक्टर है।
कार्टलाइजेशन का सूत्रधार शशांक चोपड़ा ने छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) की निविदा प्रक्रिया को नियंत्रित करने हेतु अपो प्रभाव के फर्मों- श्री शारदा इंडस्ट्रीज, रिकॉर्डर्स एण्ड मेडिकेयर सिस्टम्स प्राईवेट लिमिटेड का योजनाबद्ध उपयोग किया। इन फर्मों को उसने मोक्षित कॉर्पोरेशन के समान उत्पाद, कोटेशन व रीएजेंट स्पेसिफिकेशन प्रस्तुत करने हेतु तैयार किया, जिससे टेंडर में वास्तविक प्रतिस्पर्धा समाप्त कर दी गई तथा एल-1 दर मोक्षित कार्पोरेशन को ही प्राप्त हो सकी। यह एक पूर्वनियोजित बिड-रिगिंग और टेंडर फिक्सिंग की साजिश थी, जो सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की श्रेणी में आती है।
ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट के अनुसार मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा निविदा की शर्तों को अपनी आवश्यकता के अनुरूप तैयार करावाकर संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं एवं सीजीएमएससीएल के अधिकारी, कर्मचारी के साथ सुनियोजित तरीके से षडयंत्र पूर्वक निविदा की शर्तों को टेलर-मेड तैयार करवाया गया ताकि प्रतिस्पर्धा समाप्त कर टेंडर स्वयं प्राप्त कर सके।
शशांक चोपड़ा ने छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) की निविदा प्रक्रियाओं को प्रभावित करने हेतु फर्मों और दस्तावेजों का संगठित रूप से उपयोग किया। उसने केवल बाहरी स्तर पर ही नहीं, बल्कि संस्था के आंतरिक प्रशासनिक ढांचे में भी अपना प्रभाव स्थापित किया। वरिष्ठ अधिकारी बसंत कौशिक, जो टेंडर स्क्रूटनी कमेटी के प्रमुख सदस्य थे, शशांक चोपड़ा के निकट संपर्क में थे और उसके निर्देशों पर कार्य करते थे।
निजी लाभ के लिए कंपनियों से बोगस बिल का प्रयोग विवेचना में पाया गया कि आरोपी शशांक चोपड़ा द्वारा छग राज्य के विभिन्न जिलों में आपूर्ति किये गये मेडिकल उपकरणों के इस्टॉलेशन, आफटर सेल्स सर्विसेस एवं प्रीवेंटिव मेंटनेंश हेतु स्वयं, मित्रगण एवं रिश्तेदारों के माध्यम से नये फर्म का पंजीयन कराकर उनसे ओवर बिलिंग प्राप्त कर करोड़ो रूपये के आर्थिक लाभ प्राप्त किये गये है। इस संबंध में विस्तृत विवेचना जारी है।
आरोपी शशांक चोपड़ा द्वारा प्री-बिड मीटिंग के दौरान तीन फर्म्स, कंपनी द्वारा दिये गये प्रस्तुतीकरण एवं सुझाव को संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं के अधिकारी डॉ अनिल परसाई के साथ मिलकर वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया कर अनावश्यक रुप से लंबित रखा गया। ताकि उपकरणों के स्पेसिफिकेशन बदले न जा सके। निविदा प्रक्रिया कमांक-182 में भी विभिन्न चरणों में आई दावा आपत्तियों को निराकरण करवाये बगैर मंशानुरूप निविदा स्वयं के द्वारा प्राप्त की।