संस्कारों का शंखनाद – युवक युवतियों के लिए विशेष आयोजन
रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। जब व्यक्ति का मन प्रसन्न रहता है, सदबुद्धि आती तो वह अच्छा-अच्छा काम करने लगता है। इसके बाद उसे लगता है कि यह तो मैंने किया है। जहां पर मैं शब्द का प्रयोग हो जाता है, वह खुद का कर्ता मानने लगता है। जबकि इस दुनिया के अंदर हम कर्ता है ही नहीं। हम अगर कर्ता होते तो पूरी दुनिया में जैसा चाहे वैसा हो सकता था। हम न तो सभी जगह पहुंच सकते है, और न तो सब हमारे मन मुताबिक चल सकता है। यह बातें शनिवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
साध्वी स्नेयहशाश्रीजी ने कहा कि अब हम पूरे चार महीने ज्ञान सार सूत्र का पाठ करेंगे। ज्ञान सार ग्रंथ की शुरुआत शनिवार को करते हुए साध्वीजी ने कहा कि इस ग्रंथ का नाम ही अपने आप में ही बहुत कुछ कह देता है। ज्ञान सार ग्रंथ मतलब जो भी सार गुण है, उसका ज्ञान इस ग्रंथ में है। सभी को सार-असार की समझ है, तभी यह दुनिया चल रही है। जैसे कि लाेग हर दिन सुबह अपने घर से कचरा निकालते है। इसके लिए झाड़ू का प्रयोग किया जाता है। झाड़ू लगाने पर जो कचरा निकला वो असार है लेकिन झाड़ू लगाने के दौरान उसकी एक काड़ी भी निकल जाए तो उसे आप वापस झाड़ू में लगा देते है। ऐसा इसलिए कि वह कचरा निकालने में सहायक होता है, जितनी ज्यादा काड़ियां होंगी, उतनी ही अच्छी घर की सफाई होगी। एक प्रकार से वह झाड़ू की काड़ी सार है। वैसे ही हर दिन आप अपने घर में दूध लेते है, उसकी मात्रा अधिक होती है। इतना कि उसे पीया नहीं जा सकता है, लेकिन उसे आप फेंकते भी नहीं। उसकी दही जमा देते है, फिर उसका मक्खन निकाला जाता है और जो बचा पदार्थ है, उसे छांछ बनाकर सभी में बांट दिया जाता है। इसमें छांछ असार है क्योंकि जो सार था वह मक्खन के रूप में हमने निकाल लिया। आप खुद ही समझ सकते है कि क्या सार है और क्या असार।
दुनिया में अपनी कीमत पहचानो
आप एक घंटा प्रवचन सुनने के बाद जब बाहर निकलते हो और उसी प्रवचन का सार एक ही मिनट के अंदर कोई बता दें, तो असली सार कौन सा है। जो बात प्रवचन के दौरान एक घंटे में बताई गई या फिर एक मिनट के अंदर कड़वे शब्दों के साथ किसी ने बात कह दी, तो आपको बाहर वाले की बातें हमेशा याद रहेगी। आप बाहर वाले की बात सुन कर टेंशन में आ जाते हो, जबकि उसे ही सरल प्रसंगों और कहानी के रूप में प्रवचन के दौरान आपको बताया जाता है। इसके बाद भी आपसे यह बातें कोई पूछ लें कि प्रवचन से आपने क्या सीखा, तो आप क्रोधित हो जाते हो। क्रोध भी एक असार है। जीवन में कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। एक बार की बात है, एक आदमी राजा की सभा में तीन पुतलें लेकर गया। वे तीनों पुतले एक ही समान थे। उसने राजा से पूछा कि तीनों में कौन सा पुतला सबसे महंगा और कौन सबसे सस्ता है। राजा उन्हें देखकर विचार करता है और सभा में उपस्थित लोगों को इसका जवाब देने कहता है। इस पर वहां मौजूद लोगों के बीच से एक आदमी खड़ा होकर कहता है कि मुझे एक रस्सी चाहिए। इसके बाद वह उस रस्सी को बारी-बारी पुतलों के कान में डालता है। पहले पुतले के कान में रस्सी डालते ही वह दूसरे कान से निकल गया। दूसरे पुतले के कान में रस्सी डालने पर वह मुंह से निकलता है। वैसे ही तीसरे पुतले के कान में रस्सी डालने से वह कहीं से निकली नहीं, अंदर चली गई। ऐसा कर उस आदमी ने कहा कि अब आप सभी इन पुतलों की कीमत जान चुके होंगे कि कौन सा महंगा और कौन सस्ता है। इससे आप अपनी कीमत आंक सकते हो।
खुशी से जीयो, क्रोध से नहीं
अंत समय में आपका मन, भावना और विचार सभी अच्छे है तो गति भी आगे अच्छी होगी। ज्ञानी कहते है कि पूरा जीवन अच्छा जीयो। कांच के बर्तन जैसे ही जमीन पर गिरते है टूट कर बिखर जाते है। वैसे ही हमारा जीवन कांच से भी नाजुक है। आपने यह सुना भी होगा कोई व्यक्ति अपने घर से लड़ाई कर निकला और बाहर निकलते ही किसी दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो जाती है, वह क्राेधित और विचलित मन से बाहर निकला था। ऐसी परिस्थिति में हमारा मन कसायों, गलत भाव या असार की चीजाें में है और मृत्यु हो जाए तो हमारी गति क्या होगी आप सोच भी नहीं सकते। ज्ञानी कहते है ऐसे समय में कसायों की मीटर तय करती है कि आप अगले जन्म में कौन से गति में जाने वाले हो। चंडाकोशी ने महावीर को डसा, यह तो एक बात है। पर चंडकोशी इतना जहरीला सांप क्यों बना, उससे पहले वह क्या था। चंडकोशी एक साधु था। एक दिन वह अपने शिष्यों के साथ कही जा रहा था कि अचानक उसके पैर के नीचे एक मेंढक आ गया। उसके एक शिष्य ने कहा कि आप प्रायश्चित कर लीजिए पर साधु ने नहीं किया। उस दिन शिष्य ने चार बार साधु से प्रायश्चित करने की बात कही, लेकिन साधु ने एेसा नहीं किया। फिर रात को सोने से पहले शिष्य ने फिर एक बार साधु को वह बात याद दिलाई और प्रायश्चित करने कहा। इतने में साधु क्रोधित हो गए और कहा कि तुम सिखाओगे कि मुझे क्या करना है। ऐसा कहकर वह शिष्य के पीछे उसे मारने के लिए दौड़ाने लग गया और अचानक एक दीवार से टकरा गया। कुछ ही क्षण में उसकी मृत्यु हो गई। क्रोध एक जहर है। वह जहर के साथ एक बार फिर सांप बनकर पैदा हुआ। पिछले जन्म में उसे शिष्य नहीं सुहाया और अब इस जीवन में उसे कोई नहीं सुहाया। सबके ऊपर वह जहर उगलता रहता, भगवान महावीर को भी उसने नहीं छोड़ा।
जप-तप और आराधना से जीवन को पवित्र बनाए
मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी धरमराज बेगानी और आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि शुक्रवार से ज्ञान सार सूत्र शुरु हुआ। साथ ही गुरु भगवंतों की निश्रा में जप, तप और आराधना से मन को स्थिर कर प्रभु द्वारा बताये गये मार्ग पर चलकर अपनी आत्मा को पवित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसी कड़ी में महिलाओं और युवतियों के लिए शुक्रवार से स्पेशल शिविर का आयोजन किया गया है। 16 जुलाई से 30 जुलाई तक चलने वाले इस शिविर में दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तक जीवविचार विषय और दोपहर 3.30 से 4.15 बजे तक कर्म का कम्प्यूटर विषय की क्लासेस चलेंगी। शिविर में भाग लेने योगिता लोढ़ा, अंजली चोपड़ा और सोनल डागा से संपर्क किया जा सकता है। वहीं, बच्चों के लिए संस्कारों का शंखनाद का आयोजन किया गया है। यह 16 जुलाई से शुरु होकर 14 अगस्त तक चलेगी। इसमें भाग लेने दीपिका डागा, दर्शना सकलेचा और श्वेता कोचर से संपर्क किया जा सकता है।