हर रोज भगवान को धन्यवाद ज्ञापित करें – जैन संत हर्षित मुनि

हर रोज भगवान को धन्यवाद ज्ञापित करें – जैन संत हर्षित मुनि

जैन संत ने कहा, कृतघ्न ना हो कृतज्ञता जतायें

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 1 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हर रोज भगवान अरिहंत को इतनी सारी अच्छी चीजें देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करें। भगवान की खोट मत निकालो। अरिहंत पर अटूट विश्वास होना चाहिए कि जो कुछ है सब उनका दिया है। उन्होंने कहा कि जब कोई डॉक्टर फीस लेकर हमारी बीमारी दूर कर देता है तो हम उसे धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। जबकि जो हमारे ऊपर इतना उपकार करता है, हम उसे भूल जाते हैं। आप कृतघ्न ना हो भगवान के प्रति कृतज्ञता जतायें।
समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि व्यक्ति अपने किए का ध्यान रखता है किंतु जो सब कुछ कर रहा है,उसे ही भूल जाता है। वर्तमान में हमें जो प्राप्त है, वह संचित है और जो अप्राप्त है, वह हमें प्राप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति करने वालों की शिकायतों का अंत ही नहीं होता। वे हमेशा भगवान से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं और नहीं मिलने पर शिकायत करते हैं। उन्होंने कहा कि जिस चीज के आप योग्य हैं वह आपको अरिहंत दे देता है और जिस चीज के आप योग्य नहीं हैं ,वह आपको कैसे मिलेगा? उन्होंने कहा कि मन में धन्यवाद का भाव लाएं। दुख के भाव रखने वाले कभी खुश नहीं हो सकते और जो खुशी के भाव रखते हैं, वे हर परिस्थिति में खुश रहते हैं।
श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि हम अपने प्लस को अकाउंट नहीं करते और माइनस की शिकायत करते रहते हैं। हर परिस्थिति में खुश रहना सीखो। उन्होंने कहा कि धन्यवाद सामान्य चीज नहीं है। हर रोज भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने हमें अनमोल जीवन दिया है। यह भाव मन में रखना चाहिए कि मैं चिंता क्यों करूं मेरी चिंता करने वाला भगवान है। इतना कर दिया तो भगवान भी समझ जाएंगे कि यह व्यक्ति पात्र है और दूसरा उपहार भेजने की तैयारी करेंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

0 माता-पिता को प्रणाम करो

जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि लोग माता पिता के पैर नहीं पड़ते जबकि प्रतिदिन पैर पड़ने चाहिए। उन्होंने हमें यह अनमोल जीवन दिया है। उन्होंने माता-पिता से कहा कि आप अपने बच्चों को मॉडर्न जरूर बनाएं लेकिन संस्कारों से दूर न रखें। हो हल्ला से शांति तो मिल सकती है किंतु मन की शांति के लिए संस्कार और मन में धन्यवाद का भाव होना जरूरी है।

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