रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में चल रहे भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने मंगलवार को कहा कि लोभ का गड्ढा भरना है तो उसकी उपेक्षा कीजिए, उसकी अनदेखी कीजिए। कोई शराबी व्यक्ति अगर आपके सामने बहकी-बहकी बातें करें, बुरा भला कहे तो उसकी अपेक्षा करें, वह खुद ही शांत होकर वहां से चला जाएगा। वैसे ही जब बच्चा जिद पकड़ लेता है कि उसे कोई खिलौना चाहिए तो उसे भी नजरअंदाज करो क्योंकि फिर वह भूल जाएगा और आपको बार-बार नहीं बोलेगा।
साध्वीजी कहती है कि किसी सभा या समाज के बीच, दोस्तों या रिश्तेदारों के बीच आपकी घृणा होने लगे, आपको कोई बुरा-भला कहें, तो आप उनकी उपेक्षा करने लगना। लोग आपके बारे में बोलना ही बंद कर देंगे। लोभी व्यक्ति किसी वस्तु को पाने के लिए मेहनत और पुरुषार्थ करता है और उसे पा भी लेता है तो उसके पीछे का आप बलिदान देखना कि उसने एक चीज को पाने के लिए क्या-क्या खो दिया है। आप सड़क पर किसी ठेले से 50 रूपए का कोई व्यंजन खा लेते हो और आपकी अगर तबीयत बिगड़ जाए तो उसका खामियाजा आपको 5 हजार रूपए तक भी भुगतना पड़ सकता हैं। 50 रूपए का पकवान खाकर आपकी तबीयत बिगड़ जाए और हॉस्पिटल के दौड़ भाग में आपके 5 हजार खर्च हो जाए तो आप सोचिए यह आप कितने नुकसान में है। तबीयत खराब होगी ही पैसे भी बर्बाद होंगे और आपको जो तकलीफ भोगनी पड़ेगी, वह तो अलग ही है।
किसी वस्तु के लिए लोभित न होएं
साध्वीजी कहती है कि अगर किसी वस्तु के प्रति है आपका लोभ है। जिसका आपको लालच है, उसे पाने के लिए आप बहुत मेहनत करते हो। लेकिन आप ऐसा करके अपने गुरु से दूर होते जाते हो और दूसरे नंबर पर आप परमात्मा से भी दूर हो जाते हो। वहीं, तीसरे नंबर पर आप माता-पिता से भी दूर हो रहे हो। क्योंकि रुपए कमाने रात-रात भर आप काम करते हो और सुबह जब देखते हो तो माता-पिता अपने काम पर लग जाए रहते हैं। आप उनसे बैठ कर बात भी नहीं कर सकते। कई बार मिलना भी नहीं हो पाता, उनका आशीर्वाद आप नहीं ले पाते हो। चौथे नंबर पर आप पत्नी से दूर हो जाते हो। पत्नी का आप के प्रति जो लगाव है उसे आप खोने लगते हो। उसके बाद पांचवें नंबर पर है आपके बच्चें, आप उनसे भी दूर होने लगते हो। आज के समय में यह बड़ी विडंबना है कि लोग अपने बच्चों के साथ बैठकर उनके साथ ठीक से बात भी नहीं कर पाते।
बच्चों से बातें करें, उन्हें समय दें
एक बार एक पिता अपने गुरु के पास अपनी बेटी को लेकर जाते हैं और उनसे कहते हैं कि मेरी बेटी किसी लड़के के साथ शादी करने वाली है। पता नहीं वह लड़का क्या करता है और मेरी बेटी को कैसे रखेगा। अगर ऐसा हुआ तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। गुरु उनकी बेटी को अपने पास बुलाते हैं और कुछ कहते हैं। उसके बाद वे पूछते हैं कि तुम क्या करना चाहती हो। लड़की कहती है मैं उसी लड़के से शादी करना चाहती हूं और मैं ऐसा करने भी वाली हूं। ऐसा करने से मुझे मेरा बाप भी नहीं रोक पाएगा। गुरु कहते हैं कि अगर आपने ऐसा किया तो आपकी पिता आत्महत्या कर लेंगे। आपके पिता के पास 100 करोड़ हैं उसका क्या होगा। लड़की कहती है कि भले ही मेरे पिता के पास 100 करोड़ रुपए होंगे। आज मैं 25 साल की हो गई हूं और इन 25 सालों में उनके पास मेरे लिए 100 घंटे भी नहीं थे, तो ऐसे बाप का मेरे जीवन में क्या मतलब। अब देखिए कि कैसे लड़की अपने पिता को बाप शब्द के साथ संबोधित कर रही है। अगर आप अपने बच्चों को समय नहीं दे पाएंगे तो कल आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो सकता है।
स्थिरता मतलब किसी चीज से चिपक जाना नहीं
साध्वीजी कहती है कि सीजन के टाइम आप दुकान में रहते हो। दुकान में भी ग्राहकों की लाइन लगी रहती है, बहुत भीड़ होती है। उन्हें संभालने आप अपना स्टाफ भी बढ़ा लेते हो। आपके पास इतना समय नहीं होता कि आप खाना खा सको और आप खाना भी भूल भी जाते हो। अगर यही लाइन अाप मंदिर में लगाओ, दर्शन करने भगवान के लिए खड़े रहो और देर होती है तो आप कहने हो कि कौन इतनी देर लाइन में खड़े रहे। किसी छोटे मंदिर का दर्शन करके अपने काम पर निकल जाना चाहिए। आप एक मिनट भी इंतजार करना नहीं चाहते हो।
उपाध्याय यशोविजयजी ने ज्ञान सार ग्रंथ के स्थिरता अष्टक में कहा है कि स्थिरता मतलब किसी चीज पर चिपक जाना नहीं होता। स्थिरता मतलब किसी भाव के प्रति मन लगाना होता हैं। हम बार-बार चंचल हो जाते हैं, इसका कारण है कि हमारा मन स्थिर नहीं है। हम कोई भी नया काम करने से डरते हैं। अगर हमारे अंदर परिणाम के लिए डर है, तो हम अस्थिर हैं। कोई काम करने से पहले ही हम उसका परिणाम सोचकर डरने लग जाते हैं और हम अपने पुराना काम ही अच्छा लगता है, इससे हम कभी आगे नहीं बढ़ पाते।
एक सेठ ठानते हैं कि मुझे 60 दिनों का उपवास रखना है और वह उपवास शुरू भी कर देते हैं। 57वें दिन का उपवास खत्म करके वे अपने कमरे में बैठते हैं और खिड़की से बाहर झांकने लगते हैं। वहां उन्हें एक पेड़ दिखाई देता है जहां कई सारे बेर लगे होते हैं। सभी बेर पककर लटकते रहते हैं, खाने के लिए एकदम तैयार। यह देख कर सेठजी सोचते हैं अगर मैं यह उपवास नहीं कर रहा होता तो मैं यह बेर जरूर खाता। आप सोचिए कि किसी व्रत को करने के लिए आपने संकल्प तो जरूर लिया है लेकिन उसे करने के लिए जब तक आपके मन में भाव नहीं आएगा तब तक आप की साधना सफल नहीं होगी। आपने किसी चीज का संकल्प लिया है और उसके पति आपका भाव नहीं है तो उस संकल्प का भी कोई मतलब नहीं है।
जन्माष्टमी पर नाटिका प्रतियोगिता 19 को
मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा एवं महासचिव निर्मल गोलछा ने बताया कि जन्माष्टमी पर 19 अगस्त को शाम 7 बजे प्रदेश स्तर में पहली बार श्रीकृष्णजी पर आधारित नाटिका प्रतियोगिता होगी। इसमें सभी आयु वर्ग के लाेग भाग ले सकते है। साथ ही मंगलवार से अक्षयनिधि, समवशरण और कषाय विजय तप प्रारंभ हो चुका है। इस अभी तप का संपूर्ण लाभ श्रीमान पारसचंदजी बसंती देवी, प्रवीण जी, पायल जी, तनिष्का, दीक्षा, लक्ष्य मुणोत परिवार ने लिया है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में 15 अगस्त को बच्चों के लिए फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह प्रतियोगिता तीन वर्गों में हुई। जिसमें 1 से 5 वर्ष, 5 से 15 वर्ष और 16 साल के ऊपर के बच्चों ने भाग लिया। 1 से 5 वर्ष के बच्चों में प्रथम स्थान पर लाव्या सेठिया, द्वितीय स्थान पर विहान पारख और तीसरे स्थान पर निहाल संकलेचा रहे। 5 से 15 आयुवर्ग में प्रथम स्थान पर अग्रिश चंदे, द्वितीय स्थान पर लियांशी डागा और तीसरे स्थान पर निखिल संकलेचा रहे। वहीं, 16 वर्ष से अधिक आयुवर्ग में प्रथम स्थान पर जैनिशा डागा, द्वितीय स्थान पर भाव्या लुनिया और तीसरे स्थान पर आशी सिसोदिया रहे। प्रतियोगिता में ज्यूरी के रूप में सुनीता चौधरी और गगन बरड़िया रहे। प्रतियोगिता के लाभार्थी भंवरलाल जी अशोक कुमार योगेश कुमार जी पगारिया रहे।