हम सुख भोग रहे हैं तो दुख भोगने के लिए भी तैयार रहें – जैन संत हर्षित मुनि

हम सुख भोग रहे हैं तो दुख भोगने के लिए भी तैयार रहें – जैन संत हर्षित मुनि

वास्तविक सुख आत्म परिचय में है

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 19 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि सुख और दुख तो आते जाते रहते हैं। हम सुख भोग रहे हैं तो दुख भोगने के लिए भी तैयार रहें। उन्होंने कहा कि वास्तविक सुख तो आत्म परिचय में हैं। तीन अवस्थाएं होती है एक सुख भोगना, दूसरा दुख भोगना और तीसरा इन सब से अलग होकर आत्म परिचय अर्थात आत्म समभाव की स्थिति प्राप्त करना।
स्थानीय समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि मेरा स्व मेरे भीतर है तो संपत्ति घटने और बढ़ने का दुख या खुशी हमें नहीं होगी। आत्मा दृश्य तत्व नहीं है जो साक्षात दिख जाए, आत्मा अनुभव करने की चीज है। हमारे भीतर जब तक गहरा अनुभव नहीं होगा, तब तक हम आत्मा को नहीं जान पाएंगे। इसके लिए साधना जरूरी है। हम अपने परिवार में ही जी रहे हैं। पेट भारी रहेगा तो चित् वित्तियों पर ध्यान नहीं जाता। पेट यदि खाली रहे तो इस पर ध्यान जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 10 मिनट तक मेडिटेशन करना चाहिए। आत्मा से एकाकार करने के लिए साधना जरूरी है, तब हमारा आत्मा से परिचय होगा।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि कम से कम एकांत समय में तो हम आत्मा को संबोधन करें कि, आत्मा सोच तू क्या है और तुझे क्या चाहिए ? उन्होंने कहा कि पुनर्जन्म का सिद्धांत कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। कुछ न कुछ ऐसा तत्व है जो एक दूसरे में फर्क करता है। एक माता के दो पुत्रों में भिन्नता होती है। यह किसी डीएनए से नहीं बल्कि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण होता है। संत श्री ने कहा कि हम सुख भोग रहे हैं तो दुख भोगने के लिए भी तैयार रहें। हमें यदि तीसरी स्थिति को भोगना है तो आत्म परिचय के लिए साधना करें।
संत श्री ने कहा कि यह व्यक्ति की दृष्टि पर निर्धारित है कि वो अभाव देखता है या संपन्नता। यदि वह अभाव देखता है तो संपन्नता में भी उसे अभाव दिखेगा और वह संपन्नता देखता है तो अभाव में भी उसे संपन्नता नजर आएगी। यह व्यक्ति की बुरी आदत है कि वह जहां रहता है , वहां उसे कमी ही कमी दिखती है। व्यक्ति को समभाव रहना चाहिए और समता की दृष्टि अपनानी चाहिए। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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