रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर स्वामी जिनालय में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान शुक्रवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि आप अपने घर की सफाई हर दिन करते हो तो रोज कचरा निकलता है। वही आप अगर महीने में एक बार सफाई करो तो सोचो आपको कितनी मेहनत लगेगी, कचरा तो निकलेगा ही। वैसे ही हर दिन आपको अपने जीवन से दोष दूर करना है मोह का त्याग करते जाना है। महापुरुषों के जीवन में कई मौलिकताएं होती है। वे पुरुषार्थ कर अपने जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।
साध्वीजी कहती है कि आज जन्माष्टमी का दिन है। जन्माष्टमी देश ही नहीं पूरी दुनिया में मनाया जाता है। जैन धर्म में जन्माष्टमी का एक अलग ही महत्व है। श्री कृष्ण और महावीर स्वामी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जैसे कि कृष्णजी की दो माता थी देवकी और यशोदा। वैसे ही महावीर स्वामी की भी दो माता की देवनंदा और त्रिशला। महावीर स्वामी जब 8 साल के थे तो खेलते खेलते उनकी गेंद दूर जाने लगी। गेंद का पीछा करते हुए इसी एक सांप रास्ते में आया तो उन्होंने उसे बचा लिया। वैसे ही खेलते खेलते बालकृष्ण की गेंद यमुना नदी में गिर जाती है। वे गेंद लेने जाते हैं, तो उन्हें शेषनाग मिल जाता है। महावीर स्वामी ने चंदनबाला का उद्धार किया। वैसे ही भगवान कृष्ण ने द्रोपति की रक्षा की। महावीर स्वामी ने मेरु पर्वत को अपने पैरों से दबाया था तो कृष्ण जी ने पानी के बीच जाते हुए अपने पिता के लिए जलमार्ग को थल मार्ग में परिवर्तित किया था।
अपने दोष ढूंढो और उसे निकालो
कोई महापुरुष यह नहीं कहता कि हमने जो किया है वह तुम भी करो। वे कहते हैं कि अपने आप को पापों से बचाते रहो। ऐसा करने के लिए आपको निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा और आप सफल हो जाओगे। साध्वी जी कहती है कि कई बार हमें लगता है कि हम इतना पूजा पाठ करते हैं फिर भी प्रभु जैसे महानता को हम पा नहीं पा रहे हैं। कोई बच्चा अगर साल भर पढ़े और फेल हो जाए तो क्या आप उसका स्कूल बदल देते हो। आपको उसकी गलतियां ढूंढनी है और उसे सुधारना है। वैसे ही आपको भी अपने जीवन के दोषों को ढूंढना है और दूर करना है।
कर्म मत बांधो
साध्वी जी कहती है कि एक नगर में एक मुनि पधारते हैं। लेकिन साधना आराधना में लीन रहते हैं और कड़ा संयम अपनाते हैं। यह देख एक दिन रानी के मुंह से निकल जाता है कि वे यब सब कैसे करते होंगे। यह बातें राजा के कान तक पहुंच जाती है। वे सोचते हैं कि रानी के जीवन में कोई और पुरूष भी है। वे अपने सैनिकों को आदेश देते हैं कि जो नया पुरुष नगर में आकर साधना-आराधना कर रहा है, उसकी चमड़ी उखाड़कर यहां मेरे सामने लाओ। सैनिक हड़बड़ा जाते हैं और शंका में पड़ जाते हैं की हम कैसे किसी मुनि की चमड़ी उधाड़ दे और दूसरी तरफ राजा के आदेश की अवहेलना भी वे नहीं कर सकते हैं।
सैनिक मुनि के पास जाते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि, हे साधु हम राजा के आदेश से बंधे हुए हैं, हमें अनुमति दें। साधु कहते हैं कि मैंने अपने शरीर का मोह तो कब से त्याग दिया है। आप जैसा चाहो मैं वैसा खड़े हो जाऊंगा, जिधर बोलोगे उधर मुड़ जाऊंगा। मुनि की चमड़ी लेकर सैनिक दरबार पहुंचते हैं और राजा के सामने रख देते हैं। मुनि के शरीर से मांस निकलने लगता हैं और इसे देखकर चील-कौवे उन्हें नोचने लगते हैं। एक चील मांस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा होता है और उसके हाथ से वह छूट कर रानी के कमरे के सामने गिरता है। रानी जब देखती है तो वह समझ जाती है कि यह मांस का टुकड़ा उनके भाई का है। वह राजा के पास जाती है और कहती है कि किसी ने मेरे मुनि भाई के साथ गलत करती हैं, आप उसे दंडित करें। यह सुनकर राजा समझ जाता है कि वह मुनि रानी का भाई है। वह तुरंत मुनि के पास जाता है पर वहां सब खत्म हो जाता है। यह देख कर वह रानी से अपने गलतियों की माफी मांगता है। इसी के साथ राजा और रानी दोनों दीक्षा ले लेते हैं।
साध्वीजी कहती है कि मुनि के साथ ऐसा इसलिए होता है कि वह अपने पिछले जन्म में एक औरत रहते हैं। औरत के रूप में वे रसोई में काम कर रहे होते हैं। इस दौरान वह गाजर छिलते हैं। एक छिलका पूरी तरह से निकलता है तो उनके मन में विचार आता है वाह मैंने क्या गाजर छिला है। ऊपर से नीचे तक बहुत अच्छे से छिलका निकल आया। यह कहकर वे अपना कर्म बांध लेते हैं।