हमारे भीतर जैसी सोच रहती है, सामने की तस्वीर वैसी ही नजर आती है- जैन संत हर्षित मुनि

हमारे भीतर जैसी सोच रहती है, सामने की तस्वीर वैसी ही नजर आती है- जैन संत हर्षित मुनि

किसी चीज को पाने की तीव्र लगन होनी चाहिए

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 21 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारे भीतर जैसी सोच रहती है , सामने की तस्वीर वैसी ही नजर आती है। किसी चीज को पाने के लिए हमारे भीतर तीव्र लगन होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आत्मा भी है और आत्मा नित्य है। आत्मा सुनती भी है और सभी काम कराती भी है। आत्म परिचय के लिए हमारे भीतर तीव्र लगन होनी चाहिए।
समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि हमारे घर में यदि मेहमान आ जाते हैं, तो हम अपनी साधना को भूल जाते हैं, अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। उन्होंने कहा कि आत्म परिचय और मोक्ष के मार्ग में वही बढ़ सकता है, जो किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य और साधना से ना भटके। उन्होंने गुरु तेग बहादुर का उदाहरण देते हुए कहा कि गुरु तेग बहादुर ने अपने धर्म के लिए अपना शीश कटाना उचित समझा। औरंगजेब को भी यह मानना पड़ा कि सिक्खों का धर्म परिवर्तन कराना बड़ा मुश्किल है। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर अपने लक्ष्य में अडिग थे।
जैन संत ने कहा कि धर्म के क्षेत्र में हम आगे इसलिए नहीं बढ़ पा रहे हैं क्योंकि हमारी धर्म के प्रति इतनी ललक नहीं जगी है। हमारे समक्ष कोई भी समस्या आ जाती है तो हम सामायिक के समय भी उसी समस्या के बारे में सोचते रहते हैं जबकि होना यह चाहिए कि हम अन्य समय में उस समस्या को हल करने की सोचें। यदि व्यक्ति को हर समय धर्म याद रहे तो समझे कि उसके भीतर धर्म का प्रवेश हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि कोई वस्तु काम आने लायक है उसका उपयोग करना सीखना चाहिए ना कि उसे बेकार समझ कर उस प्रकार की कोई नई वस्तु पर ध्यान आकर्षित करना चाहिए। बच्चों को यह देखना चाहिए कि मां-बाप की स्थिति कैसी है और उसे उस हिसाब से ही चलना चाहिए, किंतु आज के बच्चे यह नहीं सोचते। उन्होंने कहा कि हम अपना मन बनाए कि मेरा स्वभाव सुधर रहा है और मेरी धर्म के प्रति आस्था बढ़ रही है। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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