हमें अपने मन से जीतना है, इसे जीत लिए तो आपको कोई नहीं हरा पाएगा – साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

हमें अपने मन से जीतना है, इसे जीत लिए तो आपको कोई नहीं हरा पाएगा – साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर स्वामी जिनालय में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान रविवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि हमारा मन पल पल में बदलता है। अभी हम कुछ और सोच रहे होते हैं और अगले ही पल दूसरा ख्याल हमारे मन में आ जाता हैं। हमें इस बाधा को पार करना है। हमें अपने मन से जीतना है और जब आप मन से जीत जाओगे तो आपको कोई नहीं हरा पाएगा।

साध्वीजी कहती है कि एक व्यक्ति घने जंगल को पार कर रहा था। चलते-चलते वह थक गया और उसे प्यास लगी, वह एक जगह पर बैठ जाता है। जंगल से गुजर रहै एक आदमी से वह कहता है कि यहां पानी मिल जाएगा क्या। वह आदमी कहता है कि मैं दो मिनट में आपके लिए पानी लेकर आता हूं। वह हाउस का इंतजार करता है और उसके मन में आनंद रहता है कि दो मिनट बाद मुझे पानी मिल जाएगा। देखते ही देखते 5 मिनट बीत जाते हैं, वह पानी लेकर नहीं आता। प्रतीक्षा कर रहे व्यक्ति के मन में अब व्याकुलता बढ़ने लगती है और मन में शंका भी उत्पन्न होती है। उसके बाद वह आस भी छोड़ देता है। पर सात मिनट बाद वह आदमी ट्रे में दो गिलास लेकर आता दिखता है। उस गिलास में शरबत होती है और वह कहता है कि मैं शरबत बनाने रुक गया था इसलिए 5 मिनट के अंदर नहीं आ सका।

आपको सोच बदलनी होगी

साध्वीजी कहती है कि आप दुकान में कपड़े लेने जाते हो तो आपका मन पहले से तैयार रहता है कि आपको कैसे कपड़े लेने हैं। दुकानदार आपकी पसंद के हिसाब से आपको कपड़े दिखाता है। एक सेठानी दुकान पर साड़ी लेने जाती है। दुकानदार हुलिया देख कर उन्हें 50-50 हजार की साड़ियां दिखाता है। वह कहती है कि इससे कम रेंज की चाहिए दुकानदार 40 हजार की साड़ी दिखाता है, फिर 30, फिर 10, फिर 5 हजार, फिर 1 हजार उसके बाद पांच सौ और आखिर में 100 रुपए की। सेठानी 100 रुपये वाली एक साड़ी खरीद लेती है और कहती है कि यह मेरे बेटे की शादी में नौकरानी के लिए ले रही हूं।

उसी दुकान में अगले दिन एक महिला आती है, उसके कपड़े पुराने फटे हुए होते हैं। दुकानदार उसे 100 रुपये की साड़ी से दिखाना शुरू करता है वह कहती है नहीं मुझे थोड़ा ऊंचा चाहिए। वह उसे थोड़ी और महंगी साड़ी दिखाते हैं। इसके बाद भी वह कहती है कि मुझे अच्छी से अच्छी साड़ी लेनी है। वह बताती है कि मेरे सेठानी की बेटे की शादी है। घर की होने वाले नई बहू को मैं अच्छे से अच्छा साड़ी देना चाहती हूं। अब आप यहां पर सोच का अंतर देख सकते हैं

वैसे ही जब दमाद घर पर आए तो 56 भोग लगाए जाते हैं और जब पड़ोसी घर पर है तो उसे केवल चाय-पानी पिला कर जाने दिया जाता है। इन दोनों में मन के भाव का अंतर है। कितना भी स्वादिष्ट व्यंजन आपके सामने रहे पर स्वाद आपके मन में होता है। मीठे गुलाबजामुन आपके सामने रखे हो और आपको फोन आ जाए की आपके दुकान में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई है तो वह गुलाब जामुन भी आपको फीका लगने लगता है। आपको अपना मन स्वस्थ रखना है। मन स्वस्थ रहेगा तो आपको जीवन का स्वाद आएगा।

हमें निंदा और चुगली छोड़नी है

साध्वीजी कहती है कि निंदा और चुगली माता-पिता तक को नहीं छोड़ती, परिजनों और यहां तक तो साधु-साध्वी तक को यह नहीं छोड़ती है। जबकि निंदा चुगली किए बिना भी जीवन चल जाता है। इसे छोड़ दोगे तो जीवन सरल और सहज हो जाएगा। हमें इन पापों को छोड़ने का पुरुषार्थ करना है।

यशोविजयजी महाराज ज्ञान सार अष्टक में बताते हैं कि हमें मोह का त्याग करना है। आज दिन भर आप मैं-मैं की माला जपते रहते हो। हम मैं मैं कहते हैं क्योंकि अनादि काल से हमें इसका अभ्यास बना हुआ है। हमें कोई समझाने वाला नहीं मिला, मिला भी तो हम समझ नहीं पाए। मैं मंत्र का जाप हम जन्मो जन्म से कर रहे हैं। इसे हमें छोड़ना होगा। यहां हम मनुष्य जीवन में ही कर सकते हैं। आप जिंदगी भर अपने अधिकारों की मांग करते हो। आपका परिवार, आप खुद और आपका मन भी आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर रहता है। आपने स्वयं को काबू कर लिया तो आपको दूसरों को काबू करने की जरूरत नहीं होगी। आदमी खुद के मन से हार जाता है। खुद से नहीं जीत सकते तो आप दुनिया से कैसे जीतोगे। परमात्मा या कोई भी महापुरुष दुनिया जीतने की कभी नहीं सोचते। वे अपने आप से ही जीत लेते हैं।

साध्वीजी कहती है कि एक शासक राज्य में आक्रमण कर रहा होता है तो उनसे एक साधु पूछते हैं कि भारत जीत क्या करोगे। वह कहता है फिर मैं अमेरिका जीत लूंगा, फिर क्या करोगे फिर वह कहता है कि मैं जापान जीत लूंगा, फिर क्या करोगे फिर वह कहते हैं कि मैं चीन जीत लूंगा। वह कहते हैं फिर क्या करोगे अगर आपने पूरी दुनिया जीत ली तो आप क्या करोगे। वह शासक कहता है कि फिर मैं शांति से बैठ जाऊंगा। साधु कहते हैं तो उसके लिए दुनिया में हड़कंप मचाने की क्या जरूरत है, वह तो आप अभी भी बैठ सकते हो। आपके पास जो है उसमें आपको संतोष नहीं होता, आप की डिमांड बढ़ती जाती है। रुपयों की भूख मिटाई जा सकती है लेकिन मान सम्मान की भूख नहीं मिट सकती। आप जितना सम्मान पाओगे उतना फूलोगे और एक दिन फूट जाओगे।

संस्कारों के शंखनाद शिविर का समापन

न्यू राजेंद्र नगर आध्यात्मिक चातुर्मासिक समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि रविवार को संस्कारों के शंखनाद बच्चों के शिविर का समापन हुआ। आज शिविर के समापन में बच्चों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। यहां प्रथम स्थान जेनिशा डागा द्वितीय स्थान रैना कोचर तथा तृतीय स्थान ख्याति बोथरा ने प्राप्त किया। इस कार्यक्रम के मुख्य लाभार्थी परिवार पदम जी कमल कुमार बोथरा परिवार ने सभी प्रतियोगियों को सांत्वना पुरस्कार देकर पुरस्कृत किया।

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