पर्युषण पर्व दूसरा दिन “स्वाध्याय दिवस”
बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़) श्री जैन श्वेतांबर श्री संघ समाज के द्वारा परम पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व 2022 का गुरुवार की सुबह विशेष पूजा, सामायिक, कल्प सूत्र का वाचन, शाम को प्रतिक्रमण एवं रात्रि में बच्चे, महिलाओं, पुरुषों के द्वारा कई जैन धार्मिक भक्ति प्रस्तुत किया गया । भक्ति गीतों में नवकार धुन मंत्र……हम जैन है करम से जैन है…… दुनिया से मैं हारा….. ओ गुरु सा…… जनम जनम का साथ है……. जैसे कई भक्ति प्रस्तुत किए गए ।
पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन गुजराती जैन समाज टिकरापारा, वैशाली नगर में तेरापंथ समाज एवं तारबाहर स्थित चोपड़ा भवन में श्री जैन श्वेतांबर श्री संघ द्वारा कई धार्मिक आयोजन संपन्न हुए । समाज की श्रीमती ज्योति चोपड़ा एवं श्रीमती प्रमिला चोपड़ा द्वारा कल्प सूत्र का वाचन किया गया । रात्रि में भक्ति संध्या में समाज की महिलाओं ने एवं बच्चों ने भक्ति गीत प्रस्तुत किया गया । भक्ति करने वालों में प्रवीण कोचर, अभिनव डाकलिया, प्रवीण गोलछा, स्वाति नाहर, अतुल्या कोचर, संगीता चोपड़ा, प्रमिला चोपड़ा थी ।
पर्यूषण पर्व में प्रतिदिन भवन में प्रतियोगिताएं कराई जा रही है । जिसमें चोपड़ा परिवार द्वारा बुधवार को गेम खिलाया गया । जिसमें समाज के उपस्थित सभी सदस्यों को एक गोला बना करके खड़ा किया गया। एक बॉल के माध्यम से पासिंग पास दी गई जिसका नाम आया वह प्रतियोगिता से बाहर होते गए । कार्यक्रम का संचालन संगीता चोपड़ा एवं चंदन चोपड़ा ने किया ।
इस अवसर पर समाज के संरक्षक विमल चोपड़ा, अध्यक्ष जैनेंद्र डाकलिया, इंदर चंद बैद, नरेंद्र मेहता, सुभाष श्रीश्रीमाल, दिनेश मुनोत, रूपेश गोलछा, तुषार मेहता, ज्योति चोपड़ा, संगीता चोपड़ा, सुनीता जैन, स्वाति, मुकेश कुमार बाठिया, पूर्णिमा सुराना, महक, वंशिका तेजाणी, सहित समाज के सदस्य उपस्थित थे।
गुजराती जैन समाज टिकरापारा
श्री दशाश्रीमाली स्थानकवासी जैन संघ में व्याख्यान देने आए स्वधर्मी बहनों ने प्रवचन में बताया कि आज का मनुष्य जीवन बहुत ही व्यस्थता पूर्वक हो चुका है । अपने अपने काम में बड़े तो व्यस्त है ही बच्चे भी बहुत व्यस्त हो चुके हैं और ऐसी व्यस्तता वाले समय में किसी के पास धर्म करने का समय ही नहीं है और जितना समय जीवन में मनुष्य बचा लेता है इतना समय राक्षस रूपी मोबाइल खा जाता है यह राक्षस रूपी मोबाइल दिखने में छोटा है लेकिन मनुष्य का समय पूरी तरह बर्बाद कर देता है मनुष्य चाह कर भी अपने रोजमर्रा के काम समय पर नहीं कर पाता, रिश्ते नाते स्वयं स्वाभाविक रूप से नहीं निभा पाता, अपने परिवार का ध्यान, बच्चों की परवरिश, समाज के प्रति अपनी जवाबदारी, आसपास रहने वाले पड़ोसी का धर्म यह सभी महत्वपूर्ण जवाबदारी नहीं निभा पा रहा है, इसका दोषी आज के समय में सिर्फ और सिर्फ राक्षस रूपी मोबाइल है।
इसलिए मनुष्य को मोबाइल की जितनी जरूरत हो उतना ही उपयोग में लिया जाना चाहिए अन्यथा बाद में पछतावे के सिवाय कुछ नहीं रहता, जब परिवार बिखर जाएगा, बच्चे भी हाथ से फिसल जाएंगे और सगे संबंधी एवं पड़ोसी काम नहीं आएंगे तब पछताना पड़ेगा। तब मनुष्य को समझ में आएगा की यह राक्षस रूपी मोबाइल ने उनका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है।
कार्यक्रम में अध्यक्ष भगवानदास भाई सुतारिया, किशोर देसाई, दीपक गांधी, प्रवीण दामाणी, दीपक सुतारिया, शरद दोशी, गोपाल वेलाणी, कीर्ति सुतारिया, मनीष शाह, राजू तेजाणी, नरेंद्र तेजाणी, शोभना सुतारिया, भावना गांधी, भावना सेठ, संगीता दामाणी, सरला दामाणी, एवं प्राण महिला मंडल की अध्यक्षा छाया देसाई उपस्थित थे ।
जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज
वैशाली नगर निवासी हुल्लास चंद गोलछा के निवास में संपन्न हो रहे पर्युषण पर्वृ में धर्म विद विशारद तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमण जी की महती कृपा से श्रीमती प्रेमलता नाहर अंकलेश्वर से और पुष्पा पगारिया सूरत से उपासिका बहने पधारी है । प्रातः भजन प्रार्थना योग एवं प्रवचन में खाद्य संयम दिवस बारे में चर्चा की भोजन हमे मित् हित और ऋत के अनुसार ही करना चाहिए हमें उनोदरी का पालन करना चाहिए उनोदरी का अर्थ है भूख से कम खाना ताकि हमारे शरीर में पोष्टिकता बनी रहे और अनर्गल खाने से बचे इसके पश्चात 6 आरो का वर्णन किया गया । पहला सुषम सुषमा, दूसरा सुषमा, तीसरा सुषमा दुषमा, चौथा दुषमा सुषमा, पांचवा दुख मा छठा दुखम् दुखमा आज हम पांचवें आरे में हैं । हमें छठे आरे से बचने के लिए तप् तपस्या धर्म आराधना करनी चाहिए रात में षट द्रव्यों के बारे में चर्चा हुई ।
पर्युषण के दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया। स्वाध्याय करना बहुत ही जरूरी है स्वाध्याय हमारे कर्म के निर्जरा करता है स्वाध्याय करने से हमारे मस्तिष्क को पौष्टिकता मिलती है जैसे कि उदर की पौष्टिकता सात्विक भोजन में है वैसे ही मानसिक पोस्टिकता सत साहित्य में हैं स्वाध्याय के पांच प्रकार भी बताएं पहला वाचना, दूसरा प्रच्छना, तीसरा परावर्तना, चौथा अनुप्रेक्षा, अंतिम धर्म कथा ।