बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़)। भक्तामर स्तोत्र का जैन धर्म में बडा महत्व है। आचार्य मानतुंग का लिखा भक्तामर स्तोत्र सभी जैन परंपराओं में सबसे लोकप्रिय संस्कृत प्रार्थना है। इसका दूसरा नाम आदिनाथ स्त्रोत भी है। इस स्त्रोत का पहला शब्द भक्ताम्बर होने के कारण इसका नाम भक्तामर स्त्रोत पड़ गया। इस स्तोत्र के बारे में यह प्रचलित है कि आचार्य मानतुंग को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था और उस जेल के 48 दरवाजे थे जिन पर 48 मजबूत ताले लगे हुए थे। तब आचार्य मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा हर श्लोक की रचना से एक एक ताले टूटते चले गए। इस तरह 48 शलोको पर 48 ताले टूट गए।
पर्वराज दशलक्षण पर्व के उत्तम सत्य धर्म के दिन आयोजित सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम में सर्वप्रथम इशिका ने आचार्यश्री विद्यासागर जी को समर्पित मंगलाचरण प्रस्तुत किया। इसके पश्चात रीना जैन ने राजस्थानी आदिवासी की पारम्परिक वेशभूषा में एक प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम अष्ट भय निवारक भक्तामर स्त्रोत समाज के डॉ. श्रुति जैन और डॉ.सुप्रीत जैन ने एक नई और रचनात्मक सोच को मूर्त रूप देते हुए भक्तामर स्त्रोत के 48 श्लोकों में से भय निवारक आठ श्लोकों का वर्णन नृत्य और एक्ट के माध्यम से किया। इन दोनों ने अपनी इस रचनात्मक सोच को एक एक्ट के रूप में निर्देशित किया और समाज के हर आयु वर्ग को एक साथ मंच पर ले आये। इस कार्यक्रम की शुरुआत मंगलाचरण के रूप में जैन धर्म के अनादि मन्त्र णमोकार मंत्र से हुई, जिसकी प्रस्तुति डॉ अमित जैन ने की। इसके पश्चात् भक्तामर के अड़तालीस श्लोकों में से आठ ऐसे श्लोकों की प्रस्तुति दी गई जो आठ प्रकार के भय के निवारण के लिए जाने जाते हैं।
भक्तामर का पहला श्लोक जिसमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ जी की महिमा का वर्णन किया गया है, इस श्लोक पर बहुत ही मनोरम प्रस्तुति बिलासपुर जैन समाज की महिला परिषद की श्रीमती शकुन जैन, श्रीमती आशा जैन, श्रीमती रजनी वासल, श्रीमती रेखा जैन, श्रीमती सुमन जैन और श्रीमती संध्या जैन द्वारा की गई। क्रांतिनगर जैन मंदिर महिला मण्डल समूह से श्रीमती रश्मि, ज्योति, स्मिता और ऋतु जैन ने हाथी के आतंक के भय का निवारण करने वाले भक्तामर के अड़तीसवें श्लोक पर अपनी प्रस्तुति देकर इस श्लोक को जीवंत कर दिया।
सखी ग्रुप की सीमा, श्वेता, मनोरमा, रंजीता और निधि जैन द्वारा शेर के भय से मुक्ति दिलाने वाले उनतालिसवें श्लोक पर सजीव प्रस्तुति देकर सबका मन मोह लिया। अग्नि का भय लगभग सभी को रहता है। इस भय से मुक्ति दिलवाने वाले चालीसवें श्लोक पर बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति महिलाओं के नैवेद्यम समूह से सोनम, सपना, रागिनी, पूनम और सुरभि जैन द्वारा दी गई।सांप के भय से मुक्ति दिलाने वाले भक्तामर के एकतालिसवें श्लोक का सजीव चित्रण सरकण्डा महिला मण्ड़ल समूह द्वारा किया गया। इस प्रस्तुति को श्रीमती सविता जैन, प्रीति जैन, शालू जैन, प्राची जैन और क्षिप्रा जैन ने अपनी प्रतिभा से सजीव कर दिया। बिलासपुर जैन समाज के युवाओं के समूह लौकांतिक देव ने समुद्र और उसमें रहने वाले खतरनाक जानवरों के भय का निवारण करने वाले भक्तामर के चौवालीसवें श्लोक का खूबसूरत चित्रण किया।
इस प्रस्तुति में विकास, मयंक, वरुण और शुभम ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की। भक्तामर का पैंतालीसवां श्लोक जिसके पठन से रोग का भय दूर हो जाता है और कुरूप व्यक्ति भी रूपवान हो जाता है। इस श्लोक पर नैवेद्यम समूह से शैफाली, रितिका, प्रिया और स्वाति जैन ने मनोहारी प्रस्तुति दी। सन्मति विहार महिला मण्डल से श्रीमती मालती, सोना, मीनल, ऋषिका एवं प्राची ने भक्तामर के बेड़ियों के भय से बचाने वाले भक्ताम्बर के छियालिसवें श्लोक पर प्रस्तुति दी।
पूरे कार्यक्रम ने ऐसा समां बाँधा कि पूरा हाल खचाखच भरा रहा और सभी बिना पलक झपकाए इस कार्यक्रम का आनंद लेते रहे। सभी ने इस कार्यक्रम को निर्देशित करने वाले डॉ. श्रुति और डॉ. सुप्रीत जैन को साधुवाद दिया।