जिस मन से पाप होता है उस मनसे पाप धुलता भी है – जैन संत हर्षित मुनि

जिस मन से पाप होता है उस मनसे पाप धुलता भी है – जैन संत हर्षित मुनि

पुण्य के जाते ही पाप कर्म हमें दुख देने लगते हैं

जैन संत का चातुर्मासिक प्रवचन

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़)16 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि जिस मन से पाप होता है , उसी मन से पाप धुलता भी है। हमसे पाप होता है तो उसे धोने का प्रयास करें। चित्त को निर्मल रखें और अपने जीवन को सफल बनाएं। उन्होंने कहा कि धर्म में ज्यादा शक्ति होती है और पाप में कम शक्ति होती है। धर्म करें और पाप से अपने को दूर रखें।
उक्त उद्गार आज समता भवन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने व्यक्त करते हुए कहा कि हम दो भूल करते हैं । हमसे पहली भूल पाप करते समय होती है और दूसरी भूल पाप को छुपाते समय होती है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चाहता है कि पाप की आलोचना भी हो जाए और पाप भी छुपा रहे। वह अपने गुरु के पास छोटी-छोटी भूल को बताता है और बड़े पाप को वह छुपा जाता है। ऐसा पाप बड़ा भयंकर होता है और बाद में यह हमें कष्ट देता है। उन्होंने कहा कि आलोचना हमारे मन से माया निदान एवं इच्छा दर्शन शल्य को निकाल देती है।
संत श्री ने कहा कि अंतिम समय में जो भाव जागृत होते हैं, वहीं उसके पुनर्जन्म का कारण होता है। हमारे मन में भी माया का प्रभाव है, मिथ्यात्व का प्रभाव है, अहंकार का प्रभाव है। जब तक पुण्य है तब तक सब मौज है। मौज हमारे मन में अहंकार पैदा कर देता है किंतु जब पुण्य खत्म हो जाता है तो हमारे पाप कर्म हमें दुख देने लगते हैं। इसलिए हमें अपना मन बनाना चाहिए कि हम पापों को न छिपाकर रखें इसे प्रकट करें और जीवन को सफल बनाएं। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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