जैन संत ने कहा – जरूरतों को कम करें और सुखी रहें
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 22 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि आपको अपने घर में त्याग का आदर्श खड़ा करना चाहिए। श्रावक के ऊपर जो सांसारिक भार है, उससे उसको हल्का होना चाहिए। किसी भी भार के हल्का होने पर व्यक्ति आराम महसूस करता है। जरूरत, सुविधा और शौक यह तीनों व्यक्ति के भार को बढ़ाते हैं। जरूरत जितनी कम होगी, व्यक्ति उतना ही सुखी होगा।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि आपके अंदर का मन दुखी है, वह सुख चाहता है। आप अपनी जरूरतों को कम करें। जितनी जरूरत कम होंगी, व्यक्ति उतना ही सुखी होगा। सुविधाएं जितनी बढ़ती है, व्यक्ति उतना ही दुखी हो जाता है। शौक तो और भी दुख देता है। उन्होंने कहा कि हमारे घर में सालों से इतनी चीजें पड़ी है जिसका हमने एक या दो बार ही प्रयोग किया है। उसके बाद वह बेकार ही पड़ी है। ऐसा नहीं है कि हम किसी जरूरतमंद व्यक्ति को उस चीज को दे दें। दरअसल संग्रह की प्रवृत्ति हमारे मन में है। हम सुविधा भोगी हो चुके हैं। जरूरत से ज्यादा चीजें एकत्र करने की हमारी वृत्ति हो चुकी है। हम अपनी जरूरतों को कम करना ही नहीं चाहते।
मुनि श्री ने फरमाया कि चश्मा हमारी जरूरत है किंतु उसका फेम ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, यह हमारा शौक है। शौक भी एक नशा है, इस नशे को कम करना चाहिए। हम जरूरत की लक्ष्मण रेखा भी लांघ जाते हैं। सिर्फ व्यसन से ही हमारा शरीर एडिक्ट(नशाखोर) नहीं हो जाता, बल्कि यह सब चीजें भी हमें एडिक्ट (नशाखोर) बना देती है। उन्होंने कहा कि सुविधा और शौक कम कीजिए। जिन्होंने निवृत्ति में जीना शुरु कर दिया है वह सुविधा से भी पीछे हट जाते हैं। आपको अपने घर में त्याग का आदर्श खड़ा करना होगा। हम अपने शौक का बलिदान करें। जरूरत साधनों को घटाने की ही नहीं है, बल्कि हर चीज में निवृत्ति के लिए कदम बढ़ाएं और साधना की ओर बढ़े। सारी सुविधाओं के बीच भी व्यक्ति को अपनी जरूरतों को कम करना चाहिए। जरूरत कम करने का आनंद ही अलग होता है। आप अपना लक्ष्य बनाये कि कम से कम जरूरत में जिएंगे और सुखी रहेंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्तिमें विमल हाजरा ने दी।