इच्छा को प्रबल ना होने दें, नहीं तो यह कष्ट देगी – जैन संत हर्षित मुनि

इच्छा को प्रबल ना होने दें, नहीं तो यह कष्ट देगी – जैन संत हर्षित मुनि

सम्यक का लक्षण है जीवन में सबेरा होना

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 30 सितंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि इच्छाओं को प्रबल ना होने दें। इच्छाएं यदि बलवती होती है तो वह संज्ञा बन जाती है जो बाद में हमें कष्ट देती है। यह वह इच्छाएं होती है जो सामने कुछ भी ना हो फिर भी मन में रहती है। आहार संज्ञा होता है। हर समय खाने की इच्छा रहती है। मन तृप्त नहीं होता और पेट भरने के बाद भी खाने की इच्छा बनी रहती है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि इच्छा सबकी होती है किंतु यह इच्छा संज्ञा वाली बन जाती है तो बहुत कष्टदायी हो जाती है, क्योंकि उसे कितना भी अच्छा करके दे दो उसमें उसे कमी ही नजर आती है। पेट तो चावल से भी भर जाता है किंतु संज्ञा वाली इच्छा के लिए यह तृप्ति कारक नहीं होता। वह हर रोज एक ही चीज को दोबारा खाना पसंद नहीं करता। कई बार तो खाना खाने के बाद भी अच्छे खाने की भूख बनी रहती है। मन को तृप्ति नहीं होती है।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि इस संसार में फंस गए तो क्या हुआ । एक बार तो जीवन का अनुभव लीजिए। संतो के साथ विहार करके देखें तो आपको पता चलेगा कि अजैनों में भी भक्ति होती है। वे संतो के साथ बिहार करने वाले लोगों से भी भोजन के लिए मनुहार करते हैं। उन्होंने कहा कि शक्ति का प्रयोग करना बुद्धिमानी है किंतु शक्ति का सदुपयोग करना चाहिए। शक्ति का गलत जगह और गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाथ देखने के लिए शक्ति चाहिए, सिद्धि चाहिए। किताब पढ़ लेने से ही ज्ञान नहीं हो जाता। हमारी चित्त की प्रसन्नता के लिए हमें भविष्यवाणी पर नहीं कर्मों पर विश्वास करना चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि सम्यक का लक्षण है जीवन में सबेरा होना। मन में ताजगी आना। सम्यक आता है तो व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए गलत कामों के प्रति पछतावा होता है। उन्होंने कहा कि हम अपना मन बनाएं कि हमारे जीवन में सबेरा हो तो निश्चित ही सबेरा होगा और हमारा जीवन धन्य होगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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