संघ का हम पर काफी ऋण है जिसे उतारने के लिए कार्य करें
*राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 12 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि समता का अर्थ समझौता नहीं हो सकता बल्कि समर्पण होता है। आप का भाव यदि समर्पण का है तो आप सहज ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण से सहायता के लिए दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही उनके पास गए थे। श्री कृष्ण उस समय सो रहे थे। दुर्योधन पहले पहुंचे और उन्होंने श्री कृष्ण के सिर के पास खड़े होकर श्री कृष्ण के जगने की प्रतीक्षा की जबकि अर्जुन समर्पण भाव से श्री कृष्ण के पास पहुंचे थे,उन्होंने श्री कृष्ण का चरण स्थान चुना। श्री कृष्ण नींद से उठते ही सबसे पहले अर्जुन को देखा और उनके आने का कारण पूछा फिर दुर्योधन की ओर देखा और उनके आने का कारण पूछा। दोनों ने ही अपनी इच्छा बताई।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि दोनों की इच्छा जानकर श्री कृष्ण ने कहा कि एक ओर उनकी चतुरंगी सेना होगी और दूसरी ओर वे निहत्थे होंगे। दोनों को जो चाहिए वो चुन लें। दुर्योधन पहले आए थे और उन्हें तो चतुरंगी सेना चाहिए थी तो उन्होंने चितरंगी सेना चुना और समर्पण भाव होने की वजह से अर्जुन ने श्री कृष्ण को चुना। उन्होंने कहा कि मांग भी दो प्रकार की होती है एक तो मांगना पड़ता है और दूसरा सहज ही मिल जाता है। समर्पण भाव वाले व्यक्ति की मांग सहज ही पूरी हो जाती है। अर्जुन की इच्छा भी सहज ही पूरी हुई।श्रीकृष्ण को उन्होंने अपना सारथी बनाया।
मुनि श्री ने कहा कि सारथी पद उस समय सामान्य नहीं होता था बल्कि यह उस समय बहुत ही विशिष्ट पद होता था। सारथी को खुद को भी बचाना पड़ता है और योद्धा को भी बचाना पड़ता है। इसके अलावा अश्व व रथ को भी बचाना पड़ता है। इस पूरे युद्ध में श्री कृष्ण ने अपनी बुद्धि से पांडवों को विजेता बना दिया। उन्होंने कहा कि हम पहले आए यह महत्व नहीं रखता बल्कि हममें समर्पण भाव कितना है यह महत्व रखता है। कुछ संबंधों को बनाने के लिए व्यक्ति को पुरुषार्थ करना पड़ता है, त्याग करना पड़ता है। गुरु-शिष्य का संबंध भी वैसा ही होता है। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री नानेश के समता शब्द का अर्थ समझौता नहीं होता बल्कि समर्पण होता है।उन्होंने संघ के लिए काफी मेहनत की। उनके त्याग को भुलाया नहीं जा सकता।
मुनि श्री ने कहा कि हम अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं कि जिस संघ के लिए पूज्य गुरुदेव ने काफी भ्रमण किया और संघ को मजबूत किया, उस संघ का हम पर काफी ऋण है जिसे हमें चुकाना है। उन्होंने कहा कि आज हमारे साथ नाना गुरु नहीं है किंतु राम गुरु हैं और गुरुदेव का संघ हमारे साथ है, ऐसा मानकर या भाव लेकर हम कार्य करेंगे तो संघ का थोड़ा बहुत तो ऋण हम उतार ही पाएंगे। आज आचार्य श्री नानेश के स्वर्गारोहण और आचार्य श्री रामेश ( राम गुरु) के पदारोहण दिवस पर गौतम पारख सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।