हर दिन अपने आप को जगाएं क्योंकि सबसे ज्यादा आध्यात्मिक शक्ति मनुष्यों में होती है: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

हर दिन अपने आप को जगाएं क्योंकि सबसे ज्यादा आध्यात्मिक शक्ति मनुष्यों में होती है: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) । न्यू राजेंद्र नगर के महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने मंगलवार को कहा कि भगवान की देशना सुनने 3 गति के लोग आतेे है। भगवान की देशना सुनने की चाहत सबमें होती है, मगर जाते सब नहीं है। ऐसे भी जीव है जिन्हें भगवान की देशना सब जा नहीं सकते। नरक जाति के जीव नहीं आते है। वे परेशान होते है, कष्ट में रहते है, लाचार है।

उन्हें भगवान की वाणी सुनने का मौका मिल जाए तो वे निहाल हो जाएं। वे एक बार में ही पाप करना छोड़ देंगे, क्योंकि उनके पास पाप का प्रत्यक्ष फल है। ऐसा हो जाए तो वे दौड़े-दौड़े आ जाए लेकिन वे नहीं आ सकते क्योंकि वे पाप की सजा भाेग रहे है। भगवान की देशना लाभदायी, शुभ होती है, इसे सुनते-सुनते आदमी एकदम मग्न हो जाता है। जो दुख से पीड़ित है, वे चाह कर भी भगवान की वाणी नहीं सुन पाते है।

उन्होंने कहा कि देव के पास प्राणियों से बहुत ज्यादा शक्ति होती है। अगर देव चाह ले तो दुनिया को राख कर सकते है। उनपर भगवान की वाणी का असर नहीं होता पर मानवों पर ज्यादा हाेता है। अब बताओ कौन ज्यादा शक्ति वाला है। मनुष्य के पास आत्मिक शक्ति है, आत्मिक शक्ति का प्रगतिकरण ज्यादा है। देवों की आत्मिक शक्ति अभी प्रकट नहीं हो पाई है। वे वैभव आैर विलास में मस्त है। देव देख-सुन सकते है पर भगवान की वाणी को अपने जीवन में नहीं उतार सकते है। जिसके पास जितनी ज्यादा समृद्धि है, वह मस्ती करता है। वह अपनी आत्मिक शक्ति से दूर हो जाता है। उसका पूरा सुख साधनों पर आश्रित है। एक रात को भी वह ठीक से नहीं सो पाता, उसे नींद की गोलियाें की जरूरत पड़ती है। जिसके पास बहुत वैभव है, उसे बराबर नींद नहीं आती। दरवाजे में 2 वॉचमैन बैठकर पहरा देते रहते है। कोई घर में घुस न जाए इसके लिए अंदर कुत्ते होते है। घर के बाहर पहले से बोर्ड में लिखा होता है कि कुत्तों से सावधान, तो सोचिए आपसे ज्यादा ताकतवर कौन है।

ऋषि-मुनियों की परंपरा सिर्फ भारत में

दुनिया के किसी भी देश में ऋषि-मुनियों की परंपरा, तप-त्याग की परंपरा कहीं नहीं है। केवल भारत देश में ही यह परंपरा चली आ रही है। हमें कदर नहीं है। जबकि वर्तमान में जापान में सैकड़ों की संख्या में संस्कृत के स्कूल और काॅलेज खुल चुके है। बच्चें आजकल हिंदी नहीं जानते, उन्हें इंग्लिश की बुक थमा तो वे फटाफट उसे रटना शुरु कर देंगे। जैन सूत्र पढ़ना तो बहुत दूर की बात है। अपनी मौलिक चीजों पर आप कमजोर है, दूसरों की चीजों पर आप मजबूत हो। इससे बड़ा हमारा नुकसान क्या होगा। आज हर बच्चा इंग्लिश पढ़ सकता है, पर हिंदी हर कोई नहीं पढ़ सकता है। साध्वीजी ने बताया कि वर्ष 2013 में नागपुर में चातुर्मासिक प्रवचन चल रहा था। इसे सुनने के लिए जापान से आदमी आया था। लोगों ने उसे आगे आने को कहा। लोग अंग्रेजी भाषा में उसे कह रहे थे, पर वह समझ नहीं रहा था। जबकि भारत आने पर उसने हिंदी से जापानीज में अनुवाद के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया था। लोग हमारी परंपरा को जानने विश्वभर से लोग भारत आते है। वह आदमी जैन साधुओं से मिलकर जैन आदम के बारे में जानकारी लेने आया था। उसे जिनवाणी से प्रेम था, उसे जैन आदम के बारे में जानना था।

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