जीवन का पहला सुख हैनिरोगी काया- जैन संत  हर्षित मुनि

जीवन का पहला सुख हैनिरोगी काया- जैन संत हर्षित मुनि

कुछ पाने की आस में आराधना ना करें, सब कुछ अपने आप मिल जाएगा

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ)31 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि व्यक्ति के जीवन का सबसे पहला और सबसे बड़ा सुख है निरोगी काया। उन्होंने कहा कि काया निरोगी रहेगी तो व्यक्ति को सब कुछ अच्छा लगता है। ध्यान और ज्ञान अर्जन करने में मन लगता है। आने वाला कल कैसा होगा इसके लिए व्यक्ति अपने मन में निर्णय ले लेता है। हम किसी चीज को लेकर सुखी हैं फिर भी दूसरे की कोई वस्तु को देखकर हम चाहते हैं कि यह वस्तु हमारे पास भी हो। हम उस वस्तु को पाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं। दरअसल आकर्षक वस्तुएं मन को भी आकर्षित करती है।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज समता भवन में अपने नियमित प्रवचन में कहा कि जिस साधना से आपको जो प्रतिफल मिलना है उससे नीचे का फल यदि हम मांगते हैं तो वह हमें मिल जाता है किंतु उसके ऊपर का फल नहीं मिलता। आराधना करने पर अगले भव में निरोगी काया, संपत्ति, वैभव सब कुछ मिलता है । वह मांगता नहीं फिर भी उसे सब कुछ मिलता है। जो मांगता है उसे भी अगले भव में सब कुछ मिलता है किंतु वह टिकता नहीं है। जब बिना मांगे ही सब कुछ मिल जाता है तो फिर मांगना ही क्यों! आसक्ति हमें दुख देती है। मांगना ही है तो धर्म मांगिए, निरोगी काया मांगिए। सबसे अच्छा यह है कि भगवान से हम यह मांगे कि हमारी मांगने की आदत ही छूट जाए और यदि यह नहीं मांग सकते तो यह मांगे कि अहो भाव में हमारी काया निरोगी रहे।
मुनि श्री ने फरमाया कि मान, क्रोध, प्रमाद ,आलस्य और रोग वाले व्यक्ति को ज्ञान नहीं पचता। उन्होंने कहा कि हम केवल निरोगी काया मांग कर शांत न बैठ जाएं बल्कि काया निरोगी रहे इसके लिए पुरुषार्थ करें। कुछ पाने की आस में आराधना ना करें बल्कि कोई भी कार्य करें तो मन में गांठ बांध लें कि मेरी आत्मा पर अनंत अनंत कर्ज है और वह मेरा काला कर्म ही है जो मुझे दुर्गति में भटका रहा है। हम उस कर्ज को उतार रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी धारणा कोष को बदलने का नाम ही साधना है। हम यह सोचे कि यह साधना निर्जरा है और यह हमारी आत्मा को शुद्ध कर रही है। हमारी काया निरोगी रहें और हमारा ध्यान धर्म में लग रहे यही कामना कर साधना करेंगे तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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