*वचन को साधे तो मन अपने आप सध जाएगा*
*राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) एक नवंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मनुष्य की बुद्धि दो प्रकार की होती है एक सत और दूसरा सूक्ष्म। सत बुद्धि वाला व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकारता है और अपने में सुधार लाता है। उन्होंने कहा कि जब तक व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वयं नहीं स्वीकारता तब तक उसका सुधार संभव नहीं है।*
जैन संत ने कहा कि जब तक हम यह ना माने कि मेरी बुरी दशा का कारण मैं ही हूं तब तक हम अच्छी दशा के लिए पुरुषार्थ नहीं करते। उन्होंने कहा कि पानी वही है, केवल जगह-जगह पर उसके उपयोग का महत्व होता है। इसी तरह गुण वही है, उसे ग्रहण करने वाला पात्र होना चाहिए। वस्तुत यह संसार जितना बाहर नहीं है, उतना हमारे भीतर है। बुद्धि दो तरह की होती हैं सत और सूक्ष्म। सूक्ष्मता का अर्थ होता है जितनी गहराई से गहराई में जा सके। सूक्ष्म सोच के कारण ही अविष्कार हुए हैं, किंतु इतनी सूक्ष्म सोच के बावजूद भी लड़ाइयां हो रही है ।इसका कारण उस सूक्ष्म बुद्धि के साथ सत नहीं है। बच्चों को सत संस्कार दीजिए। बुद्धि सूक्ष्म हो तो चलेगा किंतु साथ में सत बुद्धि अवश्य होनी चाहिए। हम प्रभु से मांगते हैं आरोग्य और बोधि। आरोग्य अर्थात निरोग और बोधि यानि बुद्धि। हमें प्रभु से मांगना चाहिए कि हमें सूक्ष्म बुद्धि न मिले तो चलेगा किंतु हमें सत बुद्धि अवश्य दें। सत के संस्कार आगे चलकर आप से दुर्व्यवहार करने से बच्चों को रोकेंगे। पीड़ित को सहायता के लिए आगे बढ़ाएंगे। सत व्यक्ति का भाव बनकर रक्षा करता है। हमने सत को अभी तक निभाया नहीं है, यदि निभाया होता तो इसकी ताकत का हमें पता चलता। हम यह क्या कर रहे हैं ! इस दुनिया में हम सहज और सरल हो कर आए थे किंतु असत और कपटी होकर जा रहे हैं। सत को अपनाएं और अपने जीवन को सफल बनाएं।
समता भवन में आज अपने प्रवचन में संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि मन हमारा साथ देने वाला नहीं है। हम वचन को साधे। इस वचन को पकड़ ले तो मन अपने आप सध जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारी बुद्धि सत बने, सूक्ष्म बने तो बहुत अच्छा किंतु इसके साथ सत भी हो। हमने यदि सत बुद्धि हो तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।