दुख एक बार आता है चला जाता है किंतु दोष रहता है और दुख उत्पन्न करता है
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ)दो नवंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि प्रत्येक देश की अपनी करेंसी होती है जो सिर्फ वहीं चलती है। एक ऐसी करेंसी होनी चाहिए जो सब जगह चले और ऐसी ही एक करेंसी है वह है संस्कार। यह करेंसी सद्गति के लिए भी काम आती है। उन्होंने कहा कि सामान्य पुण्य व्यक्ति के दुखों को दूर करता है। वह दोषों की भीड़ को दूर करता है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि दुख आते हैं और चले जाते हैं किंतु दोष आसानी से नहीं जाते। दोष, दुख उत्पन्न करता है। रोग को दूर करने लोग घंटों लाइन में लग जाते हैं किंतु ज्ञान पाने के लिए लोग 10 मिनट भी नहीं निकाल पाते। पुण्य साधन देता है और साधन पाप और दोष लाते हैं। अगर जागृत होना है तो विचार कीजिए कि पानी गिरता है और बंद हो जाता है किंतु जमीन पर निशान बन जाता है। फिर पानी गिरता है तो पानी उसी निशान के रास्ते आगे बढ़ता है। इसी तरह से हमारे पाप कर्म हैं जो दिल में निशान कर जाते हैं और हमारा मन बार-बार पाप कर्म करने को कहता है। हम इससे बचे रहें।
जैन संत ने कहा कि परिवर्तन तो आता है किंतु बात है उस परिवर्तन को निरंतर बनाए रखने की। हमारा संस्कार बना रहे। यह संस्कार दृढ़ रहेंगे तो हमें कोई डिगा नहीं पाएगा। यह एक ऐसी करेंसी है जो हर जगह चलेगी। उन्होंने कहा कि कमजोर मन की पहचान है कि वह विचारों में घिर जाता है,संस्कार दृढ़ रहेंगे तो व्यक्ति विचारों की उलझन में नहीं उलझेगा और यह संस्कार हमें सुखद भविष्य भी देंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।