साधना की गति मन के अनुसार नहीं संकल्प के अनुसार होती है
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ)तीन नवंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि छोटे-छोटे संकल्पों से चित्त को निर्मल बनाएं। साधना की गति मन के अनुसार नहीं बल्कि संकल्प के अनुसार होती है। हमें ऐसा चित्र बनाना होगा जो दर्पण के सामने रखी गई प्रतिबिंब के हुबहू हो।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मन की कल्पनाओं से मोक्ष नहीं मिल सकती और ना ही मन की कल्पनाओ से शांति एवं समाधि मिल सकती है। मन और जिव्हा के बीच सपाट हाईवे है। मन अगर असम्मानजनक तरीके से किसी को तू बोलता है तो जिव्हा भी सीधे तू बोल देती है। जिस तरह हाईवे में जगह-जगह ट्रैफिक प्वाइंट होते है और वह स्पीड को कंट्रोल करते हैं। ठीक उसी तरह हमें मन और जिव्हा के बीच हाईवे में छोटे-छोटे संकल्पों के ट्रैफिक प्वाइंट लगाने होंगे जो इस स्पीड को कंट्रोल करें और हमसे सम्मानजनक शब्दों का उपयोग हो। यदि हम इस एक चीज को नमा (झुका) देंगे तो कई चीजों को नमा देंगे। जो एक को नमाता है, वह कई को नमा देता है। यदि आपको साल्यूशन आ गया तो आप कई प्रश्नों का हल निकाल लेंगे।
जैन संत ने फरमाया कि छोटे-छोटे संकल्पों से ही परिवर्तन आता है। जीवन को यदि आगे बढ़ाना है तो छोटे-छोटे संकल्प अवश्य लें। बहुत सारी आदतें हमें घरवालों से मिली है लेकिन कुछ आदतें हमें स्वयं डेवलप करनी होगी। उन्होंने कहा कि आप इस चातुर्मास में कुछ ना कर पाए तो कम से कम छह संकल्प अवश्य लें और यदि इन सब का पालन न कर सके तो कम से कम दो संकल्पों का पालन अवश्य करें। उन्होंने छह संकल्पों के बारे में बताया कि 1. धर्म रहते हुए कच्चे पन में ना जिएं। 2. खाना खाते समय मोबाइल का त्याग करें। 3. नित्य एक सामायिक करें। 4. साल भर में 52 समता शाखा अटेंड करें। 5. सूर्योदय के बाद तक ना सोए। 6. महीने में चार शुद्ध नवकारसी करें। उन्होंने कहा कि हम छोटे-छोटे संकल्पों का पालन करेंगे तो हमारा जीवन सुधर जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।