ऐसे जागृत हो कि पाप कर्मआपको दिखे- जैन संत हर्षित मुनि

ऐसे जागृत हो कि पाप कर्मआपको दिखे- जैन संत हर्षित मुनि

दूसरों के दुख से दुखी होने वाला ही इंसान है

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़)आठ नवंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि व्यक्ति जब जब दुख में गया है , तब तब उसने सुख को याद किया है। जब सुख मिल गया तो वह दुख को भूल ही गया। उन्होंने कहा सांसारिक लोग सोए हुए हैं और मुनि उन्हें जागृत करने में लगे हुए हैं। जागृत वह व्यक्ति होता है जिसे अपने कर्तव्यों का बोध होता है। संत श्री ने कहा कि आप ऐसे जागृत हो कि आपके पाप कर्म आपको दिखे। उसकी आलोचना करें और जीवन को धन्य बनाएं।
समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि जो व्यक्ति दूसरों के दुख में खुश होता है, वह व्यक्ति इंसान नहीं हो सकता। इंसान तो वह है जो दूसरों के दुख को देखकर दुखी होता है। आप भाव धारण करते हैं और यही भाव से पाप कर्म बंध होता है। उन्होंने कहा कि अपने दुख में हर व्यक्ति दुखी होता है किंतु दूसरों के दुख में दुखी होने की भावना जब तक हमारी जागृत नहीं हुई तो हम इंसान नहीं हैं। अंतर की भावना से ही अगला भव तय होता है। व्यक्ति के भीतर पशुता है तो व्यक्ति अगला भव पशु का ही धारण करता है। यदि व्यक्ति के भीतर इंसानियत है तो वह अगला भव इंसान का प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि आप अपने दोषों के लिए दुख व्यक्त करें और उसकी आलोचना कर प्रायश्चित करें। पाप की जब तक आलोचना नहीं होती तब तक वह याद रहता है और उसका प्रायश्चित भी नहीं हो पाता।
संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि हम भगवान के विरह में दुखी हों और जागृत होकर आराधना करें तो हमारा जीवन सफल होगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

Chhattisgarh