राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़)। शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजित दिनांक- 13 नवंबर 2022, रविवार को ” मुक्तिबोध का साहित्य – युगबोध और प्रवृत्तियाँ ” पर गजानन माधव मुक्तिबोध की 105 वीं जयंती के समापन अवसर पर हिंदी विभाग द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार पाठकजी ( पूर्व अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, प्रख्यात समीक्षक, भाषाविद, साहित्यकार, बिलासपुर थे, अध्यक्षता डॉ. अरुण कुमार यदुजी (वरिष्ठ कवि, समीक्षक ) बिलासपुर ने किया। मुख्य अतिथि की आसंदी से उदबोधित उदगार के उपक्रम में प्रख्यात समीक्षक एवं भाषाविद डॉ. विनय कुमार पाठकजी ने कहा कि यदि महाकवि केशव कला के निकष पर कठिन काव्य का प्रेत निर्दिष्ट होते है तो संवेदना और गहन वैचारिकता के वृत्त में मुक्तिबोध भी क्लिष्ट कवि कहलाते है। डॉ. पाठकजी ने अनेकानेक उदहारणों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि युक्तिबोध आत्मालोचक के आश्रय से मुक्ति का मार्ग अन्वेषित करते है।डॉ. पाठकजी ने आगे कहा कि भारतीय दर्शन का गंतव्य है कि शरीर मरता है जबकि आत्मा अमर है, जबकि मुक्तिबोध महसूस करते है कि आत्मा को मारकर लोग तन को सजाते -सँवारते है, संस्कृति की नींव पर सम्यता का भवन खड़ा करते है जो पाश्चात्य प्रभाव का प्रतिफ़लन और प्रकारांतर में पूंजी को सर्वोच्च सत्ता के रुप में प्रस्थापन – बतौर प्रयुक़्त हुआ है। डॉ. ए.के. यदु कवि एवं समीक्षक बिलासपुर ने जहाँ मुक्तिबोध के व्यक्तितत्व एवं कृतित्व पर सांगोयांन प्रकाश डाला, वही डॉ. राजन यादव (मुक्तिबोध मेयता ), डॉ. राजेश श्रीवास (मार्क्सवाद )पूंजीवादी सभ्यता, श्रीमती विमला नयक शोधार्थी आत्म -संघर्ष, , श्री जीतेन्द्र – शोधार्थी कहनियों मे, पूरन कुमार -काव्य मे फैंटेसी, टालीन कुमार (कामायनी पर पुनर्विचार ), चैतराम यादव -शोधार्थी (चना प्रवृत्ति ) पर अपने शोधपत्र वाचन और विचार प्रस्तुत किए।इस कार्यक्रम मे डॉ. देवेन्द्र चौबे, प्राध्यापक (भारतीय भाषा केंद्र, जे. एन. यू, नई दिल्ली ), डॉ. के. एल. टाण्डेकर (प्राचार्य), डॉ. शंकर मुनि राय ( विभागाध्यक्ष -हिंदी विभाग )एवं समस्त प्राध्यापकगण एवं शोधार्थी उपस्थित थे।