दुर्ग (अमर छत्तीसगढ़) चाहे जो मजबूरी हो रोज एक समय सामायिक जरूरी है कि हमेशा प्रेरणा देने वाले सामायिक स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक जैन संत श्री शीतल मुनि जी महाराज का आज 53 वा दीक्षा दिवस जय आनंद मधुकर रतन भवन के सभा गृह में 250 से अधिक साधकों ने आज 5 सामायिक कर 11 सौ से अधिक समायिक की भेंट दीक्षा दिवस पर अपने गुरुदेव शीतल मुनि को भेंट स्वरूप दी ।
19 जनवरी सन 1948 में जन्मे शीतल मुनि सन 1970 को 22 वर्ष की उम्र में दीक्षा धारण कर संयम जीवन प्रारंभ किया और आज उन्होंने 53 वर्ष पूर्ण किए ।
53 वर्ष के इस संयमी जीवन में शीतल मुनि जी को कुशल सेवा मूर्ति, महात्मा ,महास्थविर, कठोर तप साधक आडाआसन त्यागी ,कुशल सेवा मूर्ति जैसी पदवी से भी अलंकृत किया जा चुका है
पानी जमा देने वाली बर्फीली शीतलहर ही क्यों ना हो केवल एक सादा चादर और चोलदुपप्टा रखकर जीवन जीना आड़ा आसन त्यागी ताउम्र कभी भी लेट कर नहीं सोना अर्थात खड़े-खड़े या बैठे-बैठे निद्रा लेना प्रतिदिन 12:00 से 2:00 बजे तक प्रखर सूर्य की ताप लेना इनके जीवन का हिस्सा हे प्रतिदिन का कार्य हे
कड़क ठंड हो या नौतपा वाली गर्मी हो हर समय एक ही क्रिया में हमेशा लीन रहते हैं ।
दीक्षा स्वर्ण जयंती वर्ष पर गुरुदेव शीतल मुनि जी के जीवन दर्शन पर साधना से शिखर की ओर नामक ग्रंथ का प्रकाशन भी गुरु भक्त परिवार की ओर से किया जा चुका है । आपकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से अखिल भारतीय सामायिक स्वाध्याय संघ का गठन भी हुआ है । जिसकी देशभर में विभिन्न शाखाएं कार्यरत है इस वर्ष दुर्ग शहर में 2023 का चातुर्मास शीतल मुनि का चातुर्मास होने जा रहा है ।
आज प्रातः 6:30 श्रमण संघ परिवार के सदस्य प्रत्येक रविवार को सामायिक स्वाध्याय की साधना प्रारंभ की जिसमें बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे ।
पूज्य गुरुदेव शीतल मुनि जी महाराज के सानिध्य में जय आनंद मधुकर रतन भवन में सामायिक स्वाध्याय की साधना प्रारंभ हुई प्रत्येक सदस्यों ने पांच सामायिक की साधना करते हुए लगभग 11 सौ से अधिक सामायिक साधना की भेंट गुरुदेव श्री शीतलराज जीके चरणो मे दीक्षा दिवस पर भेंट स्वरूप अर्पण की धर्म सभा को संबोधित करते हुए सामायिक स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक शीतल मुनि ने कहा सामायिक से धार्मिक आत्म गुणों का विकास होता है । समायिक साधना प्रारंभ करने से स्वाध्याय, जप , ध्यान संयम की भावना जीवन के अंदर वृद्धि होती है उन्होंने कहा आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा के स्वरूप में रूपांतरण की प्रक्रिया सामायिक से प्राप्त होती है ।
आर्तध्यान रौद्र ध्यान को त्याग कर पाप क्रियाओं से निवृत होना और प्रकृति प्रकृति को समभाव में रखना ही सच्ची सामायिक है उन्होंने आगे कहा आत्मा अजर अमर अविनाशी है यह सच्चा ज्ञान है जो सामायिक से ही प्राप्त होता है ।
सामायिक साधना के पश्चात साधना करने वालों के गौतम प्रसादी की व्यवस्था जय आनंद मधुकर रतन भवन में गौतम चंद नीतीश कुमार ओसवाल परिवार के द्वारा रखी गई थी तथा प्रभावना के लाभार्थी मदनलाल एवं एवंताकुमार छाजेड़ परिवार थे ।
प्रचार प्रसार प्रमुख श्रमण संघ दुर्ग नवीन संचेती ने उक्त जानकारी दी।