जैन संत श्री विराग मुनि के अभिग्रह पूर्वक 124 उपवास जारी, सुखशाता की मंगलकामना हेतु दादागुरुदेव की बड़ी पूजा

जैन संत श्री विराग मुनि के अभिग्रह पूर्वक 124 उपवास जारी, सुखशाता की मंगलकामना हेतु दादागुरुदेव की बड़ी पूजा

भगवान महावीर स्वामी ने साधना काल में अभिग्रह पूर्वक 5 माह 25 दिन किया था उपवास , चंदनबाला ने कराया था पारणा

बिलासपुर (अमर छत्तीसगढ़) खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वर जी म सा हस्ते प्रतिष्ठित चमत्कारी श्री जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी भैरव सोसायटी में अमावस्या के पावन अवसर पर 19 मई शुक्रवार को दादागुरुदेव की बड़ी पूजा कर जैन संत श्री विराग मुनि के अभिग्रह पूर्वक जारी 124 उपवास की सुखशाता की मंगलकामना की जावेगी उक्ताशय की जानकारी श्री सीमंधर स्वामी जैन मंदिर व दादाबाड़ी ट्रस्ट के अध्यक्ष सन्तोष बैद व महासचिव महेन्द्र कोचर ने दी । श्री विराग मुनि द्वारा आत्मकल्याण सह विश्वकल्याण की भावना से अभिग्रह पूर्वक 15 जनवरी से लगातार जैन उपवास जारी है , 16 मई को 121 उपवास का पारणा महोत्सव संभावित था लेकिन सभी अभिग्रह पूर्ण न होने पर श्री विराग मुनि ने अपने गुरु आगम ज्ञाता , युवा हृदय सम्राट , सरल स्वभावी प पु गणाधीश , पन्यास प्रवर , गणिवर्य श्री विनयकुशल मुनि जी म सा की अनुमति व आशीर्वाद से 122 वां उपवास जारी रखा , आज 18 मई को 124 वां उपवास जारी है । महेन्द्र कोचर ने बताया कि जैन धर्म के इतिहास में अभिग्रह पूर्वक उपवास श्रेष्ठ तप का उल्लेख मिलता है ।

भगवान महावीर स्वामी ने अभिग्रह पूर्वक उपवास किया था । भगवान महावीर साधनाकाल में वैशाली से चातुर्मास पूर्ण कर कौशांबी आए, पौष कृष्ण एकम के दिन असंभव सा अभिग्रह लिया कि ” मैं ऐसी राजकुमारी से भिक्षा लूंगा, जिसे दासी बना दिया गया हो, वह भी उस शर्त में जब उसका सिर मुड़ा हो, हाथों में हथकड़ी व पैरों में बेड़ियां पड़ी हो , वह तीन दिन से भूखी प्यासी हो, वह न तो घर के अंदर हो और ना ही घर से बाहर हो, बहराने के लिए उसकी टोकरी में केवल उड़द दाल के बाकुले हो उसके होठों पर मुस्कान हो तथा आंखों में आंसू हो जब तक मेरा अभिग्रह पूरा नही हो जाता मैं पारणा नहीं करूंगा “। उसके बाद एक-एक कर दिन बीतते गए और दिन महीनों में बदल गये पर भगवान महावीर गोचरी के लिए जाते और खाली हाथ वापस आ जाते लोगों में कौतूहल बढ़ गया, प्रभु आते हैं पर भिक्षा नही लेकर जाते, लोग चिंतित हो उठे , 5 माह 25 दिन बाद भगवान महावीर प्रतिदिन अनुसार गोचरी हेतु भ्रमण कर रहे थे तब उनकी भेंट चंदनबाला से हुई, जो एक राजकुमारी थी वह गणिका के हाथों बेची गई थी, उसका सिर मुड़ा हुआ था, वह 3 दिन से भूखी थी, वह ना घर के अंदर थी और न हीं घर के बाहर थी जब उसने देखा कि प्रभु आ रहे हैं तो उसके होठों पर मुस्कान आ गई, वह अपनी पीड़ा के कारण दुखी थी तो उसकी आंखों में आंसू थे, और उसके पास सिर्फ और सिर्फ उड़द दाल के बकुले ही थे। इस प्रकार से चंदनबाला ने प्रभु महावीर को भिक्षा दी और प्रभु महावीर का अभिग्रह पूर्ण हुआ देवताओं ने पुष्प बरसाए और अहो दानम्! अहो दानम्! का नाद हुआ। बाद मे यही चंदनबाला भगवान महावीर कि प्रथम साध्वी बनी। चन्दनबाला प्रभु महावीर कि साध्वी संघ कि प्रमुख बनी थी। भगवान महावीर के अभिग्रह का उद्देश्य दासता से मुक्ति थी। 600 ईसा पूर्व मे जब स्त्रीयों को अधिकार नही था और दास प्रथा का बोलबाला था तब प्रभु महावीर ही वह प्रथम नायक थे, जिन्होंने स्त्रीयों को धर्म का अधिकार दे कर उन्हे सशक्त किया था, उन्होनें दासता से मुक्ती करवाकर दास प्रथा पर प्रहार किया था। अमावस्या को दादागुरुदेव की बड़ी पूजा के लाभार्थी जयचंद रमेश , मोहन चंद बच्छावत , दिनेश कुमार जैन , बसंत जितेन्द्र नाहर , नीलमचंद डॉ अंशुल बरड़िया , वर्तिका वर्धमान वैभव चोपड़ा , गुमान चंद कांतिलाल झाबक , संतोष सरला बैद परिवार हैं ।

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