रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 22 जून। चातुर्मास का जैन धर्म में खास महत्व है। जैन धर्म में चातुर्मास के कई नियम और उपदेश हैं। जैन समाज का चातुर्मास 28 जून से शुरू होगा। वैसे चातुर्मास 4 महीने का होता है, लेकिन इस बार अधिकमास होने के कारण 5 महीने का होगा। इस साल सावन के महीने में अधिकमास लग रहा है, इसलिए सावन एक की बजाय दो महीनों का हो जाएगा. इस प्रकार चातुर्मास का भी एक महीना बढक़र पांच महीने का होगा.
चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। यदि वर्षभर जो विशेष परंपरा, व्रत आदि का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। चातुर्मास में महापर्व सम्वत्सरी भी आता है। यह चार माह व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयास भी है।
चातुर्मास का अर्थ है-चार मास के लिए साधु-साध्वियों का एक स्थान पर ठहरना। चातुर्मास का आरंभ वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण सभी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं और जीव-जंतुओं की उत्पत्ति भी बढ़ जाती है अत: जीवों की रक्षा और संयम -साधना के लिए चार मास तक साधु-साध्वियों को एक स्थान पर रुकने का शास्त्रीय विधान है। अपवाद स्वरूप ही साधु चातुर्मास में अन्यत्र जा सकते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि संघ पर संकट आने अथवा किसी स्थविर या वृद्ध साधु की सेवा के लिए साधु चातुर्मास में दूसरे स्थान पर जा सकता है अन्यथा उसे चातुर्मास में एक स्थान पर रुकने का शास्त्रीय आदेश है।
जैन धर्म में चातुर्मास की परम्परा अत्यंत प्राचीन है। स्वयं श्रमण भगवान महावीर ने अपने जीवन में विभिन्न क्षेत्रों में चातुर्मास किए। उन्होंने अपना अंतिम 42वां चातुर्मास पावापुरी में किया था। यहां उन्होंने अपना अंतिम उपदेश तथा देशनाएं दी थीं जो जैनों के प्रसिद्ध आगम ‘उत्तराहयमन सूत्र’ में संकलित हैं। अपने इस अंतिम चातुर्मास में भगवान महावीर ने अपने प्रधान शिष्य गौतम स्वामी को प्रतिबोध देते हुए कहा था-‘समयं गोयम मा पमाए’अर्थात ‘‘हे गौतम! संयम साधना के लिए एक क्षण भी आलस्य मत करो।’’
भगवान महावीर का यह संदेश केवल गौतम स्वामी के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक साधक के लिए था। जैन धर्म में सामाजिक तथा धार्मिक दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान महावीर ने चातुर्मास में इसकी गवेषणा इसलिए की थी कि व्यक्ति समाज में रहते अनेक प्रकार के मन-मुटावों का शिकार हो सकता है अत: महापर्व सम्वत्सरी में इनका सुधार कर लिया जाए। यह धारणा एक स्वस्थ और सभ्य समाज की गारंटी है। इस प्रकार जैन धर्म में चातुर्मास का सामाजिक और धार्मिक महत्व तो है ही व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयत्न भी है।