देशी खेल – स्वस्थ्य मनरंजन के मूल आधार – द्विवेदी

देशी खेल – स्वस्थ्य मनरंजन के मूल आधार – द्विवेदी

      राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 7 अगस्त। देश-प्रदेश में अति प्राचीनकाल से देशी खेलों की उल्लेखनीय परंपराओं को पुन: जीवंत करने के महत्तम परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारप्रज्ञ प्राध्यापक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशिष्ट सामयिक चिंतन विमर्श टीप में बताया कि हमेशा से देशी खेल स्वस्थ मनरंजन एवं सर्वसमाज सम्मिलन के मूल आधार रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि देशी खेल सहज सरल रूप से उपलब्ध स्थान एवं सुविधाओं, बिना निर्धारित क्रीड़ा सामग्री के एवं बिना शिक्षण-प्रशिक्षण के सभी सामाजिक वर्गो, सर्व आयु समूहों बाल-किशोर-प्रोढ़ महिला-पुरूष आदि सभी के लिए ऋतु पर्व अनुसार आयोजित होते आये हैं। वस्तुत: देशी खेल प्रकृति अनुकूलित जीवनचर्या के साथ पूर्ण स्वस्थ्य रहने एवं सदैव क्रियाशील रहने की अनुपम अभिप्रेरणा देते हैं। देशी खेलों में विशेष रूप से कबड्डी, लम्बी-ऊंची दौड़-कूद, खो-खो, कुश्ती, रस्सीकूद, रस्सा खींच, मल-खम, गिल्ली-डंडा, पिट्टूल, बांटी-कन्चा, बिल्लस, सांख्ली, फुगड़ी, भौंरा, लंगडी-गैंडी दौड़ आदि सभी खेल सभी में अपार साहस-जोश एवं स्फूर्ति भरकर सक्रिय रचनात्मक खुशहाल जीवन जीने के लिए सहज-सरल रूप से तन-मन दोनों को तैयार करते हैं।

आगे डॉ. द्विवेदी ने विशेष रूप से आह्वान किया कि देश-प्रदेश क्षेत्र में जहां अधिकतम ग्रामीण जनसंख्या और मध्यम वर्ग समूह निवास करते हैं उनके लिए देशी खेलों को नित्य जीवनचर्या का अंग बनाकर स्वस्थ्य खुशहाल रखा जा सकता है तथा स्वस्थ्य-समृद्ध -खुशहाल देश-प्रदेश की अवधारणा  को सफल साकार किया जा सकता है आइये देशी खेलों को नित्य जीवनचर्या अभिन्न अंग बनायें।  

Chhattisgarh