गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मोर्चा खेल खोलते हुए यहां तक कह डाला कि हमें – ” हिंदी की गुलामी ” मंजूर नहीं ! ……जब अपनों ने ही लूट लिया

गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मोर्चा खेल खोलते हुए यहां तक कह डाला कि हमें – ” हिंदी की गुलामी ” मंजूर नहीं ! ……जब अपनों ने ही लूट लिया

त्वरित प्रतिक्रिया… (डॉ सूर्यकांत मिश्रा राजनांदगांव)


हिंदी भाषा को लेकर एक द्वंद छेड़ दिया गया है । हिंदी भाषा सभी के द्वारा स्वीकारी जानी चाहिए । गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मोर्चा खेल खोलते हुए यहां तक कह डाला कि हमें – ” हिंदी की गुलामी ” मंजूर नहीं ! क्या इस बात को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री नहीं मानते की किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा से ही होती है! दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि गृह मंत्री अमित शाह ने सभी क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करते हुए अपना बयान महज इसलिए दिया कि भारतवर्ष को उसकी हिंदी भाषा की पहचान मिल सके । मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने गृहमंत्री के कथन को पूर्णरूपेण समझने से पहले ही पलटवार कर इस बात को सिद्ध कर दिया है कि उन्हें हिंदी की सही समझ ही नहीं है ! अपने ट्वीट में एम के स्टालिन में लिखा है – अमित शाह गैर हिंदी राज्यों पर जबरदस्ती हिंदी थोपना चाहते हैं । तमिलनाडु इसे स्वीकार नहीं करेगा । हम कहना चाहते हैं कि तमिलनाडु भारतवर्ष का अभिन्न अंग है उसे भी अपनी पहचान स्वरूप भारतवर्ष और हिंदी भाषा का परिचय देना ही होता होगा । कारण यह कि देश के अधिकांश हिस्सों में हिंदी बोलने,लिखने और कामकाज की भाषा बनी हुई है । एम के स्टालिन ने यह कहते हुए सारी हदें पार कर दी हम हिंदी भाषा के गुलाम नहीं बनेंगे ! उन्होंने कर्नाटक और पश्चिम बंगाल का जिक्र करते करके अमित शाह के हिंदी स्वीकृति वाले बयान के खिलाफ एक प्रकार से ऐसी जंग छेड़ने का प्रयास किया है ,जो आंतरिक कलह का कारण बन सकती है ।
हमें यह कहते हुए गर्व महसूस होना चाहिए कि भारतवर्ष की कर्ण प्रिय भाषा हिंदी को सम्मान दिलाने किसी सरकार ने अपने लोगों से ही निवेदन के माध्यम से प्रयास तो किया । अमित शाह ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि हिंदी किसी क्षेत्रीय भाषा के साथ प्रतियोगी रूप में खड़ी नही

तात्पर्य यह कि उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं का निरादर न कर उन्हें भी सम्मान ही प्रदान किया । तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को अपने जल्दबाजी वाले ” हिंदी की गुलामी ” स्वीकार नहीं बयान पर पलटवार भी सहना पड़ा । तमिलनाडु के ही भाजपा प्रमुख अन्नामलाई ने यहां तक कह डाला कि एम के स्टालिन को ना तो हिंदी आती है और ना ही अंग्रेजी ! यही कारण है कि उन्होंने अमित शाह के बयान को पूर्णरूपेण समझा ही नहीं । मुझे तो स्टालिन के बयान ने सबसे बड़े शायर मिर्जा गालिब की लाइनें याद दिला दी है जो कुछ इस तरह है :-
” हमें तो अपनों ने लूटा , गैरों में कहां दम था
मेरी कश्ती थी वहां डूबी , जहां पानी ही कम था
लूट कर हमको पाया भी क्या था ,
मेरे पास तो लूटने के लिए बस यादों 
का समुंदर था ,
मेरी कश्ती भी पहुंची थी किनारे तक ,
साहिलों के पास तो , रास्ते का न मंजर था
बहुत भटके थे मंजिल , तक पहुंचने के लिए
पर रास्तों पर लिखा था , इधर का रास्ता 
ही बंद था, 
है अजीब सी फितरत , भी हमारी दोस्तों
हम गुजरे उन्हीं रास्तों पर , जहां कांटों 
का दामन था ।”
अमित शाह के हिंदी स्वीकृति वाले बयान पर अन्नामलाई ने स्वीकृति का ठप्पा लगाते हुए यह कह दिया कि सभी राज्यों में मातृभाषा में ही पढ़ाई होनी चाहिए । हिंदी के समर्थन में बड़े गर्व की बात है कि यह व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है इसे लगभग 53 करोड़ भारतीय लोगों द्वारा बोला जाता है । अर्थात यदि हम कुल हिंदी भाषी लोग लोगों की बात करें तो 48 प्रतिशत लोग इस भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा मान चुके हैं । देश के आधे से अधिक भौगोलिक क्षेत्र में हिंदी बोलने और जानने वाले लोगों का कब्जा है । अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में कहा था की – सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने से ही देश सशक्त होगा ।इसमें एमके स्टालिन को तमिल भाषा पर खतरा कहां और कैसे नजर आया ? अमित शाह के बयान पर यह सम्मान छिपा हुआ है जो अब तक

गृहमंत्री के हिंदी भाषा स्वीकृति को आग की लपटों में झोंकना कहीं ना कहीं एम के स्टालिन का स्वभाषा प्रेम से अलगाव का ही प्रतीक है ।एम के स्टालिन ने गृहमंत्री के बयान की निंदा करते हुए यहां तक कह डाला कि यह गैर हिंदी भाषियों को अपने अधीन करने का प्रयास है ! जहां तक मैं समझता हूं हिंदुस्तान अपने ही सरहदों में किसी राज्य को भाषा के नाम पर गुलाम बनाने के मार्ग में नहीं बढ़ रहा है वरन अपनी भाषा की अस्मिता के लिए लोगों से एकजुट होने की बात कर रहा है ।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन का यह कहना कि गृहमंत्री ने हिंदी भाषा स्वीकृति का बयान देकर 1965 के हिंदी विरोधी आंदोलन की चिंगारी को भड़काने का मूर्खतापूर्ण कदम उठाया है । यह कहना एक प्रकार से राष्ट्रीय भाषा के प्रति लोगों को भ्रमित करना ही है । दूसरे बड़े बयान में स्टालिन ने ” इंडिया और हिंदिया ” शब्द को सामने लाया है ।उन्होंने कहा है कि यह देश ” इंडिया ” है ” हिंदियां ” नहीं ! इतना ही नहीं जहां हिंदी की स्वीकार्यता की बात की जा रही है वहां स्टालिन ने यहां तक कह डाला कि देश में हिंदी दिवस का आयोजन नहीं होना चाहिए बल्कि भारतीय भाषा दिवस मनाया जाना चाहिए! अपने विरोधी स्वर को मजबूती देते हुए श्री स्टालिन ने यहां तक कह डाला कि श्री शाह का हिंदी की वकालत करना राष्ट्र की विविधता में एकता के खिलाफ है ! वास्तव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए ही सभी राज्यों से विनय पूर्वक कहा कि बिना किसी विरोध के सभी को हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने अपनी मंजूरी देनी चाहिए । एक मुख्यमंत्री का यह कहना कि इंडिया को हिंदिया बनाकर देश को विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है । कहीं ना कहीं समझ का फेर ही है । संस्कृति और इतिहास को समझने के लिए हिंदी सीखना जरूरी नहीं है ऐसा भी स्टालिन का मानना है।

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने का प्रयास छोड़ देना चाहिए । अंत में यही कहा जा सकता है: – 
” जब अपनों ने ही लूट लिया
क्या शिकवा करूं मैं औरों से।
बाहर से प्यार जताते थे
अंदर से नफरत जोरों पर ।।”


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