1008 अट्ठाई कर रायपुर में रचेंगेनया इतिहास, इनमें 15 कुष्ठ पीड़ित भी

1008 अट्ठाई कर रायपुर में रचेंगेनया इतिहास, इनमें 15 कुष्ठ पीड़ित भी

  • 16 से 18 अगस्त के बीच हुकम्स ललित महल में होगा कार्यक्रम

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 13 अगस्त. इस चातुर्मास राजधानी में तपस्याओं की झड़ी लगी हुई है। साधक-साधिकाएं नित्य कठिन तपस्याएं कर रहे हैं ताकि कर्मों की गति का क्षय कर आत्मा की मुक्ति का मार्ग बना सकें। इसी कड़ी में आनंद चातुर्मास समिति ने 16 से 18 अगस्त तक हुकम्स ललित महल में 3 दिवसीय अट्ठाई महोत्सव ललित महल मे आयोजन किया है। इसमें 1008 श्रावक-श्राविकाएं साथ मिलकर इस महानुष्ठान को पूरा करेंगे। खास बात यह है कि इसमें करीब 15 कुष्ठ रोगी साधक-साधिकाएं भी हिस्सा लेंगे जो प्रदेश समेत देश के अलग-अलग राज्यों से रायपुर में जुट रहे हैं।

कार्यक्रम संयोजक अशोक पटवा और रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि तीन दिवसीय महामहोत्सव के तहत पहले दिन आनंद चालीसा- प्रवचन होंगे। 17 को आयंबिल दिवस एवं गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया है। 18 को भव्य पारणा के साथ महामहोत्सव का समापन होगा। तीन दिवसीय महामहोत्सव के लाभार्थी राजेश मूणत परिवार, जीसी जैन परिवार और हुकमचंद जी पटवा परिवार हैं।

तीर्थंकर बनने की यात्रा दो जन्म
पहले शुरू होती है: प्रवीण ऋषि

0 श्री लाल गंगा पटवा भवन में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि के प्रवचन
रायपुर. तीर्थंकर का अर्थ है- जो तारे, तारने वाला। तीर्थंकर को अरिहंत कहा जाता है। मूलत: यह शब्द अर्हत पद से संबंधित है। अरिहंत का अर्थ होता है जिसने अपने भीतर के शत्रुओं पर विजय पा ली। ऐसा व्यक्ति जिसने कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर लिया। अरिहंत का अर्थ भगवान भी होता है। टैगोर नगर के श्री लालगंगा पटवा भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने ये बातें कही।
उन्होंने बताया, तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को नौ जन्म लेने पड़े। इतने जन्मों के संचित पुण्यों के बाद दसवें जन्म में वे तेईसवें तीर्थंकर बने।जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर है दुनिया के सबसे प्राचीन जैन धर्म का संस्थापक ऋषभदेव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे. वे भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे. वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है.महावीर स्वामी ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद चार तीर्थों की स्थापना की साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका। यह सभी तीर्थ लौकिक तीर्थ न होकर एक सिद्धांत हैं। इसमें जैन धर्म के सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपिग्रह, अस्तेय ब्रह्मचर्य का पालन करते हए अपनी आत्मा को ही तीर्थ बानने की बात महावीर स्वामी ने बतायी है। महावीर जयंती पर जैन धर्म के अनुयायी महावीर जैन की श्रद्धा भाव से पूजा और अभिषेक करते हैं। और महावीर के सिद्धांतों को याद करते हुए उन सिद्धांतों पर चलने का प्रण करते हैं।

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