दुर्ग में मनाया गया आचार्य सम्राट आनंद ऋषि जी का जन्म महोत्सव
(रिपोर्ट नवीन संचेती)
दुर्ग (अमर छत्तीसगढ़) 19 अगस्त। छत्तीसगढ़ सामाजिक स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक गुरुदेव शीतल मुनि जी के सानिध्य में आचार्य सम्राट आनंद ऋषि जी महाराज की 124 वा जन्म महोत्सव जय आनंद मधुकर रतन भवन बांदा तालाब दुर्ग में एमबिल महोत्सव हर्ष और उल्लास के वातावरण में मनाया गया आज गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए शीतल मुनि जी ने कहा आचार्य सम्राट आनंद ऋषि जी एक महान तपस्वी संत थे जो व्यक्ति एक बार उनके दर्शन कर लेता था वह उनके दर्शन को हमेशा आतुर रहता था आचार्य भगवंत का जीवन अत्यंत आकर्षण से भरा था
आज पूरे देश भर से एक लाख आठ हजार आयंबिल तप की आराधना का लक्ष्य रखा गया था
आचार्य सम्राट आनंद ऋषि जी महाराज को आयंबिल की तपस्या बेहद पसंद थी जिसे उन्होंने जिसे उन्होंने जीवन पर्यंत इस तपस्या की साधना की और अपने भक्तों को भी जीवन भर इस तपस्या को करने की प्रेरणा देते रहे पूरे देश भर में गुरुदेव श्री आनंद ऋषि जी को मानने वालों की संख्या लाखों-करोड़ों में है।
आयंबिल महोत्सव की तैयारी में श्रमण संघ परिवार के अलावा श्रमण संघ स्वाध्याय मंडल वर्धमान सेवा मंच श्रमण संघ महिला मंडल श्रमण संघ बालिका मंडल ने अपना सहयोग दिया।
आज आयोजित आयोजित इस महोत्सव में आयंबिल करने वाले तपस्वीयो की पूरी व्यवस्था जय आनंद मधुकर रतन भवन के भोजन शाला में रखी गई थी।
आयंबिल तप महोत्सव एवं 51 चांदी के सिक्के लकी ड्रा निकाले गए जिसके लाभार्थी परिवार प्रेमचंद गणेशी बाई मोनिका नमन चौरडिया थे।
आयंबिल करने वाले सभी तपस्वी साधकों को श्री भंवरलाल अभय कुमार विक्रम पारख परिवार की ओर से स्मृति स्वरूप प्रभावना वितरित की गई।
17 अगस्त को आयोजित होने वाली धर्म सभा आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी महाराज के जीवन दर्शन पर केंद्रित रहेगी गुरुदेव श्री शीतल मुनि जी के सानिध्य में गुणानुवाद सभा का आयोजन जय आनंद मधुकर रतन भवन में होगा इस दिन धर्म सभा में भाग लेने वाले सभी लोगों की प्रभावना माताश्री जमुना देवी निर्मल बाफना परिवार की ओर से रखी गई थी।
आयंबिल तप क्या होता है कैसा करना होता है इस तप में
आयंबिल तप के तहत २४ घंटे में एक बार सादा भोजन में खटाई, मिठाई व चिकनाई आदि वस्तुओं का त्याग होता है। रसना इंद्रिय या जीभ के स्वाद को जीतना आयंबिल तप का लक्ष्य होता है। आयंबिल तप के तहत २४ घंटे में एक बार सादा भोजन में खटाई, मिठाई व चिकनाई आदि वस्तुओं का त्याग होता है
नमक तेल धी शक्कर दूध दही से बनी सभी भोजन का त्याग होता है स्वाद हीन खाद्य एवं पेय पदार्थ भोजन इस तप का आहर होता हे।
कि आयंबिल, अर्थात आयाम और अम्ल। आयाम का अर्थ है समस्त और अम्ल, यानी रस। अर्थात समभाव की साधना और रस-परित्याग। सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच सिर्फ एक बार, एक आसन पर और निश्चित समय बगैर तला, बिना दूध, दही, मक्खन, घी, मलाई, तेल, चीनी, मसाले, फल, मेवे, हरी सब्जियों, मिष्ठान्ना का त्याग रहता है चावल, चना, मूंग और उड़द, आदि उबले अनाजों वाला सादा भोजन करने को आयंबिल कहते हैं।
सूर्यास्त तक गर्म पानी का सेवन किया जाता है।
आयंबिल तप में इन चीजों का आहार लेते हैं।
सूखी रोटी (खाखरा)
चावल का गर्म पानी (पसिया) मूंग का पानी
केर का पानी मुर्रा लाई