रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 21 अगस्त। उपाध्याय प्रवीण ऋषि ने कहा कि परमात्मा को, संत को, गुरु को दुर्लभ नहीं कहा गया है। दुर्लभ केवल श्रद्धा को कहा गया है। इंसानियत दुर्लभ है, आस्था परम दुर्लभ है, वहीं संयम तो और भी दुर्लभ है। पहली श्रद्धा स्वयं पर होनी चाहिए, अपने अंदर की श्रद्धा को जगाओ। उन्होंने कहा कि भगवन ने ज्ञान, श्रद्धा और चरित्र नाम के तीन हीरे दिए हैं। ये तीनों हमारे लिए आवश्यक हैं। इनमे से एक को भी तो तोड़ तो आदमी अंदर से टूट जाएगा। लुटेरे श्रद्धा के होते हैं। किसी की श्रद्धा तोड़ दो वह व्यक्ति अंदर से टूट जाएगा। एक बार आस्था टूटी तो गुलाम बनते देर नहीं लगती है। आस्था को संभाल कर रखना चाहिए। किसी को श्रद्धा की नगरी को धवस्त करने ने दें। प्रवीण ऋषि लालगंगा पटवा भवन में सोमवार को महावीर गाथा सुनते हुए यह बातें कहीं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
प्रवीण ऋषि ने कथा जारी रखते हुए कहा कि विश्वभूति संभूति विजय की गोद में सर रखकर रो रहे थे। जब एक वीर रो पड़ता है तो उसके आश्रु भूकंप ला देते हैं। एक शेर का रोना बड़ी बात है, सियार तो रोते रहते हैं। ऐसे ही विश्वभूति रो रहे थे। विश्वभूति ने कहा कि जिसे किसी का भय नहीं था वह रिश्तों से भय करने लगे तो यह जीवन किसके लिए? संभूति विजय ने कहा कि किसी ने दगा दिया, किसी ने विश्वासघात किया, लेकिन तू क्यों अपना विश्वास तोड़ रहा है। तू क्यों संयम से दगाबाजी कर रहा है? स्वयं से दगाबाजी गलत है। तू अपने आप को हरा रहा है। जिसने रणभूमि में हार नहीं मानी वो आज पराजय स्वीकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि अपने विश्वास को बनाये रखना जीवन का सबसे बड़ा सार है। अपने विश्वास अपनी आस्था को संभाल कर रखनी चाहिए, एक बार टूट गई तो आदमी को गुलाम बनते देर नहीं लगती। अपनी आस्था, श्रद्धा को धवस्त करने की अनुमति किसी को न दें। विश्व का सबसे बड़ा पाप है किसी के विश्वास को तोड़ना, श्रद्धा को तोड़ना। और संत किसी की आस्था को टूटने नहीं देते हैं।
आचार्य प्रवर ने कहा कि विश्वभूति की आस्था पर प्रहार हुआ था, विश्वास पर हमला हुआ था। इंसान सारे हमले झेल सकता है, पर आस्था पर हुआ हमला नहीं झेल सकता है। बिना आस्था के कोई नहीं जी सकता। संभूति विजय ने कहा कि अपने आप को परमात्मा स कम मत समझना, दुनिया चाहे तुम्हे कम आंके, तुम अपनी कीमत कम मत करना। पहली श्रद्धा स्वयं पर होनी चाहिए, अपने अंदर की श्रद्धा को जगाओ। गुरु वही होता है जो अंदर की वीणा के टूटे तारों को जोड़कर झंकार देता है। संभूति विजय ने विश्वभूति के अंदर टूटे वीणा के तारों को साधा। विश्वभूति को लगा कि ये सच बोल रहे हैं। विशवास टूटा है, मैं अपनी जिंदगी को क्यों तोड़ूं। मेरी भूल थी कि मैंने अयोग्य चरणों में समर्पण किया। उन चरणों में समर्पण कर जो कभी दगा नहीं देते। श्रद्धा उन चरणों में रखो जो साथ न छोड़ें, वही गुरु हैं।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि आज की सभा में अर्हम गर्भसंस्कार की ट्रेनर्स का सर्टिफिकेशन हुआ। धर्मसभा में कुछ ट्रेनर्स में अपने जीवन का अनुभव साझा किए। कुछ ने बताया कि गर्भसंस्कार से उनके गर्भावस्था व प्रसव के दौरान हुई परेशानी दूर हुई। विज्ञान ने जो असंभव कहा था, इस साधना ने उसे संभव कर दिया। कुछ महिलाएं तो साधक के बाद ट्रेनर्स बनी हैं। ऐसी ही कुछ ट्रेनर्स ने आज की धर्मसभा में अपने जीवन के अनुभव साझा किए। ललित पटवा ने बताया कि उपाध्याय प्रवीण ऋषि का लक्ष्य है कि जनवरी 2025 तक 25000 ट्रेनर्स को तैयार करना। ताकि ये ट्रेनर्स अर्हम गर्भसंस्कार को देश के कोने कोने में पहुंचाएं और लोगों को इस अद्भुत और विज्ञान को चुनौती देने वाली साधना के बारे में बताएं।