रिश्ते वही होते हैं जो अंधियारे में साथ निभाते हैं : प्रवीण ऋषि

रिश्ते वही होते हैं जो अंधियारे में साथ निभाते हैं : प्रवीण ऋषि

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 23 अगस्त। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि कर्म सीधे उदय में नहीं आते। कर्म कब उदय में आएंगे, इसकी एक प्रक्रिया है। अगर कोई सजग रहे तो कर्म में परिवर्तन के लिए अवसर मिलता है। कर्म की प्रक्रिया जो चलनी है वो अपनी आत्मा में चलनी है। व्यक्ति को पता चल जाता है कि मेरे अंदर में क्या होने वाला है। सबसे पहले कर्मोदय का असर आएगा वह आपके प्राणों पर आएगा। प्राणों का स्पंदन महसूस हो जाए तो अगली प्रक्रिया संभालना आसान हो जाता है। लेकिन रिश्ते के मामले में ऐसा नहीं है। सामने वाला व्यक्ति कब क्या करेगा हम नहीं जान सकते। उसके मन में क्या चल रहा है, यह हम नहीं जान सकते। कोई व्यक्ति सजग रहे तो अपने मन में क्या होने वाला है जान सकता है, लेकिन दूसरा व्यक्ति क्या करेगा नहीं जान पाता है। लेकिन दूसरा व्यक्ति जो करेगा उसपर आपको प्रतिक्रिया देनी है कि प्रतिसाद, इसी से तय होता है कि आपका जीवन क्या बनेगा। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

शैलेन्द्र नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में महावीर गाथा के 45वें दिन बुधवार को प्रवीण ऋषि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि परिस्थितियां विश्वभूति के नियंत्रण में नहीं थीं। विश्वभूति के जीवन में परमात्मा की आत्मा कभी प्रतिक्रिया करती है, कभी प्रतिसाद देती है। प्रतिक्रिया में व्यक्ति अँधा हो जाता है। ये जो मूलपिण्ड है प्रतिक्रिया करने का यह खतरनाक है। आप कौन हो, आप क्या है, आप क्या करते हैं, परमात्मा उसका मूल्यांकन बाद में करते है। पहले मूल्यांकन करते है की आप जो कर रहे है वह प्रतिक्रिया में कर रहे हैं कि प्रतिसाद में। आपका चरित्र क्या है। यदि आप अच्छा काम कर रहे हैं, वो भी प्रतिक्रिया में तो यह खरतनाक है। प्रतिक्रिया देते हैं तब गुस्सा आता है, कोई आपको उकसाता है और आप आवेश में आ जाते हैं। विश्वभूति का चरित्र प्रतिक्रिया है। वह प्रतिक्रिया में भागा, दीक्षा ली। प्रतिक्रिया में मरने जा रहा था, दीक्षा ले ली।

कथा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि विश्वभूति को मनाने के लिए परिवार आया है। आचार्य ने कह कि जिसका कोई है उसके लिए तो मैं पूछ सकता हूँ, लोगों ने कहा कि हम तो हैं। संभूति विजय ने कहा कि साथ उसको कहते हैं को दुःख में साथ रहता है। रिश्ता वो नहीं होता जो उजाले में साथ चलता है, रिश्ते वही होते हैं जो अंधियारे में साथ निभाते हैं। विश्वभूति अकेला था, कोई नहीं था इसके साथ इसलिए मैंने दीक्षा दी। अगर आपको लगता है कि आप इसके साथी हो तो आप जा सकते हो। अब किसी में हिम्मत नहीं थी कि वो जा कर विश्वभूति को बोले कि हम तेरे हैं। विशाख नंदी गया, और बोला बगीचा चाहिए तुझे? बगीचा नहीं मिला इसलिए तो भाग कर आया? बगीचा ले ले और चल। विशाख नंदी का वाक्य सुनकर विश्वभूति अंदर से तो तिलमिला गया, लेकिन ऊपर से चुप रह गया। अंदर चुभन होगी ही। और जब भी आपको किसी की बात चुभ जाती है और आप ऊपर से संयम रखते हो, अंदर में घाव तो हो ही जाता है। क्षमा का अर्थ होता है कि सामने वाले का तीर आपके मन में पहुंचा नहीं तो क्षमा है। वह तीर अंदर आ गया तो आप दुःखी होंगे ही। क्षमा उसे कहते हैं कि सामने वाला चोट करे लेकिन मैं चोट खाऊं नहीं उसे क्षमा कहते हैं।

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