आध्यात्मिक लक्ष्मी का वरण किया लक्ष्मी ने – समणी वृंद

आध्यात्मिक लक्ष्मी का वरण किया लक्ष्मी ने – समणी वृंद

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 25 अगस्त।

सम्यकत्व का एक प्रकार आसक्ति। कर्मो के आठ प्रकार बताए गए हैं। इसके अलावा दो – घाती व अघाती और दो – निकाचित व दलित। जिसे भोगना पड़ता है वह निकाचित। जिसे तपस्या, जप, सामायिक, संवर के माध्यम से तोड़ सकते हैं दलित। स्थिरता से आयुष बंद होता है। अस्थिरता की स्थिति में आयुष का बंध नहीं होता। जितना जरूरी जीवन में श्वास उतना जरुरी जीवन के आध्यात्मिक कल्याण में तपस्या का श्रृंगार।

उक्त प्रेरणा पाथेय रायपुर तेरापंथ अमोलक भवन में गतिमान प्रवचन श्रृंखला अंतर्गत आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्देशिका डॉ. ज्योतिप्रज्ञा जी, समणी डॉ. मानसप्रज्ञा जी ने कही। लक्ष्मी की चाह सभी को होती है परन्तु आपश्री ने आध्यात्म की लक्ष्मी का वरण किया है कथन समणी वृंद ने उनके सम्मुख अपनी 9 की तपस्या लेकर पधारी श्रीमती लक्ष्मी देवी छाजेड़ को ध्यानार्थ कही। तप से खुलते है मुक्ति नगर के द्वार। ‘अभिनंदन है अभिनंदन लक्ष्मी जी का अभिनंदन, अनुमोदन है अनुमोदन लक्ष्मी जी का अनुमोदन…’ सुमधुर गीतिका समणी वृंद द्वारा तपस्वी के अनुमोदनार्थ प्रस्तुत की गई।

तपोभिनन्दन में योगिता छाजेड़ ने नृत्य व नेहा छाजेड़, एकता छाजेड़, नेहा जैन ने भाव अभिव्यक्ति के साथ छाजेड़ परिवार की महिलाओं ने मंगल गीत के माध्यम से शुभकामनाएं दी। तप का अभिनंदन तप से एकता छाजेड़, अनिता नाहर, प्रज्ञा छाजेड़ ने किया।

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