जीवन में कभी बदला न लें, खुद को बदलें : प्रवीण ऋषि

जीवन में कभी बदला न लें, खुद को बदलें : प्रवीण ऋषि


रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 25 अगस्त। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि दुश्मनी आपको मजबूर बनती है, वहीं दोस्ती आपको मजबूत। बैर व्यक्ति को मजबूर कर देता है, हम परिस्थिति में कम मजबूर होते हैं, दुश्मनी से ज्यादा मजबूर होते हैं। हम परिस्थिति से काम मजबूत होते हैं, दोस्ती से ज्यादा मजबूत होते हैं। जिसके जीवन में दोस्ती नहीं उसके जीवन में अँधियारा है। शत्रु एक नर्क है, अँधियारा है। विश्वभूति मुनि को अहसास होता है कि मैंने अपनी साधना को कलंकित किया है, वो सोचता है कि अब सधू के रूप में किसी के आँगन में जाने के योग्य नहीं रहा। विश्वभूति मासखमण का पारणा करे बिना लौट गए। उन्होंने सोचा कि मैंने आज तक जिस अहिंसा, संयम की साधना की, जिस महाव्रत को मैंने स्वीकार किया, उसी को भंग कर दिया, अब मुझे जीना नहीं है। वे सभी जीवों को क्षमा करने लगे, लेकिन जब विशाख नंदी का चेहरा उभरा, कहा: इसको क्षमा नहीं करूंगा। यह क्षमा के लायक नहीं है। एक संकल्प मन में जन्मा, यदि मेरी साधना का कोई फल है तो अगले जन्म में मेरे हाथों इसकी मौत हो। विश्वभूति ने चारों आहार का त्याग किया, लेकिन वैर का त्याग नहीं किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

उन्होंने बताया कि रविवार को प्रातः 10.30 बजे महावीर गाथा के बाद आनंद गुरु दीक्षा संपन्न होगी। उपाध्याय प्रवीण ऋषि ने बताया कि जिन श्रद्धालुओं ने अब दीक्षा नहीं ली है, और दीक्षा के लिए इच्छुक हैं, वे आमंत्रित हैं। प्रवीण ऋषि शनिवार को महावीर गाथा के 48वें दिवस धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संभूति विजय अपनी शक्ति के बल पर विश्वभूति के पास पहुंचे। जो अंधियारे में भी संभाल ले उसे गुरु कहते हैं। उन्होंने सोचा कि मैंने उस समय संभाला था, इस समय भी संभाल लूंगा। विश्वभूति आंख बंद करता है तो संभूति विजय नजर आते हैं, कहते है : क्यों अपनी सधना को विराधना में बदल रहा है? विशाख नंदी जिम्मेदार नहीं है, तू जिम्मेदार है क्योंकि तूने दुश्मनी को दबाये रखा। तू इसे भूल गया लेकिन प्यार नहीं किया। विश्वभूति ने कहा कि मैं उसे दण्डित कर के रहूंगा। संभूति विजय ने कहा कि उसे दण्डित करने के लिए तुझे दंड बनाना पड़ेगा, शस्त्र बनाना पड़ेगा। तूने अपनी पूरी जिंदगी छत्र बनने में बिता दी, अब शस्त्र मत बन। लाख जतन कर तूने मन वचन काया को छत्र बनाया, आखरी सांस में इसे शस्त्र क्यों बना रहा है? लेकिन विश्वभूति अपने गुरु की बात सुनने को तैयार नहीं है। गुरु रोने लगे, कहा : विश्वभूति तेरे और मेरे जतन को व्यर्थ मत कर। लेकिन विशाख नंदी के अट्टहास के आगे गुरु के ये शब्द विश्वभूति को सुनाई नहीं दिए। विश्वभूति ने संथारा लिया लेकिन उसके मन में विशाख नंदी की आवाज गूँज रही है।

प्रवीण ऋषि ने कहा कि बदले की भावना से अगर जीवन व्यतीत करोगे तो कुछ नहीं मिलेगा। जिसने भी बदला लेने का प्रयास किया उसने खुद और दूसरों के लिए नर्क बनाने का काम किया है। बदले की भावना निरंतर नर्क में ले जायेगी। जिंदगी में कभी बदला मत लो, बदल जाओ। दुश्मन की परवाह मत करो, दुश्मनी के साथ मत जियो। उधर विशाख नंदी भी परेशान है। उसे वही गाय दिखाई दे रही है, और किसी को नजर नहीं आ रही है। यह गाय विश्वभूति की साधना है, उसका प्रतिशोध है। एक सिद्ध मुनि आये, उन्होंने कहा कि यह गाय विश्वभूति ने भेजी है, इसे वही वापस बुला सकता है। तुम उसे प्रणाम करो, अपनी गलती के लिए क्षमा मांगो। ये विश्वभूति का ब्रम्ह्मास्त्र है, वही इसे वापस बुला सकता है। विशाख नंदी भी अड़ गया, कहा: नहीं जाऊँगा। योगी ने समझाया, वह साधना में है, अभी जाकर क्षमा मांग ले, वरदान मिलेगा।

विशाख नंदी नहीं माना। विश्वभूति भी नहीं माना, दोनों मुनि वापस लौट गए। एक दिन विशाख नंदी के पास एक पाखंडी पहुंचा, उसे कहा कि एक मुनि नाराज है तो क्या हुआ, आप बाकी सारे मुनियों को प्रसन्न करें, लाखों को दुआ मिलेगी तो एक श्राप दब जाएगा। विशाख नंदी को यह बात जंच गई, और उसने अन्नसत्र शुरू कर दिया। जो आ रहा है आशीर्वाद दे रहा है, लेकिन गाय उसका पीछा नहीं छोड़ रही है। वह गाय के भय से जीता रहा, और मर गया। इधर विश्वभूति ने भी अपने प्राण त्याग दिए। दोनों देवलोक पहुंचे। और अगले जन्म में विश्वभूति ने वासुदेव तो विशाख नंदी ने अश्वग्रीव के रूप में जन्म लिया।

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