रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 29 अगस्त। कर्म और धर्म उसे कहते हैं जिसका परिणाम अपने आप आ जाता है। लेकिन रिश्ता उसे कहते है, जिसका परिणाम देने के लिए कोई व्यक्ति आता है। दुःख का बंद किया, पाप किया तो परिणाम खुद ब खुद आ जायगा। लेकिन किसी के साथ दुश्मनी की तो सजा देने के लिए वह व्यक्ति आएगा। अगर दोस्ती हो गई, तो फल देने के लिए वह व्यक्ति आएगा। अपने आप फल नहीं आएगा। उक्त बातें उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने महावीर गाथा के 51वें दिन कही। उन्होंने कहा त्रिपुष्ठ ने अश्वग्रीव को आज तक देखा नहीं है, लेकिन उसके मन में अश्वग्रीव के प्रति प्रेम की भावना नहीं है, कोई उसे पसंद करे वह भी उसे पसंद नहीं है। सागा पिता भी उसका सम्मान करे, त्रिपुष्ठ को पसंद नहीं है। इसलिए त्रिपुष्ठ अपने पिता से भी नाराज है। वह नाराज होकर योगी के पास पहुंचा है, और योगी उसे साधना सीखा रहा है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
प्रवीण ऋषि ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कह कि योगी त्रिपुष्ठ को कहा रहा है कि तुझे अश्वग्रीव का चक्र हासिल करना है। जो आज तक हुआ नहीं, वही करना है। त्रिपुष्ठ ने कहा कि यह कैसे संभव है, जो कार्य आज तक किसी ने नहीं किया, वह मैं कैसे कर सकता हूँ। आचार्य प्रवर ने कहा कि जो आज तक हुआ नहीं, और वो कल नहीं होगा तो मोक्ष के रास्ते बंद हो जाएंगे। मोक्ष इतिहास नहीं, भविष्य है। कर्म का इतिहास है, और धर्म का भविष्य है। जो आज तक नहीं हुआ, वो कल करने के लिए धर्म है। जो आज तक हुआ और वह कल हो जाए तो वह कर्म है। जो आज तक नहीं हुआ और वो कल हो जाए तो उसे धर्म कहते हैं। योगी त्रिपुष्ठ को कहते हैं कि तुझे तैयार होना है, साधना सीखनी पड़ेगी। योगी साधना प्रयोग शुरू करते हैं, कि कैसे अपनी आँखों को समर्थ बनाना है, कैसे अपने शरीर को समर्थ बनाना कि बिना छुए किसी वास्तु को रोक सको। दो प्रयोग सीखा रहे हैं उसको, हाथ और आंख का। अंदर की शक्ति को जो उद्घाटित कर दे उसे योग कहते हैं। योगी ने त्रिपुष्ठ को नजर और काया को साधने की विधि सिखाई। साधना पूरी करने के बाद त्रिपुष्ठ ने योग के पैर छुए, और अपनी एक शंका जाहिर की। उसने योगी से पूछा कि आप भी तो यह कार्य कर सकते थे, इस साधन के जरिये आप उस चक्र को हासिल कर सकते थे, लेकिन आपने मुझे यह विद्या सिखाई? योगी ने कहा कि मैं यह कार्य नहीं कर सकता हूं, ये तेरा काम है। पिछले जन्म में तू योगी था, जैसे अश्वग्रीव ने मेरे जीवन को बर्बाद किया है, वैसे ही इसने तेरे योग को बर्बाद किया था। तुझे संयं से पतीत किया था। और उस पल तूने संकल्प लिया था कि अगले जन्म में इसका बदला लूँगा। इसलिए यह कार्य तेरा है, मेरा नहीं।
साधना पूरी कर त्रिपुष्ठ आगे बढ़ चला। हर व्यक्ति के मन में अश्वग्रीव के प्रति नफरत है, लेकिन कोई बोल नहीं सकता है। डरते हैं। इस दौरान त्रिपुष्ठ एक नगर से गुजर रहा था। चौक पर कुछ लोग चर्चा कर रहे थे। एक व्यक्ति ने कहा कि त्रिपुष्ठ ने चंडमेघ की पिटाई कर नियम तोड़ा है, दूसरे ने कहा कि उसके पिता प्रजापति ने भी तो नियम तोड़ा था, बाप ने तोड़ा तो बेटा भी ऐसा ही करेगा। त्रिपुष्ठ को लगा कि मेरे पिता ने ऐसा कौन सा नियाम तोड़ दिया? उसने लोगों से पूछा तो जवाब सुनकर त्रिपुष्ठ अंदर तक हिल गया। लोगों ने बताया कि प्रजापति ने अपनी ही पुत्री से विवाह किया था। यह सुनकर त्रिपुष्ठ का अपने पिता पर से विश्वास उठ गया। जीवन से विश्वास उठ गया।