दुर्ग (अमर छत्तीसगढ़) 16 सितंबर
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जन जन में अणुव्रत के सिद्धांतो का प्रचार प्रसार कर रहे है। गणाधिपति श्री तुलसी जी ने सन् 1948 में अणुव्रतों की परिकल्पना कर जन जन को मानवीय चेतना के लिए जागृत करना प्रारंभ किया था।
वरिष्ठ उपासिका डा.वीरबाला छाजेड़ ने… भावपूर्ण गीतिका…
“तीन प्रहर तो बीत गये, बस एक प्रहर ही बाकी है… जीवन हाथों से फिसल गया… बस खाली मुठ्ठी बाकी है!”
के माध्यम से मानव को अपनी सम्यक दृष्टि जागृत करने का आव्हान किया। आपने श्रावक के मनोरथों की चर्चा करते हुए भगवान महावीर के जीवन के कुछ पहलुओं के माध्यम से धर्मसभा को समता की साधना की प्रेरणा दी। विश्वभूति के मन परिवर्तन के प्रसंग की विवेचना के साथ ही अनेक अन्य ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डाला। आपने सम्यक दृष्टि कैसे बने… की बात करते हुए कहा कि सम्यक ज्ञान कर्मों की निर्जरा करता है।
उपासिका श्रीमती साधना कोठारी ने मानव मात्र के उत्थान के लिए गणाधिपति श्री तुलसी जी द्वारा प्रारंभ किए गए अभियान अणुव्रत के नियमों का वाचन कर धर्मप्रेमियों को अणुव्रत संकल्प के लिए प्रेरित किया। आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित अणुव्रत गीत…
“संयममय जीवन हो… जन जन मन पावन हो…” का गायन किया। आपने भद्रबाहु स्वामी जी की जीवनी के प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख किया।
तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती विनीता बरडिया ने अणुव्रत पर अपने भाव व्यक्त करते हुए अणुव्रत संकल्प के लिए प्रेरित किया। जैन विद्या व्यवस्थापिका श्रीमती मंजू बरमेचा ने जैन विद्या परीक्षा के प्रचार प्रसार के लिए तेरापंथ महिला मंडल की पूर्व अध्यक्षा श्रीमती चन्द्रा बरमेचा एवं टीम का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सहयोग की कामना के साथ अधिक से अधिक को परीक्षा में सम्मिलित होने की अपील की। श्रीमती कंचन, रक्षा बरमेचा ने अणुव्रत गीत… “बदले युग की धारा… अणुव्रतों के द्वारा…” का गायन किया। पर्युषण पर्व पर त्याग – तपस्या – पौषध मय वातावरण में काफी संख्या में जैन धर्मावलंबी आध्यात्मिक साधना में रत है।