सपना टूटने से पहले उसे सिद्ध कर लो : प्रवीण ऋषि

सपना टूटने से पहले उसे सिद्ध कर लो : प्रवीण ऋषि


पर्युषण महापर्व के पंचम दिवस उपाध्या प्रवर ने समझाई परिष्ठापना समिति

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 16 सितंबर। लालगंगा पटवा भवन में पर्युषण महापर्व के दौरान अंतगड़ सूत्र का पाठ करते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि परमात्मा के मूल 11 अंगों में से आठवां अंग है अंतगड़ सूत्र। उन्होंने कहा कि आपके मन में सवाल आता होगा कि हमें मूल पाठ क्यों सुनना चाहिए? हम तो सरल भाषा में सुनते हैं तो समझ में आ जाता है। लेकिन मूल पाठ परमात्मा के शब्द हैं। और भक्ति का रिश्ता हो तो बिना व्याकरण के भी शब्द का अर्थ समझ में आ जाता है। परमात्मा एक भाषा में बोलते हैं, लेकिन सुनने वाले को लगता है कि वे हमारी भाषा में बोल रहे हैं। ये परमात्मा की वाणी का अतिशय है। परमात्मा के शब्द हमारे कानों से गुजरने चाहिए, इसलिए मूलपाठ की आराधना करते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।

पर्युषण महापर्व के पंचम दिवस शनिवार को अंतगड़ श्रुतदेव आराधना में उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सपने अच्छे हो या बुरे, टूटते ही हैं। परमात्मा कहते हैं कि सपना टूटने के पहले उसको सिद्ध कर लो। ऐसा हो ही नहीं सकता कि जो बना है वो टूटे नहीं, लेकिन जिसने टूटने के पहले सपनों को सिद्ध कर लिया, उसका उद्धार हो गया। टूटने के बाद आप केवल रो सकते हैं। द्वारिका नगरी एक सपना है, गजकुमार की दीक्षा भी एक सपना है। लेकिन आयुष टूटने के पहले गजकुमार ने अपने सपने को सिद्ध कर लिया। जिस समय गजकुमार की आत्मा सिद्ध हुई, उसी समय देवकी को अनुभूति हो गई कि मेरा बेटा परमात्मा हो गया है। दिल से जुड़े रिश्तों को जुबान की आवश्यकता नहीं होती है। श्रीकृष्ण वापस लौटते हैं, सोचते हैं कि माँ को क्या बताऊंगा? कैसे बताऊंगा? श्रीकृष्ण के चेहरे पर उदासीथी, लेकिन माता देवकी के चेहरे पर ख़ुशी थी। उन्होंने कृष्ण से कहा कि उजाले के पलों में तेरे चेहरे पर अँधियारा क्यों है? तेरा अनुज सिद्ध हो गया, उसको वंदन कर ले। जो तेरा भी लक्ष्य है, मेरा भी लक्ष्य है, उस मंजिल पर वह पहुँच गया है, उसको नमन कर ले। यह बातें सुन श्रीकृष्ण के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्हें लगा कि मैं मेरे भाई की सफलता की ख़ुशी नहीं मना सका। मैं उलझन में फंसा रह गया, और भाई की सफलता की ख़ुशी नहीं मना सका।

उपाध्याय प्रवर ने आगे कहा कि द्वारिका नगरी श्रीकृष्ण का सपना है। वे परमात्मा से पूछते हैं कि मेरी द्वारिका नगरी आबाद रहेगी कि बर्बाद हो जायेगी? परमात्मा कहते हैं कि तुम्हारी आखों के सामने ही द्वारिका का विनाश हो जाएगा। श्रीकृष्ण यह सुन हैरान हो गया, मैंने इसकी रक्षा का बीड़ा उठाया है, मेरे रहते इसका विनाश नहीं हो सकता। उन्होंने पूछा कि कैसे विनाश होगा? उन्होंने कहा कि 3 कारणों से द्वारिका का विनाश होगा। शराब, देपायन मुनि और आग। यह सुनकर देपायन मुनि द्वारिका से दूर चले गए। और द्वारिका की पूरी शराब जब्त कर नदी में बहा दी गई। एक बार यदुवंशी राजकुमार गिरनार वन घूमने गए थे। वहां उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने तालाब से पानी पिया। लेकिन उस तालाब में द्वारिका की शराब फेंकी गई थी। उन्हें नशा हो गया। वहीं पास ही देपायन मुनि ध्यान कर रहे थे। नशे में चूर राजकुमार ने उन्हें देखा और उन्हें परेशान करने लगे। देपायन ने संयम बरता, लेकिन फिर उनकी हरकतों से संयम टूट गया और संकल्प लिया किया द्वारिका को जला कर ख़ाक कर दूंगा। श्रीकृष्ण को जब यह पता चला तो बलराम के साथ वे देपायन मुनि के पास पहुंचे। कई विनती की, उन्हें मनाया लेकिन वे नहीं मने, उन्होंने कहा कि तुम दोनो बचोगे, लेकिन पूरी द्वारिका नष्ट हो जाएगी। श्रीकृष्ण ने अरिष्ठनेमि से उपाय पूछा तो उन्होंने कहा कि आयंबिल तप शुरू कराओ, कुछ अनिष्ट नहीं होगा। द्वारिका में आयंबिल तप शुरू हुआ। लेकिन एक दिन तप का क्रम टूट गया और देपायन मुनि के क्रोध ने द्वारिका को जलाकर ख़ाक कर दिया। मात्र श्रीकृष्ण और बलराम जीवित बचे। दोनों पांडवों से मिलने चल पड़े। रस्ते में श्रीकृष्ण लेट गए और बलराम पानी लेने चले गए। उसी समय एक शिकारी शिकार के लिए घूम रहा था। उसने श्रीकृष्ण के पैर देखे तो उसे लगा कि कोई हिरन बैठा है, उसने तीर चला दिया। तीर श्रीकृष्ण को लगा एक चीत्कार निकली। और फिर वे शांत हो गए। बलराम पानी लेकर वापस आये और उन्होंने श्रीकृष्ण को उठाया, वे नहीं उठे तो उन्होंने कृष्ण को कंधे पर लादा और चल पड़े। कई दिनों तक चलते रहे, अंग गलने लगा, देवताओं ने उन्हें रोका और बताया, लेकिन बलराम ने नहीं मान। बड़ी मुश्किल से उन्होंने श्रीकष्ण की मौत को स्वीकार किया।

उपाध्या प्रवर ने कहा कि अगर आप किसी वास्तु को छोड़ते हैं तो उसे मानसिक रूप से भी छोड़ें। जो वास्तु तुम्हारे साथ रहती है, वह तुमसे जुड़ जाती है। इसलिए उस वास्तु को छोड़ो तो अपने प्राणों से भी उस वास्तु को निकाल दो। यह परिष्ठापना समिति है।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि पर्युषण महापर्व के दौरान टैगोर नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में प्रतिदिन की भांति आज भी प्रातः 6 बजे से प्रार्थना (भक्तामर स्त्रोत आराधना), 8.15 बजे सिद्ध स्तुति, 8.30 बजे अंतगड़ सूत्र का मूलपाठ, फिर 10 बजे मंगलपाठ के बाद उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि का प्रवचन हुआ। दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तीर्थेश मुनि ने कल्पसूत्र की आराधना कराई। फिर शाम 6 बजे कल्याणमन्दिर स्त्रोत आराधना और सूर्यास्त के समय प्रतिक्रमण हुआ फिर शाम 7. 30 से 8.30 बजे तक तीर्थेश मुनि की निश्रा में भक्ति गीतों को माला चली।

ललित पटवा ने बताया कि रायपुर में 21 दिनों तक तीर्थंकर प्रभु महावीर के अंतिम वचनों की अमृत गंगा बहने वाली है। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि की मुखारविंद से श्रावक-श्राविकाएं 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक प्रभु महावीर के वचनों का श्रवण करेंगे। उन्होंने बतया कि 17 सितंबर को 21 दिवसीय श्रुतदेव आराधना के लिए में एक बैठक बुलाई गई है। यह बैठक प्रवचन के बाद प्रातः 11 बजे आयोजित होगी। ललित पटवा ने सकल जैन समाज से इस बैठक में शामिल होने का आग्रह किया है।

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