दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के पहले दिन तीनों जैन मंदिरों में अभिषेक पूजन, प्रवचन प्रारम्भ….. क्रोध कषाय को समझ लेना और उस पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म – पंडित आशीष शास्त्री (राजस्थान)

दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के पहले दिन तीनों जैन मंदिरों में अभिषेक पूजन, प्रवचन प्रारम्भ….. क्रोध कषाय को समझ लेना और उस पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म – पंडित आशीष शास्त्री (राजस्थान)

पहले दिन “उत्तम क्षमा” दिवस

बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ) 19 सितंबर। दुनिया में जितने भी पर्व हैं, उन सभी का किसी न किसी घटना अथवा महापुरुष से संबंध है। लेकिन दशलक्षण पर्व का संबंध किसी घटना अथवा महापुरुष से नहीं है और न ही देश-काल, क्षेत्र विशेष, जाति-धर्म से भी इसका कोई संबंध है। यह पर्व तो शाश्वत है, सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक है। क्योंकि यह पर्व आत्मा की शुद्धि का पर्व है, इसलिए इसे महापर्व कहते हैं। यह पर्व तो सभी पर्वों का सम्राट माना जाता है। सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। यह जैनों का सबसे पवित्र पर्व है। दिगम्बर सम्प्रदाय में यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पचंमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। इन दिनों में जैन मंदिरों में खूब आनंद छाया रहता है। प्रतिदिन प्रातः काल से ही सब धर्मावलम्बी मंदिरों में पहुँच जाते हैं और बड़े आनंद के साथ भगवान का पूजन करते हैं।

दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के पहले दिन बिलासपुर के तीनों जैन मंदिरों में प्रातः 6:30 बजे से अभिषेक और पूजन प्रारम्भ हुए। इस अवसर पर श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर राजस्थान से पधारे पंडित आशीष जी शास्त्री ने अपने प्रवचन में दशलक्षण धर्म के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि दशलक्षण पर्व के दिनों में क्रमशः उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन तथा उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना की जाती है।

इन दस धर्मों के कारण इस पर्व को दशलक्षण पर्व कहते हैं, क्योंकि धर्म के उक्त दस लक्षणों का इस पर्व में खासतौर से आराधन किया जाता है। ये सभी आत्मा के धर्म हैं, क्योंकि इनका सीधा संबंध आत्मा के कोमल परिणामों से हैं। इस पर्व का एक वैशिष्ट्य है कि इसका संबंध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर आत्मा के गुणों से है। इस प्रकार यह गुणों की आराधना का पर्व है। इन गुणों से एक भी गुण की परिपूर्णता हो जाए तो मोक्ष तत्व की उपलब्धि होने में किंचित भी संदेह नहीं रह जाता है।
एक बात और खास है कि इस सभी के साथ उत्तम शब्द जरूर जुड़ा होता है, मतलब ये सब लक्षण उत्तम ही होने चाहिए। दशलक्षण धर्म के सभी धर्मों के बारे में संक्षिप्त में बताते हुए शास्त्री जी ने बताया कि क्रोध प्रत्येक जीव का सबसे बड़ा शत्रु है, उसे जीतना ही उत्तम क्षमा है। उसी तरह किसी भी प्रकार के मान -अभिमान को समाप्त करने को उत्तम मार्दव धर्म की आराधना कहते हैं तथा अपने हृदय को मायाचारी से बचाकर सरल बनाने को ही उत्तम आर्जव धर्म की आराधना कहते हैं।

इसी क्रम में लोभ को त्याग कर जीवन में शुचिता यानि पवित्रता को अपनाना ही उत्तम शौच धर्म की आराधना है, सभी के लिए हित, मित व प्रिय वचन बोलना ही उत्तम सत्य धर्म की आराधना है, अपनी आत्मा के विकारी भावों को नष्ट करना ही उत्तम संयम धर्म की आराधना है। उत्तम तप धर्म आराधना का मतलब है इच्छाओं का निषेध कर रागादि भावों को जीतकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होना तथा पर द्रव्यों से मोह छोड़कर उनका त्याग करना ही उत्तम त्याग धर्म की आराधना है। नौवा धर्म है उत्तम आकिंचन धर्म जिसमें मेरी आत्मा के सिवाय किंचित मात्र भी पर पदार्थ मेरा नहीं है, ऐसा चिंतन करना ही उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना है और अपनी आत्मा में रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना है।

दशलक्षण महापर्व के पहले दिन उत्तम क्षमा धर्म के बारे में बताते हुए पंडित जी ने कहा कि क्रोध एक कषाय है, जो व्यक्ति को अपनी स्थिति से विचलित कर देती है। इस कषाय के आवेग में व्यक्ति का विचार शून्य हो जाता है और हित-अहित का विवेक खोकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, जिस प्रकार लकड़ी में लगने वाली आग जैसे दूसरों को जलाती ही है, पर स्वयं लकड़ी को भी जलाती है। उन्होंने कहा कि क्रोध कषाय को समझ लेना और उस पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म है।

मनीषियों ने कहा है कि क्रोध अज्ञानता से शुरू होता है परन्तु पश्चाताप से विचलित नहीं होना ही क्षमा धर्म है। शास्त्री जी ने बताया कि पार्श्वनाथ स्वामी और यशोधर मुनिराज का जीवन ऐसा रहा जिन्होंने अपनी क्षमा और समता से पाषाण हृदय को भी पानी-पानी कर दिया। शत्रु-मित्र, उपकारक और अपकारक दोनों के प्रति जो समता भाव रखा जाता है वही साधक और सज्जन पुरुषों का आभूषण है। शांति और समता आत्मा का स्वाभाविक धर्म है, जो कभी नष्ट नहीं हो सकता। यह बात अलग है कि कषाय का आवेग उसके स्वभाव को ढंक देता है। पानी कितना भी गरम क्यों न हो पर अंतत: अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी अग्नि को बुझा ही देता है। अज्ञानी प्राणी अपने इस धर्म को समझ नहीं पाता। कषायों के वशीभूत होकर संसार में भटकता रहता है। इसलिए अपने जीवन में क्षमा को धारण करना चाहिए और नित्य यह भावना रखनी चाहिए।
इसीलिए कहा गया है कि –
सुखी रहे सब जीव, जगत में कोई कभी ना घबरावें।
बैर, पाप, अभिमान, छोड़, जग नित्य नए मंगल गावें।

सांगानेर से पधारे पंडित आशीष शास्त्री

आत्म कल्याण के इस महापर्व में प्रतिदिन बिलासपुर स्थित तीनों जैन मंदिर जी में प्रातः अभिषेक पूजन के साथ, श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे श्री आशीष शास्त्री के प्रवचन प्रातः 9:15 बजे से सरकण्डा मंदिर जी में होंगे। इसके पश्चात शास्त्री जी द्वारा दोपहर 3:00 बजे से 4:00 बजे तक क्रांतिनगर मंदिर जी में स्वाध्याय करवाया जाएगा। सांध्यकालीन कार्यक्रम में क्रांतिनगर मंदिर जी में श्रीमती मंगला जैन द्वारा सायं 6:30 बजे से 7:15 बजे तक सामायिक, तत्पश्चात 7:15 बजे से 8:00 बजे तक तीनों मंदिर की में संगीतमय आरती, तदोपरांत रात्रि 8:00 बजे से 8:45 बजे तक क्रांतिनगर मंदिर जी में शास्त्री जी के प्रवचन होंगे। इसके पश्चात रात्रि 9:00 बजे से क्रांतिनगर जैन मंदिर के नायक हाल में धार्मिक/सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस कड़ी में पहले दिन लौकांतिक देव समूह द्वारा राम का वनवास पर एक सुंदर और मार्मिक दृष्टांत की प्रस्तुति दी जायेगी।

दशलक्षण पर्व के पहले दिन क्रांतिनगर मंदिर में प्रथम शांतिधारा करने का सौभाग्य श्रीमंत सेठ प्रवीण जैन, समाज के अध्यक्ष दीपक जैन, शैलेश जैन, डॉ. अरिहंत जैन, कैलाश जैन, अरुण जैन एवं इनके परिवार जनों को प्राप्त हुआ। सरकण्डा मंदिर जी में यह सौभाग्य दिनेश संध्या जैन, अरविन्द जैन, प्रभाष जैन, अरविन्द जैन, शरद जैन परिवार को मिला। मंगला स्थित सन्मति विहार जिनालय में यह सौभाग्य पंकज पंचायती, बाहुबली जैन एवं उनके परिवार को प्राप्त हुआ।

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