दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म
बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़) 20 सितंबर। दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के दूसरे दिन बिलासपुर स्थित तीनों जैन मंदिर जी में प्रातः 6:30 बजे अभिषेक प्रारम्भ हुआ और संगीतमय पूजन सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे श्री आशीष शास्त्री जी ने अपने प्रवचन में दशलक्षण धर्म के दूसरे धर्म उत्तम मार्दव धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि मार्दव अर्थात मान (घमंड) तथा दीनता-हीनता का अभाव। और वह नाश जब आत्मा के ज्ञान/श्रद्धान सहित होता है, तब ‘उत्तम मार्दव धर्म’ नाम पाता है। उन्होंने कहा कि जब सब कुछ क्षणभंगुर है, टिकने वाला नहीं है, कुछ समय पश्चात नाश हो जाएगा, तो किसका घमंड करना और किस बात की दीनता माननी ? जब सभी जीवों के पास समान रूप से अनंत गुण हैं, तो किसी में भी क्या विशेषता रही? जब किसी में कोई विशेषता नहीं रही तो मान करने/ दीनता के लिए कहाँ अवसर रहा? साथ ही।
उन्होंने बताया कि मार्दव धर्म आत्मा अर्थात् निजात्मा स्व-स्वरूप का धर्म है। जहाँ मृदु भाव या नम्रता नहीं है वहाँ धर्म भी नहीं है। और वहाँ नियम, व्रत, तप, दान, पूजा इत्यादि जो मानव करता है विनय भाव के बिना सभी व्यर्थ माना जाता है। जो कहता है कि मैंने ऐसा किया, जो भी किया मैंने किया, अन्य कोई भी मेरे समान नहीं कर सकता, इस तरह कह कर जो मान कषाय करता है वह अपनी आत्मा को ठगता है।
उन्होंने बताया कि यदि कोई ज्ञानी पंडित भी हो तो उसे भी ज्ञान मद नहीं करना चाहिए, ज्ञान मद करना भारी मूर्खता है। बल्कि यह विचारना चाहिये कि मेरे से बड़े-बड़े और भी बहुत से ज्ञानी हैं। बड़े-बड़े ऋषि मुनि, केवली भगवान सभी चिदात्मज्ञानी हैं। मैं एक अल्पज्ञानी हूँ। व्यर्थ ज्ञान मद करना मुझे शोभा नहीं देता है। इस प्रकार ज्ञानी को विचार कर कभी भी ज्ञान का मद नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि धनवान को धन का मद भी नहीं करना चाहिए वरन यह सोचना चाहिए कि मामूली से पूर्वोपार्जित पुण्य के उदय से कुछ संपत्ति मुझे मिली है, यह सभी पूर्व जन्म के पुण्य के प्रताप से मिली हुई है परंतु यह क्षणिक और इन्द्रियजनित होकर संसार में अनेक इन्द्रिय वासनाओं को बढ़ाने वाली है।
जब बड़े-बड़े सम्पत्तिशाली तीर्थंकर, चक्रवर्ती तथा स्वर्ग में कुबेर इत्यादि की सम्पत्ति स्थिर नहीं रही। एक दिन पुण्य खत्म होते ही उनको छोड़कर जाना पड़ा, फिर मैं क्षणिक सम्पत्ति के पीछे गर्व करूँ तो मेरे समान अधर्मी या मूर्ख कौन होगा ? इसी तरह जातिमाद, कुलमद, रूपमद, तपमद, पूजामद इत्यादि मद हैं। यह मद स्थिर रहने वाले नहीं हैं और ये संसार में आपस में विरोध पैदा कर क्रोध को बढ़ाने वाले और मान अपमान इत्यादि को उत्पन्न कर मानहानि के अलावा और कुछ नहीं हैं। ऐसे विचार कर ज्ञानी लोग कभी भी गर्व नहीं करते हैं। सम्पूर्ण मानव प्राणी के साथ नम्रता का व्यवहार करते हैं। जो नम्रता का व्यवहार करते हैं। उनके इस संसार में कोई भी शत्रु नहीं होते हैं।
रात्रिकालीन धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम की श्रृंखला में उत्तम क्षमा धर्म के दिन क्रांतिनगर मन्दिर जी के नायक हाल में लौकांतिक देव समूह द्वारा जैन धर्म के “पदम् पुराण ग्रंथ” के अनुसार ” राम का वनवास” का एक बहुत ही सुंदर, मनोरम और मार्मिक दृष्टांत दिखाया गया। इस कार्यक्रम का निदेशन, पटकथा व संवाद लेखन श्रीमती मंगला जैन ने किया। इस प्रस्तुति में राम की भूमिका में क्षिप्रा जैन, लक्ष्मण की भूमिका में विकास जैन, भरत की भूमिका में नितिन जैन, दशरथ की भूमिका में रीना जैन, मंत्री की भूमिका में अक्षत जैन, केकई की भूमिका में पूनम दोशी, मंथरा की भूमिका में मनोरमा जैन, कौशल्याकी भूमिका में शालिनी जैन, सीता की भूमिका में अनुप्रिया जैन, सेनापति की भूमिका में शुभांगी जैन, पुरोहित की भूमिका में रीना जैन, ऋषि वशिष्ठ की भूमिका में समर्पित जैन और दरबारी की भूमिका में सम्यक जैन रहे। कार्यक्रम की शुरुआत में मनमोहक मंगलाचरण श्रेयांशी जैन और अनुष्का जैन ने प्रस्तुत किया। दोशी परिवार के नन्हें बच्चों द्वारा गरबा की प्रस्तुति दी गई। सभी पात्रों ने अपने अभिनय से अपने-अपने किरदार को जीवंत कर दिया।