प्रभु के चरणों में खुद को समर्पित कर उनसे क्षमा का वरदान ग्रहण करो – प्रवीण ऋषि

प्रभु के चरणों में खुद को समर्पित कर उनसे क्षमा का वरदान ग्रहण करो – प्रवीण ऋषि


क्षमापना के साथ की गई पर्युषण पर्व की आराधना

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 20 सितंबर। लालगंगा पटवा भवन में पर्युषण महापर्व के आखरी दिन उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि सम्वत्सरी की आलोचना, प्रतिक्रमण, श्रुतदेव आराधना करने के बाद क्षमापना के क्षीरसागर में स्नान करने के लिए आप तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हम क्षमाप्रार्थी हैं अपने तीर्थंकर परमात्मा के। इसे महसूस करते हुए स्वयं को परमात्मा के चरणों में प्रस्तुत करते हुए उनसे क्षमा के वरदानों को ग्रहण करें जो उन्होंने बरसाए हैं। उन्होंने बताया कि पर्युषण पर्व आराधना के लिए चेन्नई, पुणे, इंदौर, अहमदनगर से पहुंचे हैं। कई लोग 9 दिनों से रायपुर में हैं, कई लोग 2 दिन पहले पहुंचे हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।

8 दिवसीय पर्युषण महापर्व के अंतिम दिवस सामूहिक प्रतिक्रमण के बाद 20 सितंबर को क्षमापना की गई। उपाध्याय प्रवर ने इस दौरान धर्मसभा में उपस्थित सकल जैन समाज से क्षमा याचना कराई। उन्होंने प्रार्थना कराइ कराई कि ‘प्रभु मेरा पापमय जीवन 18 पापों में अनादिकाल से रचा बसा है। मुझे व्यर्थ और अनर्थ की दावानल से बचाकर सार्थ और तीर्थ बनाने के लिए आपने 11 लाख 60 हजार मासखमन किए। संसार के सभी जीवों को तीर्थ बनने, मुझे तीर्थ बनने के लिए अपने उग्रतम तप किया, दीर्घ साधना की, असीम पुरुषार्थ किया। मेरे अंदर के चण्डकोशिक को अमृतकोशी बनने के लिए मेरे डंक आपने झेले। मेरे अंतर के अहंकारी को विनयी बनने के लिए आप सीधे मेरे द्वार पर चले आये।

बेड़ियों से जकड़ी मेरी चेतना को खोजते खोजते आपने 5 महीने 25 दिन की तप आराधना संपन्न की। मेरे हाथ से आहार ग्रहण करने प्रभु अपने कितना खोजा। आपने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने मेरे डंक झेले लेकिन में अमृतकोशिक नहीं बन पाया। आप मेरे द्वार पर आये लेकिन मैं विनयी नहीं बन पाया। आप मेरे से आहार लेने के लिए मुझे बेड़ियों से मुक्त करने मेरे ड्वेयर द्वार पर आये, लेकिन मैं चंदनबाला नहीं बन पाया। आपकी कृपा को आपके वात्सल्य को अनंत अनुबन्धी कषाय हो करके मैं व्यर्थ करता रहा। आप क्षमा के सागर, आप क्षमा के मेघ आप बरसते ही रहे। प्रभु, मेरी इस मिथ्या एहसास को मैं महसूस करता हूँ। मैंने तुमसे मुँह मोड़ा और दुनिया के तरफ किया। आपके सम्मुख न हो पाया। आपको पीठ दिखाने का गुनाह करता रहा। फिर भी आप कृपा बरसाते रहे।

आपके शासन में रहते हुए, आपकी शरण में रहते हुए मैंने औरों की तमन्ना की, आपकी कृपा पर मैंने शंका की, औरों के साथ रिश्ता बनाने का प्रयास किया। प्रभु अपने मेरे काल अवघाटित करे। अपने मेरे दृष्टि खोल दी। मैं देख पा रहा हूँ अपने अपराधों को। मैं महसूस कर रहा हों की प्रभु मेरे दुखों का एक कारण , कि मैंने अपने अन्तर्हृदय में आपकी प्रतिष्ठा नहीं की। नहीं जनता मैं विधि। कितने अपराध किए याद भी नहीं आ रहे। तुम ही जानते हो प्रभु। आप क्षमा बरसाते रहे लेकिन में महसूस नहीं कर पाया। आपकी क्षमा को महसूस करने की प्रेरणा दो। मुझे इस मिथ्यात्व से मुक्त करो, मेरी अविचल श्रद्धा आपके प्रति हो, इस भयावह नर्क से मुझे खींचकर बाहर निकालो।’

उन्होंने कहा कि तीर्थंकर परमात्मा के समोशरण में स्वयं को समर्पित करें, उनकी अनंत कृपा को महसूस करने। तुम्हारी शरण में हर साँस बीते मेरी। इस पाठ को अंतर्मन में जगाएं, उन स्मृतियों को जगाएं, जहां आप गुरुवार का वंदन कर रहे हो। तीर्थंकर द्वारा दिए धर्म को हमारे जीवन में जीवंत कराने आएं गुरुवार। महसूस करनें उन पलों को, आराध्य गुरु को लेकर मन में दुष्कृत आया हो, उनपर अविश्वास किया हो, वचन से उनका अनादरा किया हो, काय से उनकी सम्यक आराधना नहीं की। इसका स्मरण करते हुए क्षमापना मांगें।

क्षमापना की इस अनुभूति के साथ अनंत अनुबन्धी कषाय के सारे बंधनों को तोड़ कर एक संकल्प ले कि 20 सितंबर 2023 से पहले की कोई बात अपनी जुबान पर न आये जिससे वैर की जागृति हो, कषाय की जाग्रति हो, दुःख की जागृति हो। ऐसे किसी व्यक्ति के व्यवहार को लेकर इस पल से लेकर जुबान पर जिक्र न करें, क्षमापना की सुरक्षा के लिए यह जरुरी है। क्षमापना के बाद यदि हम अतीत की किसी बात कर जिक्र करते है, तो गड़े मुर्दे उखाड़ने का काम करते हैं। मुर्दे गाड़ने या जलाने के लिए होते हैं, संभालने के लिए नहीं होते हैं। अतीत मुर्दा है, इसकी बदबू अपने मन में न रखे, उसका जिक्र अपनी जुबान से न करें। इतना एक संकल्प आप ले पाएं तो क्षमापना आपके जीवन का अमृत बन जाएगा। उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा में इसके लिए क्षमापना कराई।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने कहा कि उपाध्याय प्रवर ने जो क्षमापना की महिमा बताई और हमसे जो क्षमायाचना कराई वो नजारा अद्भुत था। हम अंदर ही अंदर आंख बंद कर इसमें जुड़ गए और उपाध्याय प्रवर जो कहते गए श्रद्धापूर्वक उसे अर्जित करते गए और अंदर में उसे पिरोते गए। उन्होंने प्रवीण ऋषि के चरणों में नमन करते हुए, जो भी गलती चातुर्मास के दौरान रायपुर श्रमण संघ द्वारा, स्वयं द्वारा हुई, उसके लिए ललित पटवा और पूरे संघ ने गुरुदेव के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए क्षमायाचना मांगी और अपनी भूलों को सुधारने के लिए और उनके प्रति अपनी सच्ची भावना और श्रद्धा अर्पित करने के लिए उन्हें प्रमाण करते हुए क्षमायाचना की। रायपुर श्रमण संघ के सभी सदस्यों से भी ललित पटवा ने क्षमापना मांगी।

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