बिगड़ने के बाद सुधारने से अच्छा है कि बिगड़ने से बचा लो : प्रवीण ऋषि

बिगड़ने के बाद सुधारने से अच्छा है कि बिगड़ने से बचा लो : प्रवीण ऋषि


रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 8 अक्टूबर। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि दान देने के लिए दाता चाहिए और ज्ञान देने के लिए गुरु। अगर दाता नहीं है तो दान नहीं हो सकता, लेकिन बिना गुरु के भी ज्ञान लिया जा सकता है। आशीर्वाद कोई दे या न दे, आप ले सकते हैं। किसी वास्तु का दान आप तभी ले सकते हैं जब कोई देने वाला हो। लेकिन ज्ञान और कृपा सामने वाला दे या न दे, आप ले सकते हैं। इसी प्रकार बद्दुआ भी बिन दिए ले सकते हैं। ठीक इसी प्रकार लेश्या सामने वाला देना चाहे या नहीं, आप ले सकते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

रविवार को लेश्या पर चल रही प्रवचन माला के अंतिम दिवस उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा में कहा कि महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य ने दुर्योधन और अर्जुन को शिक्षा दी थी। दुर्योधन ने ज्ञान ग्रहण नहीं किया, अर्जुन ने किया लेकिन एकलव्य ने बिना गुरु द्रोणाचार्य के ज्ञान दिए उनके ज्ञान को ग्रहण किया। कोई ज्ञान देता है तो हम लेते हैं, और कोई नहीं भी दे तो भी हम ग्रहण कर लेता हैं। वैसे ही लेश्या के साथ होता है। किसी की लेश्या हम जानते हुए ग्रहण करते हैं, किसी की अनजाने में। लेश्या पर आपका नियंत्रण नहीं है। लेश्या जाती ही है। जो लेश्या चली गई, उसे कोई भी ले सकता है बस लेने की कला आनी चाहिए। जो बिना दिए ली जा सकती है, उसे हमें ग्रहण करना चाहिए। माता-पिता हमें आर्शीवाद देते हैं, देते रहते हैं। उस आशीर्वाद को ग्रहण करना चाहिए। लेश्या में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श है। आप किसी की लेश्या बिना दिए भी ले सकते हैं। अगर कोई देना चाहे तो नहीं भी ले सकते हैं।

नीच लेश्या से बचने के लिए उपाध्याय प्रवर ने बताया कि सबसे बड़ा उपाय है सारे पापों का पचखान। अगर आपका पापों से रिश्ता टूट गया तो नीच लेश्या के सारे दरवाजे बंद हो गए। जब दरवाजा बंद रहेगा तो नीच लेश्या प्रवेश ही नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि ये अष्टमंगल और पुरुषाकार का प्रयोग है। उन्होंने पूछा कि बिगड़ने के बाद सुधारना की बिगड़ने की संभावना को ही समाप्त कर देना? अगर बिगड़ने की संभावन को ही समाप्त कर दिया जाए तो नीच लेश्या का प्रभाव ही नहीं होगा। पाप के सारे दरवाजे बंद कर दें। महाभारत में जब अर्जुन युद्ध में जा रहे थे तो कृष्ण में उनसे कहा थे कि मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करना। कृष्ण तो अर्जुन के सारथि थे, फिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा? अगर कोई कार्य करना है तो अपने प्रभु का स्मरण करते हुए कार्य करना चाहिए। हम जो अपनी आँखों के सामने रहते हैं उन्हें भूल जाते हैं, और जो नहीं रहता है उसका स्मरण करते हैं। किसी वास्तु की कीमत तभी समझ आती है जब वह हमारे हाथों से निकल जाती है।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि 9 सितंबर से श्रीपाल-मैनासुन्दरी के चरित्र का वर्णन शुरू होगा। प्रवचन प्रातः 8.30 बजे से 10 बजे तक चलेगा। श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।

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