आशीर्वाद का सामर्थ्य बताती है श्रीपाल-मैनसुंदरी की कथा : प्रवीण ऋषि

आशीर्वाद का सामर्थ्य बताती है श्रीपाल-मैनसुंदरी की कथा : प्रवीण ऋषि

नवकार महामंत्र की शक्ति को ग्रहण करने की आराधना है नौपद की ओली

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 12 अक्टूबर । श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा सुनाते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि 700 कुष्ठ रोगियों ने तो साधना नहीं की थी, लेकिन वो ठीक कैसे हो गए? यह ताकत थी अनुमोदन की। मैनासुन्दरी ने केवल पानी छिटका था, और कुष्ठ रोग दूर हो गया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कार्य करने से भी होता है, कराने से भी होता है और समर्थन से भी होता है। जिनशासन में ३ करण है : मन से, काय से और वचन से। मन से करवाना, मन से करना और मन से अनुमोदन देना। केवल मन से एक अकेले का अनुमोदन क्या कर सकता है, क्या ताकत होती है, यह इस कहानी से पता चलता है। अनुमोदन को समझने के लिए इसे आप आशीर्वाद का सामर्थ्य कह सकते हैं। आगम में अनुमोदन का अर्थ है आशीर्वाद। जो करने, करवाने से नहीं होता वह आशीर्वाद से होता है। देने का सामर्थ्य होना चाहिए। जिसे दिया जाता है, उसका भाग्य बदलकर रख देता है आशीर्वाद। मैनासुन्दरी ने तप किया, प्रभु की ऊर्जा को ग्रहण कर पानी में प्रेषित किया और उस पानी के छींटे से कुष्ठ रोगियों का रोग दूर हो गया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

नवकार महामंत्र की शक्ति को ग्रहण करने की आराधना है नौपद की ओली : प्रवीण ऋषि
लालगंगा पटवा भवन में शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर ने कहा कि नवकार महामंत्र की शक्ति को ग्रहण करने की आराधना है नौपद की ओली। जैन धर्म से सबसे बड़ी आराधना है आयंबिल। इस आराधना में नमक का सेवन वर्जित रहता है। उन्होंने बताया कि नमक शरीर में अंदर के विकारों को जगाने का कार्य करता है। आयंबिल में ग्रहण करना है लेकिन इन्द्रियों की उत्तेजना को स्वीकार नहीं करना है। आयंबिल में आपको आहार ग्रहण करना है, लेकिन उत्तेजना नहीं ग्रहण करनी है। इसलिए नौपद की आराधना में नमक का सेवन वर्जित रहता है। इस कसौटी के साथ यह साधना चलती है। रंग के अनुसार आहार का चयन होता है।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अगर तुम किसी को संभालोगे तो उसका पुण्य तुम्हे संभाल लेगा। कुष्ठ रोगियों ने श्रीपाल को संभाला था, उसे ससम्मान अपना राजा बनाया था। इसलिए श्रीपाल का विवाह मैनासुन्दरी के साथ हुआ, और उसके तप से उन सभी रोगियों का उद्धार हुआ। श्रीपाल की माता उज्जैन में है, मैनासुन्दरी का मायका भी यहीं है, लेकिन मिले नहीं। वहीं जिस संत की कृपा से मैनासुन्दरी ने सुख पाया, वे कहां है यह पता नहीं है। प्रवीण ऋषि ने कहा कि जो एक संत का सम्मान करता है, वह दुनिया के सभी संतों का सम्मान करता है। दोनों रोज संतों के दर्शन के लिए जाते हैं। एक दिन वे संत के दर्शन कर लौट रहे थे कि श्रीपाल को अपनी माता नजर आई। कई साल बीत गए थे, लेकिन उसने अपनी माता को पहचान लिया, वह दौड़कर पास पहुंचा और उनके चरण पकड़ लिए। मात चौंक गई, उसने भी अपने पुत्र को पहचान लिया और उसे गले लगा लिया। मैनासुन्दरी यह सब देख रही थी, उसे अपनी माता याद आ रही थी। श्रीपाल में अपनी माता से कहा कि यह आपकी बहुरानी है। उसने कहा कि आप जो कुछ देख रही हैं, इसी का सौभाग्य है। माता ने मैनासुन्दरी को गले से लगा लिया। तीनों पुनः संतों के दर्शन के लिए जाते हैं। वहां मैनासुन्दरी की माता भी आई हैं। वे अपनी पुत्री को सुन्दर पुरुष के साथ देखकर दंग रह जाती हैं, और रोने लगती हैं। मैनासुन्दरी को धिक्कारते हुए कहती हैं कि कुष्ठ रोगी से विवाह हुआ था, लेकिन किसी और के साथ घूम रही है? उपाध्याय प्रवर ने कहा कि ज्ञानी मुस्कुराता है और अज्ञानी रोता है। ज्ञानी व्यक्ति कभी सहन नहीं करता है, क्योंकि वह समझकर लेता है। जो समझकर नहीं लेता है, उसे सहन करना पड़ता है। समझ दुर्लभ है, जिसे जैन धर्म में बोधि कहा गया है। मैनासुन्दरी अपनी माता के पास जाती है और कहती है कि ख़ुशी के मौके पर आप आंसू क्यों बहा रही हैं। माँ ने यह भी नहीं पूछा कि कौन है तुम्हारे साथ? बस सोच सोच कर रो रही है।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।

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