लालगंगा पटवा भवन में जारी है श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा
रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 17 अक्टूबर । उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि नवकार महामंत्र की क्या महिमा है, यह हमें श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा बताती ही। यह कथा हमें लेश्या के चरित्र के बारे में भी बताती है। नीच और उच्च लेश्या में क्या अंतर है, ये हम श्रीपाल और धवल सेठ के चरित्र से समझ सकते हैं। नीच लेश्या वाला कभी किसी की सफलता से खुश नहीं होता, उसके मन में ईर्ष्या की भवन उत्पन्न होती है। सत्कार भी उसे तिरस्कार प्रतीत होता है। श्रीपाल की सफलता धवल सेठ को हजम नहीं होती है, वह तो इसी ताक में रहता है कि कैसे मैं श्रीपाल को अपने रास्ते से हटाऊँ? वहीं श्रीपाल धवल सेठ को सम्मान देता है, पितातुल्य मानता है, उसकी सहायता करता है, लेकिन कहते हैं न कि नीच लेश्या वाले को फूल भी कांटे की तरह चुभते हैं, इसलिए मौका मिलते ही धवल सेठ श्रीपाल को नाव से धक्का दे देता है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
मंगलवार को धर्मसभा में श्रीपाल मैनासुन्दरी की कथा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि श्रीपाल को मृत समझकर धवल सेठ बड़ा खुश हुआ, उसे लगा कि उसकी राह का कांटा निकल गया। वहां मदनसेना और ऋणमंजूषा भी दुखी थे। धवल सेठ उनके पास पहुँचता है और झूठी सांत्वना देते हुए कहता है कि मरने वाले के पीछे कोई मरता नहीं है। तुम दोनों आराम से रहो। यह सुनकर दोनों रानियों को यह अहसास हो जाता है कि श्रीपाल को मदन सेठ ने ही धक्का दिया था। वह कैसे भी करके दोनों रानियों को अपनाना चाहता था। उसके 4 मित्र थे, वह उनके चर्चा कर रहा था कि कैसे मैं रानियों को अपने वश में करूँ। उसके तीन मित्र सयाने थे, उन्होंने कहा कि ऐसी भूल मत करना, दोनों तुम्हारी पुत्रवधु हैं, श्रीपाल तुम्हे पिता समान मानता था। लेकिन 1 मित्र ने कहा कि चिंता मत कर, कभी न कभी दोनो रानी तुम्हारे पास आएंगीं। उसने दासी को भेजा, और उसने दोनों रानियों के सामने धवल सेठ का बखान शुरू किया, लेकिन उसे फटकार वापस भेज दिया गया। वासना का अँधा कभी जिद नहीं छोड़ता है। प्रभु का बंदा भी जिद नहीं छोड़ता है, लेकिन एक की जिद उसे नर्क तक ले जाती है और दूसरे की जिद उसे जीत तक ले जाती है। वह पहुँचता है रानियों के पास, मीठी मीठी बातें करता है, कहता है कि श्रीपाल को मैंने पनाह दी दी, उसका मोल दिया था, तुम दोनों अपना जीवन ऐसे ही मत गंवाओ। यह कहते हुए वह आगे बढ़ता है। लेकिन श्रीपाल ने दोनों रानियों को नवकार मंत्र की शक्ति प्रदान की थी। दोनों मंत्र का ध्यान शुरू करती हैं, और तभी क्षेत्रपाल देवता और चक्रशौर्या देवी प्रकट हो गए। उन्हें देखकर धवल सेठ घबरा गया और दया की भीख मांगने लगा। देव ने कहा कि तू सती की शरण में आया है, इसलिए माफ़ कर रहा हूं, अगली बार तू नहीं बचेगा। देवी ने दोनों रानियों से कहा एक मास के अंदर तुम्हे तुम्हारा पति मिल जाएगा। वह कंकूद्वीप पहुंचा है, तुम भी वहां पहुंचो।
इधर श्रीपाल कंकूद्वीप पहुंचा है। समुद्र के किनारे एक चंपा के पेड़ के नीचे सो गया। उसे कोई चिंता नहीं है। यहां के राजा की गुलमाला नाम की कन्या थी, और उसके विवाह की चिंता राजा को सताए जा रही थी। वह ज्योतिष से पूछता है तो बताते हैं कि वैशाख दशमी के दिन एक युवक चंपा के पेड़ के नीचे सोया मिलेगा, सूर्यास्त के समय सूर्य ढलेगा लेकिन पेड़ की छाँव नहीं हिलेगी, वही युवक तुम्हारी पुत्री का वर बनेगा। राजा के सैनिक खोज पर निकलते हैं, और देखते हैं कि श्रीपाल चंपा के पेड़ के नीचे मजे से सो रहा है, बगल में तलवार भी रखी है। जब उसकी आंख खुलती है तो देखता है कि राजा के सैनिकों ने उसे घेर रखा है, लेकिन किसी के हाथ में शस्त्र नहीं है, वहीं बगल में एक राजसी रथ भी खड़ा है, सैनिक कहते हैं कि आपको राजा ने बुलाया है, आपका विवाह उनकी पुत्री के साथ होने वाला है। राजा ने श्रीपाल का भव्य स्वागत किया और अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। इधर धवल सेठ भी कंकूद्वीप पहुंचा और सबसे पहले राजा के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचा। वहां श्रीपाल को राजा के बगल में बैठा देखा वह गश खा गया, वह सोच में पड़ गया। बाहर निकला और सैनिक से पूछा कि वह कौन है? सैनिक ने बताया कि वह राजा का जंवाई है। अब धवल सेठ को काटो तो खून नहीं। वह जहाज में वापस आया और अपने मित्रों को बताया, 3 मित्रों ने कहा कि उससे माफ़ी मांग लो, लेकिन नीच लेश्या वाले धवल सेठ को माफ़ी मांगना रास नहीं आया। लेकिन चौथे दोस्त ने कहा कि यहां किसी को श्रीपाल का इतिहास नहीं मालूम है, ऐसा ढोल बजाओ कि उसकी हकीकत सभी को पता चल जाए। तभी वहां से भांड टोली गुजर रही थी। धवल सेठ की कुटिल बुद्धि में नई योजना तैयार हुई। उसने टोली को रोका और उनसे कहा कि मैं तुम्हे ढेर सारा पैसा दूंगा, बस तुम्हे राजा के दामाद को अपना पुत्र साबित करना है। पैसों के लालच में भांड टोली तैयार हो गई। राजदरबार में टोली पहुंची और अपना स्वांग दिखाया। इस दौरान टोली में से एक महिला ने श्रीपाल को देककर कहा कि ये तो मेरा बेटा है, यो कुछ साल पहले समुद्र में खो गया था। पूरी टोली उसे पहचानने का स्वांग करती है। राजा और पूरे दरबार को यह अहसास हो जाता है कि यह भांड टोली का सदस्य है। लेकिन श्रीपाल को यह अहसास हो जाता है कि यह धवल सेठ की चाल है। लेकिन वह कुछ नहीं बोलता है। राजा को बड़ा गुस्सा आता है, वह सैनिकों को आदेश देता है कि श्रीपाल को सूली पर लटका दिया जाए। गुलमाला को जब पता चलता है तो वह दौड़ी दौड़ी श्रीपाल के पास आती है, और पूछती है कि यह सब क्या है? श्रीपाल कहता है कि समुद्र तट पर जहाज है, उनमे तुम्हारी 2 बहनें है, वही तुम्हे सच्चाई बतायेंगीं। वह जहाज के पास पहुँचती है और उसकी मुलाकात मदनसेना और ऋणमंजूषा से होती है। तीनो राजा के पास पहुँचती हैं और उन्हें सच्चाई बताती हैं। राजा कहता है कि बहुत बड़ी गलती हो गई और वह श्रीपाल को तुरंत राजसभा में बुलाकर उससे माफ़ी मांगता है।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।