एटलस ग्लोब भौगोलिक अध्ययन के मूल आधार – द्विवेदी

एटलस ग्लोब भौगोलिक अध्ययन के मूल आधार – द्विवेदी


राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़). शासकीय कमला देवी राठी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजनांदगांव के भूगोल विभाग द्वारा संस्था प्राचार्य डॉ. आलोक मिश्रा के प्रमुख निर्देशन में विषयक संदर्भ व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी विभागाध्यक्ष ने स्नातक स्तरीय भूगोल छात्राओं को विशेष रूप से व्याख्यान में बताया कि विशालकाय गोलीय आकार वाली हमारी पृथ्वी के श्रेष्ठ, सत्य एवं श्रेयष्कर भौगोलिक अध्ययन के लिए मानचित्र, मानचित्रावली (एटलस) एवं ग्लोब के द्वारा ही गहन एवं स्पष्ट आधारभूत वैज्ञानिक एवं कलात्मक उपकरण-सम होते हैं। वस्तुत: प्रत्येक भूगोल अध्येता को देश-धरती के विस्तृत भौगोलिक विशिष्टताओ को जानने, समझने के साथ-साथ गहन-शोध कार्यो के लिए भी मानचित्र, एटलस एवं ग्लोब के द्वारा ही अध्ययन संभव हो पाता है और यही अध्ययन की मूलभूत सहायक सामग्री होती है। प्रत्येक भौगोलिक जानकारी भूगोल अथवा देश-प्रदेश के किसी भी भाग की वृहद,गहन जानकारी के लिए सबसे पहले उस क्षेत्र की स्थानिक स्थिति की जानकारी मानचित्र, एटलस से ही संभव होती है। आगे डॉ. द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि भौगोलिक मानचित्रों तथा एटलस का इतिहास शताब्दियों पुराना है। सामान्य लकड़ी के तख्तों, जानवरों की खालों, विभिन्न कपड़ों पर मानचित्रों के निर्माण की यात्रा प्रारँभ हुई और तकनीकी विकास के साथ-साथ वर्तमान समय में वृहद तकनीकीयुक्त थ्री-डी मानचित्रों की श्रृंखला वाली एटलस और विशेष इलेक्ट्रानिक ग्लोब आ गये हैं। साथ ही उपग्रहों से प्राप्त विशेष आंकड़ों तथा जानकारी के आधार पर वर्तमान समय में सुदूर संवेदन मानचित्र का समय आ गया है। जिससे विश्व के किसी भी क्षेत्र, प्रदेश और देश की जानकारी प्रमाणिक रूप में प्राप्त की जा सकती है एवं अद्यतन होती रहती हैं। डॉ. द्विवेदी ने विशेषकर छात्रों को भौगोलिक अध्ययन के लिए सामान्य रूप से एटलस एवं ग्लोब के उपयोग को भी वरिष्ठ छात्राओं के सहयोग से व्यवहारिक ढंग से बतलाया। व्याख्यान के अंत में छात्राओं द्वारा रोचक, ज्ञानवर्धक व्याख्यान के आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया गया।

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