रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 21 अक्टूबर। लालगंगा पटवा भवन में शनिवार को श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि नौपद की आराधना का प्ररेक और जीवन में प्रकाश लाने वाला श्रीपाल-मैनासुन्दरी का चरित्र हमें कई बातें सिखाता है। श्रीपाल के मन में कई सवाल उठ रहे थे। उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? उसे जीवन में सीधा रास्ता क्यों नहीं मिला? कभी राज्य से भगा दिया गया, कोढ़ियों के साथ जीवन व्यतीत किया, समुद्र में फेंका गया, भांड बोला गया, सूली पर लटकने की तैयारी की गई। और न जाने क्या क्या उसने झेला। इस अनहोनी का कारण क्या है? उपाध्याय प्रवर ने कहा कि पिछले जन्म के कुछ कर्म इस जन्म में फलित होते हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
श्रीपाल के चाचा वीरदमन अब मुनि बन गए हैं। श्रीपाल उनसे पूछता है कि उसे इतने कष्ट क्यों उठाने पड़े? वीरदमन बताते हैं कि पिछले जन्म में श्रीपाल हिरणपुर नगरी के राजा श्रीकांत था। और श्रिखंत को शिकार का व्यसन था। मैनासुन्दरी उसकी रानी थी, जो हमेशा समझाती थी कि शिकार मत करो। 700 कोढ़ी पिछले जन्म में श्रीकांत के सुभट थे, जो शिकार में उसके साथ जाते थे। एक बार श्रीकांत शिकार के लिए जंगल में घूम रहा था, वहां एक मुनि साधना में लीन थे, उनके शरीर में घाव था जिस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं। उसे देखर श्रीकांत और उसके सुभट उसका मजाक उड़ाते हुए कोढ़ी रे कोढ़ी रे करके गाने लगे। उसके कारण श्रीपाल और 700 सेवकों को इस जन्म में कुष्ठ रोग हुआ। सेवकों ने श्रीपाल से ज्यादा बोला, इसलिए उन्हें पहले रोग हुआ। पाप साथ में बंधा था, इसलिए फल भी साथ में मिला। वीरदमन ने आगे बताया कि एक बार तुम शिकार के लिए समुद्र किनारे घूम रहे थे, एक मुनि तट पर साधना कर रहे थे, तुमने उसे उठाकर समुद्र में फेंक दिया। जब मुनि कराहने लगा तो तुमने उसे उठाकर वापस किनारे लाया और अपनी करनी की माफ़ी मांगी। इस जन्म में भी तुम्हे समुद्र में फेंका गया, लेकिन वापस किनारे पर भी छोड़ा गया।
गलती हो गई है तो उसे जिन्दा मत रखो, तुरंत माफ़ी मांग लो
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अगर गलती हो गई है तो उसे तुरंत सुधार लो, जिन्दा मत रखो। श्रीपाल गलती करता था लेकिन रानी उसे सुधारती थी। श्रीकांत की एक अच्छी आदत थी कि वह उलटे-सीधे काम करता और आकर अपनी रानी को बताता। रानी हमेशा कहती कि ऐसा मत किया करो, और श्रीकांत कहता कि आगे ने नहीं करूंगा। श्रीपाल ने वीरदमन ने पूछा कि मुझे भांड कहा गया, सूली पर लटकाने की तैयारी थी, ऐसा क्यों हुआ? वीरदमन ने कहा कि एक बार राज्य में एक मुनि गोचरी के ले आये। मुनि को देखर श्रीकांत के मन में जाने क्या विचार आया कि वह चिल्लाया कि इसे मारो। राजा की आज्ञा सुनकर लोग मुनि को मारने लगे। रानी को जब पता चला तो वह दौड़ती हुए आई और मुनि को लोगों से बचाया, क्षमा याचना की और गोचरी के लिए घर ले कर आई। श्रीपाल को जब अहसास हुआ तो उसने मुनि की चरण वंदना करते हुए क्षमायाचना की। श्रीकांत ने तो क्षमा मांग ली, लेकिन रानी क्षमा पर नहीं रुकी, उसने कहा कि इन्होने ऐसा अपराध पहले भी किया है। इस पाप से मुक्ति कैसे मिलेगी? मुनिराज ने कहा यदि रहा उल्लास-उमंग के साथ आयंबिल करेगा तो इसके पापकर्म का समापन हो जाएगा। यह सुनकर दोनों ने आराधना की। आठों रानियां और 700 सुभट राजा-रानी की तपस्या का बखान करते हैं। आठों रानियां आयंबिल नहीं करती हैं, लेकिन तपस्या का अनुमोदना करती हैं। और इस अनुमोदन से उन्होंने अपना पुण्य बंधा और उन आठों रानियों को खोजने के लिए इस जन्म में श्रीपाल को घूमना पड़ा। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि दो कर्म होते है, पुण्य और पाप कर्म। इनमे भी दो प्रकार होते हैं, एक स्वयं का और एक समूह है। अगर पुण्य कर्म अगर आप स्वयं के लिए करते है तो फल आपको ही मिलेगा, लेकिन अगर समूह में करते हैं तो फल सभी को मिलेगा। समूह में पुण्य करने के लिए 3 कर्म लगते है, करना, करवाना और अनुमोदन। पाप के लिए भी यही 3 लगते है। अगर आप समूह से पुण्य करवाते हैं, या समूह स्वयं से करता है, अथवा समूह का कोई व्यक्ति आपसे जुड़ा हुआ है केवल अनुमोदन करता है तो फल मिलेगा।
वीरदमन ने आगे बताया कि पिछले जन्म में तुमने मुनि को पिटवाया, इसलिए इस जन्म में तुम्हे सूली पर लटकने की तैयारी की गई। लेकिन रानी ने उस जन्म में बचाया था, और इस जन्म में गुणमाला ने तुम्हे बचाया। अपने बारे में बताते हुए वीरदमन कहते है कि तेरी नगरी के पास एक सिंह राजा रहता था, और तूने एक दिन उसपर आक्रमण किया। उसने शेर की तरह हमले का जवाब दिया, तेरी सेना को भगाया और तुझे पकड़ लिया। तूने मेरा राज्य छीनने का प्रयास किया था, लेकिन तो ही भटकता रह गया। मुझे अपने हिंसा के कृत्य पर पछतावा हुआ, और मैंने दीक्षा ग्रहण कर ली। मैं वीरदमन बना, तूने मेरा राज्य छीनने का प्रयास किया था, इसलिए मैंने तुझे राज्य से वंचित किया।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव का शंखनाद हो चुका है। पहले आनंद जन्मोत्सव मनाया, उसके बाद नवकार तीर्थ कलश अनुष्ठान का आयोजन किया। ये दोनों कार्यक्रम अद्भुत रहे। इन कार्यक्रमों से भी अद्भुत कार्यक्रम ‘उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना’ रायपुर की धन्य धरा पर होने वाला है। उन्होंने कहा कि जिस भक्ति भाव से लोग आगे आ रहे हैं, यह कार्यक्रम भी अद्भुत और ऐतिहासिक रहेगा। 23 अक्टूबर को उपाध्याय प्रवर श्रुतदेव आराधना के बारे में विस्तार से बताएंगे। ललित पटवा ने समस्त लाभार्थी परिवारों को अपने परिजनों संग उपस्थित होने का आग्रह किया है। इसके बाद 24 अक्टूबर से 13 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।