जीवन के सारे सौभाग्य का मूलभूत द्वार है विनय : प्रवीण ऋषि

जीवन के सारे सौभाग्य का मूलभूत द्वार है विनय : प्रवीण ऋषि


‘उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना’ के प्रथम दिवस विनयश्रुत की आराधना
आज के लाभार्थी परिवार : श्रीमती कमलाबाई पुखराजजी लोढ़ा परिवार

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 25 अक्टूबर। रायपुर की पावन धरा पर 21 दिवसीय ‘उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना’ का 24 अक्टूबर को भव्य शुभारंभ हुआ। उत्तराध्ययन सूत्र भगवान महावीर के अंतिम वचन हैं, जिसे सुनने के लिए देवता भी स्वर्ग से उतरकर धर्मसभा में बैठे थे। लगातार 16 पहर तक चले महावीर के प्रवचनों का लाभ संसार के समस्त जीवों ने लिया था। सुधर्मा स्वामी द्वारा रचित यह पवित्र ग्रन्थ है जिनके 36 अध्याय में महावीर स्वामी के निर्वाण के कुछ समय पहले दिए गये उपदेश संग्रहित हैं। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों को उस धर्मसभा का वर्णन किया जहां महावीर ने अपने प्रवचन दिए। तीर्थंकर परमात्मा के पावन, पवित्र अस्तित्व की समृद्धि में अनुभूति कराने के लिए देवों द्वार निर्मित एक भव्य दिव्या समोशरण, एक विशाल चांदी का परकोटा, जिसके चारों दिशाओं में द्वार है, उसी के अंदर में ऊंचाई पर एक स्वर्ण का परकोटा, उसके अंदर रत्नों से बना परकोटा, जिसके मध्य में अशोक वृक्ष, स्फटिक सिंहासन पर विराजमान तीर्थंकर प्रभु महावीर को नमन करते हुए उनके समोशरण में प्रवेश करें।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवीण ऋषि ने कहा कि जीवन के सारे सौभाग्य का मूलभूत द्वार है विनय। विनय एक अनूठा शब्द है, और इससे भी अनूठा है इसका जीवन। प्रभु ने निर्वाण कल्याणक के वरदानों में सबसे पहला वरदान दिया विनय का। प्रभु फरमाते हैं कि जैसे सभी जीवों के लिए धरती आधार बनती है, विनय है या नहीं, इसकी कसौटी प्रभु देते हैं। जैसे पानी कहीं भी बरसे, समुद्र की शरण में जाता है, ऐसा सागर के समान जिसका जीवन हो जाता है मंगल कार्यों के लिए, जिसके पास मंगल अनुष्ठान चले आते हैं, जिसको किसी मंगल की शरण में जाने की जरुरत नहीं पड़ती, उसका जीवन श्रद्धेय शास्त्र बन जाता है, उसका जीना ही शास्त्र हो जाता है। उसके जीवन से संशय के कांटे निकल जाते हैं। उसके तन, मन वचन में संशय नहीं रहता है। ऐसा विनय हमारे जीवन में हो जाए की मन में कभी संशय न आये। विनयी व्यक्ति के लिए कर्म ही ऐश्वर्य हो जाता है। राम के लिए कर्म ही संपदा हो गई, इंद्रभूति गौतम के लिए कर्म ही शास्त्र हो गया।

उपाध्याय प्रवर ने आगे कहा कि ऐसा जीवन कैसे बनता है? इसकी शुरुआत कैसे होती है? इसका बीज क्या है? विनय के कल्पवृक्ष का पहला बीज है कि मैं कभी भी सड़े कान का कुत्ता नहीं बनूंगा। प्रभु फरमाते हैं कि एक कुत्ता होता है, जिसे लोग बड़े प्यार से रखते हैं, खिलाते है। और एक कुत्ता होता है जिसे लोग भागते हैं। जिस कुत्ते के कान सड़ गए हों, ऐसे कुत्ते को कोई अपने आंगन में प्रवेश करने नहीं देता। प्रभु कहते हैं कि जिसे सड़े कान वाले कुत्ते को लोग निकाल देते हैं, वैसे ही जिसके अंदर के कान (भावना के कान) सड़े हुए रहते है, उसे लोग तिरस्कार देते हैं। गुरु, माता-पिता की मंगल भावना महसूस नहीं होती है। उनके वचन कटु लगते हैं, वरदान सुनने में पीड़ा होती है तो प्रभु फरमाते हैं कि कान सड़े हुए हैं। दूसरा प्रभु ने कहा कि अपने मन को कभी सूअर का मन मत होने दो। सुअर के शरीर में पसीने की ग्रंथि नहीं होती, शरीर का टोक्सिन निकालने की शक्ति नहीं होती है, शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं कर सकता है, इसलिए उसे गन्दगी में बैठना पड़ता है ठंडक के लिए। प्रभु कहते हैं कि जो अपने अंदर का जहर नहीं निकाल पाता है उसका मन सूअर जैसा होता है। जैसे पेट का मल नहीं निकले तो परेशान हो जाते हैं, वैसे ही अगर मन का जहर न निकले तो यह मन सूअर जैसा हो जाता है। प्रभु की वाणी सुनते समय और किसी की वाणी याद आ जाए तो समझ लेना कि मन सूअर है। इनका मन केवल गन्दगी की तरफ जाता है। कुत्ता, सूअर और अविनयी व्यक्ति का जीवन जिन आभावों से पीड़ित होता है, इसे महसूस करते हुए प्रभु कहते हैं कि अपनी आत्मा को विनय में प्रतिष्ठित करो। हमारे अंदर की बुरी आदत को छोड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, वैसे ही अंदर के अहंकार को छोड़ने के लिए भी मेहनत लगती है। इसलिए प्रभु कहते हैं कि अपनी आत्मा को विनय में स्थापित करो। आज्ञा को स्वीकार करना और निर्देश का पालन करना विनय का बीज है। इस बीज का सिंचन कैसे करना है? बड़ों के सानिध्य में शांत बैठें, सयाने लोगों से कुछ लेना हो तो चुपचाप सुने और जो आपके काम का है उसे ग्रहण करें। कभी उग्र मत बनो, उग्रता झलकनी नहीं चाहिए। ज्याद मत बोलो, बिना पूछे मत बोलो। बिना पूछे आग्रह कर सकते हो, जिज्ञासा कर सकते हो, लेकिन जवाब देना हो, अथवा टिप्पणी करनी हो या राय देनी हो तो बिना पूछे मत दो। अपने अंदर की असहजता को, पीड़ा को, क्रोध को फेल कर दें। क्रोध क्या है, दुःख की अभिव्यक्ति है। और परमात्मा कहते हैं कि उस दुःख को असत्य कर दे। विनय की राह पर चलना मतलब स्वयं के जीवन को अमृत का सागर बनाना।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने कहा रायपुर की धन्य धरा पर आज से 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि आज के लाभार्थी परिवार थे : श्रीमती कांतादेवी धरमचंदजी पटवा परिवार व श्रीमती प्रेमलता राजीवजी तातेड़ परिवार दिल्ली। 25 अक्टूबर के लाभार्थी परिवार श्रीमती कमलाबाई पुखराजजी लोढ़ा परिवार हैं। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।

Chhattisgarh