लालगंगा पटवा भवन में बह रही महावीर के अंतिम वचनों की अमृत गंगा
आज के लाभार्थी परिवार : पुखराजजी मिश्रीलालजी लोढ़ा परिवार डौंडी लोहारा
रायपुर (अमर छत्तीसगढ़)। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि मंगल राहों पर चलने वाले बहुत होते हैं, लेकिन जहाँ-जहाँ चरण धरें वह राह मंगल हो जाए, ऐसे चरणों को संत चरण कहते हैं। सोमवार को लालगंगा पटवा भवन में जारी श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के सप्तम दिवस उपाध्याय प्रवर ने उत्तराध्ययन सूत्र के 11, 12 एवं 13 वें अध्याय के पाठ किया। आराधना के पूर्व आज के लाभार्थित परिवार विजय कुमार तरूण कुमार बसंत कुमार विनोद कुमार कटारिया परिवार, हरिलालजी रमणीकलालजी सिसोदिया (सेठ) परिवार, आशा यशवंत पुंगलिया परिवार ऋतु महावीर सुराना परिवार चेन्नई, राजेंद्र-माया, डॉ. यश, महिमा सेठिया परिवार ने धर्मसभा में आने वाले श्रावकों का तिलक लगाकर स्वागत किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवीण ऋषि ने कहा कि कैसे विद्या शक्ति बनती है? कैसे व्यक्ति परमात्मा की शिक्षा को ग्रहण कर योग्य बनता है। और जो परमात्मा की शिक्षा को ग्रहण करने के योग्य होता है उसका जीवन कैसा होता है? जैसे शंख में यदि दूध भर दिया गया तो दूध में शंख के गुण आ जाते हैं, वैसे ही महावीर की शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्ति का जीवन धर्म से ऐसे संपन्न हो जाता है, जैसे दूध में स्नान किया हुआ शंख। बहुश्रुत को पाकर धर्म गौरवान्वित होता है। और धर्म के कारण बहुश्रुत का जीवन निर्मल हो जाता है। जैसे घोड़े बहुत हैं, लेकिन कन्नौज का घोड़ा अनोखा होता है। ऐसे घोड़े पर सवार योद्धा रणभूमि में पहुँचता है तो विजय को प्राप्त करता है। वैसे ही बहुश्रुत भी कन्नौज के घोड़े के समान है। बहुश्रुत उस गजराज के समान है जिसका बल अप्रितहत है। बहुश्रुत उस वृषभ के समान है जिसके कंधे किसी भी बोझ को बोझ के रूप ने न लेकर क्रीड़ा से ही उसे वहन करने में समर्थ होता है। बहुश्रुत वासुदेव है, जिसके बल को कोई रोक नहीं सकता है। बहुश्रुत चक्रवर्ती है, परमात्मा के दिए 14 रत्नों से उसका जीवन संपन्न होता है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जो अहंकारी है वह बहुश्रुत नहीं बन सकता। ऐसा ही एक अनूठा अध्याय है, जो गौरव की अनुभूति आराधना के पलों में कराता है, लेकिन एक दर्द भी देता है। शंखमुनि राजा थे, दीक्षा ली और हस्तिनापुर नगरी की ओर जा रहे थे। गोचरी के लिए शहर में प्रवेश करना था, और जहां खड़े थे वहां से दो रास्ते जा रहे थे। उनके मन में उलझन थी कि कौन से रास्ते से जाऊं? वहां एक ब्राह्मण सोमदेव खड़ा था पेड़ के नीचे, शंखमुनि ने उनसे पूछा किस रास्ते से जाऊं? किसी के अज्ञान में जो ज्ञान का उजाला करते हैं, वे संत होते हैं। और किसी के अज्ञानता का जो नाजायज फायदा उठाते हैं, उनके लिए कोई शब्द नहीं है। सोमदेव को लगा कि इस मुनि को ज्ञान नहीं है, और उनकी अज्ञानता का फायदा उठाते हुए उनको परेशान करने के लिए उसने उस रास्ते की तरफ इशारा किया जो रास्ता अग्निपथ कहलाता है। यह रास्ता चौबीसों घंटे तापा हुआ रहता था। मुनि ने उसकी बात को श्रद्धा से स्वीकारा और चल पड़े। सोमदेव को इन्तजार था कि उस रास्ते पर पाँव रखते ही मुनि परेशान हो जाएंगे। उनके पैर झुलसेंगे और वे दूसरे रास्ते की ओर भागेंगे। लेकिन मुनि तो बड़े मजे से उस रास्ते पर चले जा रहे थे। सोमदेव चौंक पड़ा, और उसने जब उस रास्ते पर अपने पैर रखे तो वह रास्ता ठंडा हो गया थे। बने चरण हमारे ऐसे कि जिस राह पर कदम रखें वह राह मंगल हो जाए। मंगल राहों पर चलने वाले बहुत होते हैं, लेकिन जहाँ-जहाँ चरण धरें वह राह मंगल हो जाए, ऐसे चरणों को संत चरण कहते हैं।
सोमदेव को लगा कि यह तो योगी है, यह भगवत्ता का दूत है। मैंने इसके साथ दुर्व्यवहार किया। प्रभु कहते हैं कि जिसे अपने दुर्व्यवहार चुभ जाए, वह सुधर जाता है। ऐसा नहीं है कि सफल होने वाले व्यक्तियों ने कभी गलतियां नहीं की हैं। और ऐसा भी नहीं है कि असफल होने वाले व्यक्ति ने सही काम न किया हो। गलती करने वाले भी कई बार सफल हो जाते हैं और सही काम करने वाले भी कई बार असफल हो जाते हैं। उसका कारण केवल इतना है कि जो अपनी गलती को जारी रखता है वह असफल होता है। जो अपनी गलती को समाप्त करता है, वह सफल होता है। सोमदेव ने अपनी गलती को समाप्त किया। वह दौड़ा-दौड़ा मुनि के पास पहुंचा और उन्हें वंदन किया। मुनि को कुछ भी पता नहीं है, वह नहीं जानते हैं कि सोमदेव ने कोई अपराध किया है, लेकिन सोमदेव जनता है कि उसने अपराध किया है। जीवन के कई बार ऐसे लोग मिल जाते है कि जिनसे हम गलत व्यवहार करें तो उनपर बुरा असर नहीं होता है, लेकिन उसके कारण से अपनी गलती गलती ही होती है। उस गलती को स्वीकार करके सोमदेव वंदन करता है, निवेदन करता है कि मैंने आपको गलत रास्ते की ओर भेजा, लेकिन आपके कदम ऐसे है जो गलत राह को भी सही बना देते हैं। यह परमात्मा के अनुत्तरदेशन का एक अनूठा वरदान है।
रास्ता सही है कि गलत है, यह चर्चा भी मायने रखती है, लेकिन चलने वाला सही हो तो गलत रास्ते को भी सही कर देता है। सोमदेव ने कहा कि आपने दुःखद रास्ते को भी सुखद बना दिया, आपमें अनूठा सामर्थ्य है, मुझपर कृपा करो, मेरे अंदर के जो गलत रास्ते हैं, दुष्टता है, मेरे अंदर की जो पापी वृत्तियाँ हैं, उन्हें समाप्त करने का मार्ग बताएं। शंख मुनि ने उसके मस्तक को स्पर्श किया, उसे बोध दिया। दूसरे को परेशान करने वाला खुद परेशान होता है। और दूसरे को समाधी देने वाला समाधी प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि तेरे अंदर में परेशानी है, इसलिए तू दूसरों को परेशान करता है। अंदर की परेशानी को समाप्त कर। सोमदेव ब्राह्मण को उनकी वाणी ने ऐसे छुआ, कि वह बदल गया। उसने कहा कि अब मैं आपके चरणों में हूं। आप जैसा कहेंगे वैसा जियूंगा, जो साधना कराएंगे करूंगा, आप ही मेरे गुरु हो। और सोमदेव ने दीक्षा ली, मुनि बना। लेकिन मन में एक अहंकार जीवित था कि मैं एक ब्राह्मण कुल में जन्म हूँ। प्रभु कहते हैं कि जिस बात का तुम इस जन्म में अहंकार करोगे, अगले जन्म में उसका विपरीत प्राप्त करोगे। सोमदेव को इसी अहंकार के कारण साधना तो हुई, देवलोक गया, और देवलोक का आयुष पूर्ण कर जाति के अहंकार के कारण से अगले जन्म में उस कुल से वंचित हो गया। प्रभु कहते हैं कि अहंकार का मतलब है कि भविष्य में वंचित हो जाना। जो मिला उसका उपयोग जो करता है वह शिखर पर पहुंचता है। जो मिला है उसपर अहंकार करने वाला खो देता है। और परिणाम स्वरुप सोमदेव एक चांडाल के घर में जन्म लेता है।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 31 अक्टूबर के लाभार्थी परिवार हैं : पुखराजजी मिश्रीलालजी लोढ़ा परिवार डौंडी लोहारा। सहयोगी लाभार्थी परिवार हैं कमलचंदजी आशीष कुमारजी जैन परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।