बड़ा मंदिर में सिद्ध चक्र विधान में कुल 256 अर्घ्य समर्पित किए

बड़ा मंदिर में सिद्ध चक्र विधान में कुल 256 अर्घ्य समर्पित किए

केवल मनुष्य में ही क्षमता है पत्थरो और स्वयं को भगवान बनाने की :– ब्रह्मचारी विजय भईया गुणायत

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 21 मार्च। श्री 1008 आदिनाथ दिगम्बर जैन बड़े मंदिर में चल रहे श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान के पांचवे दिन गुरुवार को सकल जैन श्रद्धालुओं ने कुल 256 अर्घ्य चढ़ाए। ट्रस्ट कमेटी के अध्यक्ष संजय जैन नायक ने बताया की आज सबसे पहले सौधर्म इंद्र आदि ने श्री 1008 आदिनाथ भगवान, मुनि सुव्रत नाथ भगवान एवं पुष्पदंत नाथ भगवान को पांडुकशीला पर विराजमान किया। इसके बाद विधानाचार्य ब्रह्मचारी विजय भईया गुणायतन वालों ने पहले मंगलाष्टक का पाठ किया।

इसके बाद जल की शुद्धि कराई और चारों कोनो पर चार कलश की स्थापना कराई। सभी इंद्र-इंद्राणियों एवं धर्म प्रेमी बंधुओ ने प्राशुक जल से शुद्धि कराई और इन्द्रों ने माथे पे तिलक लगाया। फिर प्राशुक जल से सभी ने श्रीजी का अभिषेक स्वर्ण कलशों से किया। इसके बाद आज चमत्कारिक रिद्धि सिद्धि सुख शांति प्रदात कुल 6 शांति धारा की गई ।

जिसका वाचन ब्रह्मचारी विजय भईया गुणायतन द्वारा किया गया आज की शांति धारा करने का सौभाग्य अमरचंद यशवंत जैन, मनोज जैन महेंद्र कुमार जैन सनत कुमार रोमिल जैन अर्पित जैन चूड़ी वाला परिवार,शैलेंद्र अक्षत जैन जैन हैंडलूम एवं पवन कुमार प्रणीत कुमार जैन को प्राप्त हुआ तत्पश्चात आरती एवं दैनिक पूजा शरू की गई, जिसके अंतर्गत , नंदीश्वर दीप, देवशास्त्र गुरु और अन्य पूजा की गई। आज के श्री सिद्ध चक्र महामंडल विधान मंत्रोचार के साथ ब्रह्मचारी विजय भईया के मार्गदर्शन में कुल 256 अर्घ्य चढ़ाए गए साथ ही लता जैन निलेश जैन ओमकार म्यूजिकल ग्रुप सागर के द्वारा मंत्रमुध संगीत का आयोजन भी किया जा रहा है ।

जिनकी धार्मिक भजन गीतों पर सभी उपस्थित श्रद्धालु भक्ति में झूम उठे सभी ने नृत्य भी किया इस अवसर पर ब्रह्मचारी विजय भईया गुणायतन ने अपने वक्तव्य में बताया की हम सबको जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा के दर्शन रोज करने चाहिएं। श्रीजी के दर्शन मात्र से ही हमारे सारे संकट दूर हो जाते हैं। उन्होंने बताया की केवल मनुष्य में ही इतना क्षमता होती है की वो पत्थरो को तराश कर भगवान का रूप देता है और वही मनुष्य उसे प्रतिष्ठित कर नित्य पूजन करता है साथ ही आज तक जितने भी तीर्थंकर हुए सभी ने पहले मनुष्य योनि में जन्म लिया फिर कठिन तप साधना कर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त कर भगवान बने भगवान बनने के लिए चाहे वह पाषाण के हो या तीर्थंकर सभी को मनुष्य होना जरूरी है उसके बिना भगवान बनना संभव नहीं कुबेर,इंद्र,गौतम,गंधर्व,कोई भी देव हो भगवान तब ही बनते है जब मनुष्य योनि में जन्म लेते है।

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