“तप” में प्रदर्शन नहीं आत्म दर्शन किया जाता है – मुनि श्री सुधाकर जी

“तप” में प्रदर्शन नहीं आत्म दर्शन किया जाता है – मुनि श्री सुधाकर जी

जैन बगीचा स्थित उपाश्रय भवन में सामूहिक प्रवचन हुआ

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 10 मई।युग प्रधान गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी ने आज यहां सामूहिक प्रवचन सभा में कहा कि दो अक्षरों से बना छोटा सा शब्द “तप”, छोटा जरूर है किंतु इस पथ पर आगे बढ़ना बहुत कठिन है इस पथ पर आगे वही बढ़ सकता है जिसका आत्म बल सबल होगा। उन्होंने कहा कि “तप” पर बोलना आसान है किंतु करना कठिन है। आज का दिन अक्षय तृतीया है और अक्षय तृतीया के दिन किया गया “तप” टूटना नहीं चाहिए।
जैन बगीचा स्थित उपाश्रय भवन में आयोजित सामूहिक प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “तप” वह नहीं है जिसमें प्रदर्शन हो बल्कि “तप” वह है जिसमें आत्म दर्शन किया जाता हो। तपस्या न कीर्ति के लिए की जाती है और ना ही मान के लिए की जाती है। तपस्या तो आत्मज्ञान के लिए की जाती है। उन्होंने कहा कि कहने और करने में फर्क यह है कि कहने में केवल जीभ हिलाना पड़ता है और करने में पूरा शरीर हिलाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि सबसे आसान काम है उपदेश देना किंतु उस पर अमल करना बहुत कठिन है। जीवन में अगर करम रम जाए तो मुक्ति दूर नहीं है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर का दर्शन आत्मवाद का दर्शन है।


मुनि श्री सुधाकर जी ने कहा कि कहा जाता है कि ईश्वर के बिना पत्ता भी नहीं हिलता किंतु जैन दर्शन में कहा जाता है कि आपकी इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। बनाना और मिटाना तो आदमी के हाथ में होता है। दृष्टि को बदलो तो सृष्टि बदल जाएगी। उन्होंने कहा कि जैन श्रावक का आदर्श होना चाहिए कि वह रात्रि भोजन का त्याग करें। जिस दिन गुस्सा आए, उस दिन अपने प्रिय चीज का त्याग करें, मोबाइल को जितना हो सके अपने से दूर रखें।
इससे पूर्व मुनि श्री तीर्थ प्रेमी जी महाराज ने कहा कि कर्म सत्ता बहुत ही शालीन है और कर्म अरिहंत भगवानों को भी नहीं छोड़ते। उन्होंने कहा कि जो जैसा कर्म करता है उसका फल उसे भुगतना ही पड़ता है। मुनि श्री नरेश जी ने भी गीत के माध्यम से लोगों को अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित किया।

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