हर्ष और उल्लास के माहौल में ऋषभदेव परिसर दुर्ग में अक्षय तृतीया का महोत्सव सानंद संपन्न

हर्ष और उल्लास के माहौल में ऋषभदेव परिसर दुर्ग में अक्षय तृतीया का महोत्सव सानंद संपन्न

दुर्ग (अमर छत्तीसगढ़) 10 मई।

जय आनंद मधुकर रत्न भवन की धर्म सभा में उपप्रवर्तक डॉ.शरीष मुनि जी श्री श्री जी एवं अमरनाथ प्रियदर्शनी श्री जी के सानिध्य में संत श्री रमण मुनि जी के 39 वा नाट्य विचक्षण श्रीजी 4था भागवत सुप्रज्ञप्ति श्री जी के 5 वें अक्षय तृतीया पारणा श्रमण संघ के वयोवृद्ध सदस्य श्री पारस मल संचेती जसराज जी पारख सुरेश लूणिया टीकम छाजेड़ बंटी संचेती ने चूररस स्थापना रस से आहार समर्पण करने का लाभ लिया और इसके साथ-साथ श्रमण संघ परिवार की श्रीमती भारती पारख श्रीमती सरला देवी बोहरा का जय आनंद मधुकर रत्न भवन में इस वर्ष की गई तपस्या में एक दिन के अंतराल में लगातार 1 तक का होना होता है

प्रभातदेव परिसर में 5 वर्षीतप तब अराधकों का अभिनंदन

बाफना परिवार एवं आदिनाथ जैन मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव में संत श्री रामन मुनि नटखट विचक्षणा श्री जी के वंशज सु प्रजापती श्री जी के साथ तृतीया नीलकंठ बाफना कंचन बाफना नीता बाफना दीपा गोलक्ष्य मठाधीश गोरक्षा का अक्षय तृतीया अभिनंदन एवं पारणा महोत्सव श्रीकांत सागर जी दा सतीश मुनि जी संत कल्प यज्ञ सागर भगवान संधमित्रा श्री जी वंश विजय श्रीजी परिचय प्रियदर्शना श्री जी प्रासंगिक उपस्थिति एवं परम सानिध्य में प्रभातदेव मंडल में आध्यात्मिक वातावरण में अंकित लोढ़ा के भक्ति स्वरूपों की शानदार ध्वनि के साथ इसकी शुरुआत पूर्व वर्षीतप करने वाले साधकों से हुई जहां आदिनाथ मंदिर ट्रस्ट एवं वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ ने सभी तब आराधनाओं का आवाहन कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें सम्मिलित जन के गौतम प्रसादी की व्यवस्था वर्षतप आराधक परिवार की ओर से आयोजित की गई।

भगवान आदिनाथ से जुड़ी है अक्षय तृतीया का पारणा

जो श्रेष्ठ लोग वर्षतप की तपस्या करते हैं वे इस दिन शत्रुंजय की शीतलता में छाया बंगले के रस का सेवन करके तपस्या पूरी करते हैं। प्रभुदेव ने लगातार एक वर्ष तक उपवास करने के बाद इसी दिन पारण (तपस्या का समापन) किया था। शत्रुंजय तीर्थ यात्रा के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है, यहां पढ़ें जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है, भारतीय संस्कृति में बैसाख शुक्ल तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है, इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है।

जैन दर्शन में इसे श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार भारत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भोग भूमि और कर्मभूमि के रूप में हुआ। कृषि एवं व्यवसायियों के लिए भूमि भूमि की कोई आवश्यकता नहीं। जिसमें कल्प वृक्ष होते हैं, राक्षस को मनवांछित मद्य की प्राप्ति होती है। कर्मभूमि युग में कल्प वृक्ष भी धीरे-धीरे-धीरे-धीरे समाप्त हो गए हैं और जीवको कृषि आदि पर सहमत रह कर कार्य करने वाले हैं। भगवान आदिनाथ इस युग के प्रारंभ में प्रथम जैन तीर्थंकर हुए।
प्रथम आहार विहार के रस में
उन्होंने लोगों को कृषि और षट् कर्म के बारे में और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य की सामाजिक व्यवस्था के बारे में बताया। इसलिए उन्हें आदि पुरुष व युग प्रवर्तक कहा जाता है। जैन दर्शन में अक्षय तृतीया का बहुत बड़ा आज भी जैन धर्मावलंबी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्यवाद देते हैं

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